न्याय यात्रा पर हरदा पटाखा फैक्ट्री ब्लास्ट पीड़ित:बेटे की आंखों की रोशनी चली गई, इलाज के लिए सरकार ने 16 हजार दिए

6 फरवरी 2024 का वो मनहूस दिन हम नहीं भूल सकते। हरदा की पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से हमारे घर टूट गए। 14 महीने से हम किराए के मकान में रहने को मजबूर हैं। मैं अकेला ही ऐसा नहीं हूं। कई परिवारों की यही कहानी है। ये दर्द है हरदा के देवीसिंह राजपूत का… और इनकी तरह ही कई परिवारों का। इस हादसे में 13 लोगों की मौत हुई थी। 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। हादसे के बाद कई परिवारों को मुआवजा मिला लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि सरकार से कोई मदद नहीं मिली। ऐसे ही परिवारों के करीब 40 लोग हरदा से भोपाल की पदयात्रा पर निकले हैं। उन्होंने इसे न्याय यात्रा का नाम दिया है। सीएम डॉ. मोहन यादव से मिलकर उन्हें अपनी पीड़ा बताना चाहते हैं। रविवार को ये लोग रायसेन पहुंचे। क्या है इनकी आपबीती, क्यों इन्हें गर्मी के बीच करीब 150 किमी की पदयात्रा करना पड़ रही है और कैसे थे हरदा पटाखा फैक्ट्री ब्लास्ट के जख्म जो अब तक नहीं भरे नहीं? दैनिक भास्कर ने यात्रा में शामिल लोगों से बात कर इन्हीं सवालों के जवाब तलाशे। रायसेन जिले के औबेदुल्लागंज नगर से 7 किलोमीटर पहले हाथों में बैनर और कुछ तस्वीरें लिए लोग सड़कों पर चलते दिखाई दिए। ये नारे लगाते हुए भोपाल की ओर बढ़ते रहे। करीब 40 लोगों के इस समूह में बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं भी शामिल थे। आगे चल रही एक 6 साल की बच्ची आराध्या से पूछा- कहां जा रही हो। बोली- हमारा घर टूट गया। हमें न्याय भी नहीं मिला इसलिए भोपाल मुख्यमंत्री जी से मिलने जा रहे हैं। 5 महीने पहले हरदा कलेक्टर ने भरोसा दिलाया तो रोक दी थी यात्रा यात्रा में शामिल देवी सिंह राजपूत ने बताया कि मेरा घर टूट गया, लेकिन सरकार ने अब तक कोई मदद नहीं की। 5 महीने पहले भी मांगों को लेकर यात्रा निकाली थी, तब हरदा कलेक्टर ने हमें भरोसा दिलाया कि सही मुआवजा दिलाने में मदद करेंगे। उन पर भरोसा करके हमने यात्रा रोक दी थी लेकिन मदद नहीं मिली। इस बार 3 अप्रैल को हमारी टोली हरदा से भोपाल की न्याय यात्रा पर निकली। बदन पर कपड़ा छोड़कर कुछ नहीं बचा था मेरा 500 वर्ग फीट का दो मंजिला मकान था। गृहस्थी का सारा सामान था। उस ब्लास्ट में सब कुछ बर्बाद हो गया। जो बदन पर कपड़ा था सिर्फ वही बचा था। सरकार ने त्वरित सहायता के रूप में डेढ़ लाख रुपए दिए थे। पिछले 14 महीने से परिवार को लेकर चार हजार रुपए हर महीने वाले किराए के घर में रह रहा हूं। अफसरों ने कहा- तुम्हें बहुत पैसा मिल चुका, अब कुछ नहीं मिलेगा हरदा पटाखा फैक्ट्री के पास रहने वाले रवि चंदेले बताते हैं कि जिस दिन पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट हुआ मेरे भैया-भाभी बाहर निकल गए थे, लेकिन फिर उन्हें याद आया कि हमारे लकवाग्रस्त पिताजी घर के अंदर ही फंस गए हैं। पिताजी को बचाने के लिए भैया-भाभी अंदर गए। उसके बाद वह कभी नहीं लौटे। उनकी वहीं मौत हो गई। भैया-भाभी के चार बच्चे हैं। भैया-भाभी की मौत के बाद सरकार ने मरने वालों का जो मुआवजा था वह बच्चों को दिया है। उस घटना में हमारा 750 वर्ग फीट का मकान और उसमें रखा सारा सामान बर्बाद हो गया। सरकार ने उस समय वादा किया था कि मकान की मरम्मत और नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा दिया जाएगा, लेकिन आज तक हमें उसका मुआवजा नहीं मिला। जब भी हम अफसरों के पास अपने मुआवजे के लिए जाते हैं तो वह हमसे कहते हैं कि तुम्हें तो वैसे भी बहुत सारा पैसा मिल चुका है। अब तुम्हें कोई पैसा नहीं मिलेगा। जबकि मुझे कोई मुआवजा नहीं मिला है। मेरे भाई के बच्चों को मिला है। उसके चार छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनका पूरा जीवन पड़ा है। वह पैसा उनका है। घर गिर गया, हाथ टूटा, 6 बकरियां जलीं, मिला सिर्फ डेढ़ लाख 62 साल की तुलसी बाई ने बताया कि उस दिन ब्लास्ट में घर गिर गया। सरकार ने ब्लास्ट में बेघर हुए कुछ लोगों कि व्यवस्था हरदा के आईटीआई कैंपस में की थी। पिछले 14 महीनों से तुलसी बाई अपनी बेटी के साथ वहीं रह रही हैं। तुलसी कहती हैं कि इस घटना में मेरा पैर टूट गया था। घर भी सामान सहित पूरी तरफ बर्बाद हो गया। मैं अपनी बेटी के साथ रहती थी। बस इतना समझिए कि मौत के मुंह से ही बच कर आई हूं। इस उमर में कोई काम भी नहीं होता। उस घटना के बाद हाथ-पैर भी ठीक से काम नहीं करते हैं। घटना के बाद सरकार ने मुझे डेढ़ लाख रुपए दिए थे, वो भी इलाज में ही खर्च हो गए। तुलसी बाई कहती है... मेरे घर में 6 बकरियां थीं। मैं बकरियों को बेचकर ही अपना काम चलती थी। घर था ही इसलिए जैसे-तैसे गुजारा हो जाता था। उस ब्लास्ट में वो सारी बकरियां भी जल गईं। सरकार ने न तो उन बकरियों का कोई पैसा दिया और न ही घर बनवाया। इस उमर में मैं क्या करूं, कहां जाऊं? अब ठीक से चल भी नहीं पाती हूं, फिर भी मैं भोपाल तक पैदल जा रही हूं। हमारे सीएम मोहन यादव उदार हैं। उम्मीद है कि हमारा दर्द समझेंगे। हमारे साथ इंसाफ करेंगे। बेटे की आंखों की रोशनी और याददाश्त चली गई, इलाज के लिए सरकार ने 16 हजार दिए ब्लास्ट के समय रेखा चौहान अपने दस साल के बेटे के साथ घर पर थीं। उन्होंने बताया कि पहले ब्लास्ट के बाद वो बेटे को लेकर भागने लगी तो उनके बेटे के सिर पर एक बड़ा पत्थर लगा और वो वहीं गिर गया। रेखा चौहान बताती हैं कि हम अपने बेटे को लेकर एम्स गए। वहां पता चला कि उसकी आंखों की रोशनी और याददाश्त चली गई है। सरकार ने बेटे के इलाज के लिए हमें 16 हजार रुपए दिए। 6 महीने तक मैं अपने बेटे का इलाज कराती रही। हमारे लगभग दो लाख रुपए खर्च हो गए। अब भी मेरा बेटा पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है। उसको बहुत गुस्सा आता है, शांत नहीं रहता। अब भी उसको समय-समय पर डॉक्टर को दिखाने ले जाना पड़ता है। पीड़ितों की 6 प्रमुख मांगें... - सरकार तुरंत 5 - 5 लाख पीड़ितों को दे। - ये रुपए सरकार आरोपी से वसूल करे I - 2 लाख रुपए सामान नुकसान, 1 लाख रुपए बोरिंग के लिए दे। - गंभीर घायलों को भी 5 लाख रुपए दिए जाएं। - सामान्य घायलों को 3 लाख रुपए दिए जाएं। - जो परिवार पलायन कर गए हैं उन्हें 2 लाख रुपए दें। एनजीटी के निर्देश पर अंतरिम अमाउंट तुरंत म

न्याय यात्रा पर हरदा पटाखा फैक्ट्री ब्लास्ट पीड़ित:बेटे की आंखों की रोशनी चली गई, इलाज के लिए सरकार ने 16 हजार दिए
6 फरवरी 2024 का वो मनहूस दिन हम नहीं भूल सकते। हरदा की पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से हमारे घर टूट गए। 14 महीने से हम किराए के मकान में रहने को मजबूर हैं। मैं अकेला ही ऐसा नहीं हूं। कई परिवारों की यही कहानी है। ये दर्द है हरदा के देवीसिंह राजपूत का… और इनकी तरह ही कई परिवारों का। इस हादसे में 13 लोगों की मौत हुई थी। 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। हादसे के बाद कई परिवारों को मुआवजा मिला लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि सरकार से कोई मदद नहीं मिली। ऐसे ही परिवारों के करीब 40 लोग हरदा से भोपाल की पदयात्रा पर निकले हैं। उन्होंने इसे न्याय यात्रा का नाम दिया है। सीएम डॉ. मोहन यादव से मिलकर उन्हें अपनी पीड़ा बताना चाहते हैं। रविवार को ये लोग रायसेन पहुंचे। क्या है इनकी आपबीती, क्यों इन्हें गर्मी के बीच करीब 150 किमी की पदयात्रा करना पड़ रही है और कैसे थे हरदा पटाखा फैक्ट्री ब्लास्ट के जख्म जो अब तक नहीं भरे नहीं? दैनिक भास्कर ने यात्रा में शामिल लोगों से बात कर इन्हीं सवालों के जवाब तलाशे। रायसेन जिले के औबेदुल्लागंज नगर से 7 किलोमीटर पहले हाथों में बैनर और कुछ तस्वीरें लिए लोग सड़कों पर चलते दिखाई दिए। ये नारे लगाते हुए भोपाल की ओर बढ़ते रहे। करीब 40 लोगों के इस समूह में बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं भी शामिल थे। आगे चल रही एक 6 साल की बच्ची आराध्या से पूछा- कहां जा रही हो। बोली- हमारा घर टूट गया। हमें न्याय भी नहीं मिला इसलिए भोपाल मुख्यमंत्री जी से मिलने जा रहे हैं। 5 महीने पहले हरदा कलेक्टर ने भरोसा दिलाया तो रोक दी थी यात्रा यात्रा में शामिल देवी सिंह राजपूत ने बताया कि मेरा घर टूट गया, लेकिन सरकार ने अब तक कोई मदद नहीं की। 5 महीने पहले भी मांगों को लेकर यात्रा निकाली थी, तब हरदा कलेक्टर ने हमें भरोसा दिलाया कि सही मुआवजा दिलाने में मदद करेंगे। उन पर भरोसा करके हमने यात्रा रोक दी थी लेकिन मदद नहीं मिली। इस बार 3 अप्रैल को हमारी टोली हरदा से भोपाल की न्याय यात्रा पर निकली। बदन पर कपड़ा छोड़कर कुछ नहीं बचा था मेरा 500 वर्ग फीट का दो मंजिला मकान था। गृहस्थी का सारा सामान था। उस ब्लास्ट में सब कुछ बर्बाद हो गया। जो बदन पर कपड़ा था सिर्फ वही बचा था। सरकार ने त्वरित सहायता के रूप में डेढ़ लाख रुपए दिए थे। पिछले 14 महीने से परिवार को लेकर चार हजार रुपए हर महीने वाले किराए के घर में रह रहा हूं। अफसरों ने कहा- तुम्हें बहुत पैसा मिल चुका, अब कुछ नहीं मिलेगा हरदा पटाखा फैक्ट्री के पास रहने वाले रवि चंदेले बताते हैं कि जिस दिन पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट हुआ मेरे भैया-भाभी बाहर निकल गए थे, लेकिन फिर उन्हें याद आया कि हमारे लकवाग्रस्त पिताजी घर के अंदर ही फंस गए हैं। पिताजी को बचाने के लिए भैया-भाभी अंदर गए। उसके बाद वह कभी नहीं लौटे। उनकी वहीं मौत हो गई। भैया-भाभी के चार बच्चे हैं। भैया-भाभी की मौत के बाद सरकार ने मरने वालों का जो मुआवजा था वह बच्चों को दिया है। उस घटना में हमारा 750 वर्ग फीट का मकान और उसमें रखा सारा सामान बर्बाद हो गया। सरकार ने उस समय वादा किया था कि मकान की मरम्मत और नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा दिया जाएगा, लेकिन आज तक हमें उसका मुआवजा नहीं मिला। जब भी हम अफसरों के पास अपने मुआवजे के लिए जाते हैं तो वह हमसे कहते हैं कि तुम्हें तो वैसे भी बहुत सारा पैसा मिल चुका है। अब तुम्हें कोई पैसा नहीं मिलेगा। जबकि मुझे कोई मुआवजा नहीं मिला है। मेरे भाई के बच्चों को मिला है। उसके चार छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनका पूरा जीवन पड़ा है। वह पैसा उनका है। घर गिर गया, हाथ टूटा, 6 बकरियां जलीं, मिला सिर्फ डेढ़ लाख 62 साल की तुलसी बाई ने बताया कि उस दिन ब्लास्ट में घर गिर गया। सरकार ने ब्लास्ट में बेघर हुए कुछ लोगों कि व्यवस्था हरदा के आईटीआई कैंपस में की थी। पिछले 14 महीनों से तुलसी बाई अपनी बेटी के साथ वहीं रह रही हैं। तुलसी कहती हैं कि इस घटना में मेरा पैर टूट गया था। घर भी सामान सहित पूरी तरफ बर्बाद हो गया। मैं अपनी बेटी के साथ रहती थी। बस इतना समझिए कि मौत के मुंह से ही बच कर आई हूं। इस उमर में कोई काम भी नहीं होता। उस घटना के बाद हाथ-पैर भी ठीक से काम नहीं करते हैं। घटना के बाद सरकार ने मुझे डेढ़ लाख रुपए दिए थे, वो भी इलाज में ही खर्च हो गए। तुलसी बाई कहती है... मेरे घर में 6 बकरियां थीं। मैं बकरियों को बेचकर ही अपना काम चलती थी। घर था ही इसलिए जैसे-तैसे गुजारा हो जाता था। उस ब्लास्ट में वो सारी बकरियां भी जल गईं। सरकार ने न तो उन बकरियों का कोई पैसा दिया और न ही घर बनवाया। इस उमर में मैं क्या करूं, कहां जाऊं? अब ठीक से चल भी नहीं पाती हूं, फिर भी मैं भोपाल तक पैदल जा रही हूं। हमारे सीएम मोहन यादव उदार हैं। उम्मीद है कि हमारा दर्द समझेंगे। हमारे साथ इंसाफ करेंगे। बेटे की आंखों की रोशनी और याददाश्त चली गई, इलाज के लिए सरकार ने 16 हजार दिए ब्लास्ट के समय रेखा चौहान अपने दस साल के बेटे के साथ घर पर थीं। उन्होंने बताया कि पहले ब्लास्ट के बाद वो बेटे को लेकर भागने लगी तो उनके बेटे के सिर पर एक बड़ा पत्थर लगा और वो वहीं गिर गया। रेखा चौहान बताती हैं कि हम अपने बेटे को लेकर एम्स गए। वहां पता चला कि उसकी आंखों की रोशनी और याददाश्त चली गई है। सरकार ने बेटे के इलाज के लिए हमें 16 हजार रुपए दिए। 6 महीने तक मैं अपने बेटे का इलाज कराती रही। हमारे लगभग दो लाख रुपए खर्च हो गए। अब भी मेरा बेटा पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है। उसको बहुत गुस्सा आता है, शांत नहीं रहता। अब भी उसको समय-समय पर डॉक्टर को दिखाने ले जाना पड़ता है। पीड़ितों की 6 प्रमुख मांगें... - सरकार तुरंत 5 - 5 लाख पीड़ितों को दे। - ये रुपए सरकार आरोपी से वसूल करे I - 2 लाख रुपए सामान नुकसान, 1 लाख रुपए बोरिंग के लिए दे। - गंभीर घायलों को भी 5 लाख रुपए दिए जाएं। - सामान्य घायलों को 3 लाख रुपए दिए जाएं। - जो परिवार पलायन कर गए हैं उन्हें 2 लाख रुपए दें। एनजीटी के निर्देश पर अंतरिम अमाउंट तुरंत मिलना चाहिए सुप्रीम कोर्ट की वकील और हरदा मामले में पीड़ितों की वकील अवनी बंसल कहती हैं कि जिला कलेक्टर ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 33 लोगों का घर 100% क्षतिग्रस्त था। उनको घर, सामान सभी का सही मुआवजा मिलना चाहिए। मैं उनकी लड़ाई कोर्ट में लड़ रही हूं। एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के निर्देश के अनुसार अभी तक जो अंतरिम अमाउंट देने के लिए कहा है वो पीड़ितों को तुरंत मिलना चाहिए। सरकार पता नहीं क्यों जब भी कोई घटना होती है तो तुरंत सिर्फ 1-2 लाख का मुआवजा घोषित कर देती है। जबकि हमारी मांग है कि कानूनी रूप से नुकसान का सही मुआवजा पीड़ित को मिलना चाहिए। प्रशासन का दावा- सभी को मुआवजा दिया जा चुका है इस बारे में जिला प्रशासन का कहना है कि सरकार की और से घोषित और एजीटी के आदेशानुसार सभी प्रभावितों को मुआवजा दिया जा चुका है। जहां तक क्षतिग्रस्त मकानों का सवाल है, सर्वे कराकर शासन के नियमानुसार मुआवजा दिया जा चुका है। एनजीटी के आदेश के मुताबिक जो सहायता राशि दी गई वह पूर्व में दिए गए मुआवजे को काटकर दी गई है। यह आदेश एनजीटी ने ही दिया था। मामले से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... हरदा पटाखा फैक्ट्री अनफिट थी, इसलिए हुआ हादसा हरदा में 6 फरवरी 2024 की सुबह 11 बजे पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट में 11 लोगों की मौत हो गई। एसडीएम केसी परते ने कहा- पटाखा फैक्ट्री फिट नहीं थी, तभी तो यह हादसा हुआ। इस फैक्ट्री की जांच एक माह पहले हुई थी, तब वह सही पाई गई थी। इसके बाद संभवत: फैक्ट्री मालिक राजेश उर्फ राजू अग्रवाल ने ओवर स्टॉक या अवैध निर्माण किया होगा, जिससे यह हादसा हुआ। पढ़ें पूरी खबर...