कालजयी साहित्यकार स्मरण श्रृंखला:ऐसे साहित्यकारों के द्वारा लिखा साहित्य हमेशा प्रेरणा प्रदान करता है - डॉ.आभा होलकर
कालजयी साहित्यकार स्मरण श्रृंखला:ऐसे साहित्यकारों के द्वारा लिखा साहित्य हमेशा प्रेरणा प्रदान करता है - डॉ.आभा होलकर
हिन्दी साहित्य जगत में कृष्णदेव प्रसाद गौड़ जो ‘बेढब बनारसी’ के नाम से सुविख्यात हुए पर केन्द्रित कार्यक्रम श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर ने अपने कालजयी साहित्यकार स्मरण श्रृंखला में सम्पन्न किया। यह 86वां आयोजन था। बेढब बनारसी का जन्म 11 नवम्बर, 1895 को हुआ और अवसान 6 मई, 1968 को। उनकी लेखन शैली इस प्रकार की रही कि उन्हें लोग बेढब बनारसी ही पुकारते रहे। बनारस में होने वाले साहित्य कला और संस्कृति से संबंधित कार्यक्रमों में उन्हें बड़े आदर के साथ आमंत्रित किया जाता था। उन्होंने काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, आंधी, प्रसाद, खुदा की राह पर, तरंग, बेढब और करेला जैसी अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। उनके साहित्यिक कृतित्व और व्यक्तित्व का परिचय देते हुए प्रचारमंत्री हरेराम वाजपेयी ने बताया कि उनका मर्यादित हास्य, पत्रकारिता का बनारसी अंदाज ओर चुटीली व्यंग्यात्मक भाषा-शैली बहुत ही लोकप्रिय हुई जो हिन्दी जगत की अनमोल धरोहर है। उन्होंने कहानियां, कविता, उपन्यास भी लिखे किन्तु सबसे अधिक प्रशंसा उन्हें बनारसी हंसी-ढिढोली में मिली। अरविन्द जोशी ने कहा कि बेढब बनारसी पैरोडी लिखने में माहिर थे। संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उन्हें बड़े आदर के साथ आमंत्रित किया जाता था। डॉ. आभा होल्कर ने कहा कि ऐसे साहित्यकारों के द्वारा लिखा साहित्य हमेशा प्रेरणा प्रदान करता है। के.आर. ओसवाल ने कहा कि उनकी रचनाएं, उनके समान ही कालजयी है। इस अवसर पर डॉ. कमल हेतावल, अर्थमंत्री राजेश शर्मा, प्रबंधमंत्री घनश्याम यादव, सुब्रतो बॉस आदि उपस्थित थे। प्रकाशन मंत्री अनिल भोजे ने आभार माना। बेढब बनारसी की ये पंक्तियां आज भी समसामयिक हैं - बहुतों ने वोट दिया, कितनों ने नोट दिया, कुछ को तालियां मिलीं, कुछ को गालियां मिली, हारने वाले रोये, वोटर मौज से सोये, देश कहां जाना है किसी को पता नहीं, सब यही कहते हैं, हमारी खता नहीं।
हिन्दी साहित्य जगत में कृष्णदेव प्रसाद गौड़ जो ‘बेढब बनारसी’ के नाम से सुविख्यात हुए पर केन्द्रित कार्यक्रम श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर ने अपने कालजयी साहित्यकार स्मरण श्रृंखला में सम्पन्न किया। यह 86वां आयोजन था। बेढब बनारसी का जन्म 11 नवम्बर, 1895 को हुआ और अवसान 6 मई, 1968 को। उनकी लेखन शैली इस प्रकार की रही कि उन्हें लोग बेढब बनारसी ही पुकारते रहे। बनारस में होने वाले साहित्य कला और संस्कृति से संबंधित कार्यक्रमों में उन्हें बड़े आदर के साथ आमंत्रित किया जाता था। उन्होंने काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, आंधी, प्रसाद, खुदा की राह पर, तरंग, बेढब और करेला जैसी अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। उनके साहित्यिक कृतित्व और व्यक्तित्व का परिचय देते हुए प्रचारमंत्री हरेराम वाजपेयी ने बताया कि उनका मर्यादित हास्य, पत्रकारिता का बनारसी अंदाज ओर चुटीली व्यंग्यात्मक भाषा-शैली बहुत ही लोकप्रिय हुई जो हिन्दी जगत की अनमोल धरोहर है। उन्होंने कहानियां, कविता, उपन्यास भी लिखे किन्तु सबसे अधिक प्रशंसा उन्हें बनारसी हंसी-ढिढोली में मिली। अरविन्द जोशी ने कहा कि बेढब बनारसी पैरोडी लिखने में माहिर थे। संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उन्हें बड़े आदर के साथ आमंत्रित किया जाता था। डॉ. आभा होल्कर ने कहा कि ऐसे साहित्यकारों के द्वारा लिखा साहित्य हमेशा प्रेरणा प्रदान करता है। के.आर. ओसवाल ने कहा कि उनकी रचनाएं, उनके समान ही कालजयी है। इस अवसर पर डॉ. कमल हेतावल, अर्थमंत्री राजेश शर्मा, प्रबंधमंत्री घनश्याम यादव, सुब्रतो बॉस आदि उपस्थित थे। प्रकाशन मंत्री अनिल भोजे ने आभार माना। बेढब बनारसी की ये पंक्तियां आज भी समसामयिक हैं - बहुतों ने वोट दिया, कितनों ने नोट दिया, कुछ को तालियां मिलीं, कुछ को गालियां मिली, हारने वाले रोये, वोटर मौज से सोये, देश कहां जाना है किसी को पता नहीं, सब यही कहते हैं, हमारी खता नहीं।