जहां हाथियों की मौत हुई वहां कोदो का भाव घटा:व्यापारी कह रहे-मांग नहीं, किसान बोले-आधा दाम भी नहीं मिल रहा, अब नहीं उगाएंगे
जहां हाथियों की मौत हुई वहां कोदो का भाव घटा:व्यापारी कह रहे-मांग नहीं, किसान बोले-आधा दाम भी नहीं मिल रहा, अब नहीं उगाएंगे
उमरिया के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 29 से 31 अक्टूबर के बीच 10 हाथियों की मौत के बाद कोदो मिलेट्स उत्पादन करने वाले किसानों के लिए नया संकट खड़ा हो गया है। श्री अन्न के नाम से ब्रांडिंग हो रही है, लेकिन इस फसल को खरीदार नहीं मिल रहे। हालत ये है कि व्यापारी आधे से कम दाम में भी खरीदने को तैयार नहीं हैं। वजह- अभी तक की जांच में कोदो को ही हाथियों की मौत का जिम्मेदार बताया गया है। ऐसे में किसान सरकार की ओर देख रहे हैं। दूसरी तरफ कोदो में जहर मिलने पर एनजीटी ने चिंता जताते हुए पीसीसीएफ, कलेक्टर और केंद्र को नोटिस जारी किया है। क्या वाकई हाथियों की मौत की वजह से कोदो की मांग अचानक कम हो गई। दैनिक भास्कर ने किसानों, व्यापारियों और एग्रीकल्चर एक्सपर्ट्स से बात की। पढ़िए रिपोर्ट... कोदो की फसल भी श्री अन्न में शामिल
एक साल पहले शहडोल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुटकी की खीर और कोदो का भात परोसा गया। तब से सरकार मोटे अनाज की ब्रांडिंग कर रही है। 2024 तक श्री अन्न के रूप में मनाने का फैसला लिया गया। इसे 2026 तक बढ़ा दिया गया। श्री अन्न यानी छोटे दानों वाले अनाज की फसलों का एक समूह। मोटे अनाजों को ये नाम वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल बजट के दौरान दिया था। इन्हीं श्री अन्न में कोदो भी शामिल है। यह लघु धान्य फसल है। अन्य फसलें हैं- रागी, ज्वार, बाजरा, सवा/संवा/झांगोरा, कुटकी और कंगनी। हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार मोटा अनाज मोटापा, दिल की बीमारियां, टाइप-2 डायबिटीज और कैंसर का खतरा घटाता है। यह शरीर में ऐसे बैक्टीरिया की संख्या को बढ़ाता है, जो आंतों की सेहत दुरुस्त रखते हैं। इसमें फाइबर के साथ विटामिन-बी, फोलेट, जिंक, आयरन, मैग्नीशियम, आयरन और कई तरह के एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं। श्री अन्न अपनी ग्लूटेन मुक्त पोषण संरचना के कारण चावल और गेहूं से बेहतर होते हैं। इनमें कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स के साथ प्रोबायोटिक और एंटी ऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। किसान बोले- कोदो उगाकर हम बर्बाद हो गए
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के नजदीकी गांवों में 9500 हेक्टेयर में कोदो की फसल उगाई जाती है। किसान राम सिंह का कहना है, ‘हाथियों के मरने से हमें क्या लेना-देना। हमारी क्या गलती है। यह बात तो शासन जाने या वन विभाग। पिछले साल कोदो 40 से 45 रुपए प्रति किलो तक बेचा था। इस बार 15 रुपए किलो में भी खरीदने को तैयार नहीं हैं। हम तो बर्बाद हो जाएंगे। हमारे यहां हजारों क्विंटल कोदो की फसल पड़ी है। शासन इस पर ध्यान नहीं दे रहा। सरकार ने जब कोदो को प्रमोट किया, तो हमने इसकी खेती की। इस तरह होगा, तो हम मर जाएंगे।’ किसान कमलेश्वर बताते हैं, ‘कोदो खाने से हाथी मर गए। अब हमारी फसल लेने वाला कोई नहीं है। अब हम कोदो की खेती नहीं करेंगे। मेरे पास 20 क्विंटल कोदो है। सरकार कहती है कि मोटे अनाज की खेती करो, तो हम करते हैं। इस बार ज्यादा खेती की है। किसान बहादुर सिंह ने बताया कि कोदो बेचने गए, तो व्यापारी ने यह कहकर इनकार कर दिया कि सलखनियां में कोदो खाने से हाथियों की मौत हो गई है। ऐसे में हम इसे नहीं लेंगे। अब हम कहां ले जाएं फसल को। व्यापारियों ने 15 रुपए प्रति किलो भाव बताया। अब हम कहां जाएंगे। मानपुर क्षेत्र के किसानों ने बताया कि हाथियों की मौत के बाद फसल कोई नहीं ले रहा। फसल का भाव भी नहीं मिल रहा, जिसको लेकर परेशानी हो रही है। व्यापारी बोले- मंडी से मांग नहीं आ रही
उमरिया में कोदो खरीदने वाले व्यापारी खुलकर तो कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन ये जरूर कहते हैं कि हाथियों की मौत के कारण ही इस बार मांग नहीं आ रही। व्यापारियों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, ‘कोदो का बाजार इस समय मंदा है। मंडी में मांग नहीं आ रही। कोदो का भाव इस समय 15 से 20 रुपए प्रति किलो है। पिछले साल 35 से 45 रुपए प्रति किलो तक था। मध्यप्रदेश में कोदो की मंडी नहीं है। यहां से कोदो नासिक भेजा जाता है। हाथियों की मौत राष्ट्रीय मुद्दा बन गई। शायद, इसलिए नासिक मंडी से ही मांग नहीं आ रही। दूसरा कारण- नई फसल भी है। अधिकारी कह रहे- परेशान नहीं होने देंगे
उमरिया में कृषि विभाग के उप संचालक संग्राम सिंह ने बताया, ‘जिले में इस बार करीब 9500 हेक्टेयर में करीब 10 हजार किसानों ने कोदो की खेती की है। क्योंकि सरकार इसे प्रमोट कर रही है, इसलिए कोदो की खेती को लेकर नई–नई तकनीक किसानों को समझाते हैं। उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं। वर्तमान हालात को देखते हुए अन्न श्री योजना के तहत किसानों की सूची मंगवाएंगे। 3900 रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। शासन को पत्र लिखा जाएगा। व्यापारियों और सरकार से संपर्क करेंगे। किसानों को परेशानी न हो, इसका ध्यान रखेंगे।' फसल कटवाई जा रही है, किसान सहयोग कर रहे
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा कहते हैं, ‘टाइगर रिजर्व क्षेत्र में 3500 एकड़ में कोदो की फसल बोयी गई थी, जिसमें पूरी फसल कटवाई जा रही है। किसान सहयोग कर रहे हैं। फसल पर निगरानी रख रहे हैं। जो भी फसल बची है, वहां देख रहे हैं कि जंगली जानवर उधर न जाएं।’ एक्सपर्ट बोले- समस्या का समाधान हो जाए, तब बेचें
डिंडौरी कृषि विज्ञान केंद्र की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. गीता सिंह ने बताया कि कोदो लघु धान्य फसल है। यह सेहत के लिए फायदेमंद है। कटाई करते समय किसान खेत में ही गट्ठे बनाकर रख देते हैं। अगर नमी रह जाती है, तो यह विषैला हो जाता है। इसे खाने से उल्टी और डिहाइड्रेशन की शिकायत होती है। इसके लिए किसानों को खेत में गट्ठे बनाकर नहीं रखने की सलाह दी जाती है। कोदो फसल की बुवाई जुलाई महीने में की जाती है। इसके लिए ज्यादा पानी की जरूरत भी नहीं पड़ती। इसमें लागत भी बहुत कम आती है। भाव नहीं मिल रहा, तो किसान इंतजार करें
डिंडौरी कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीएन श्रीवास कहते हैं कि पिछले दो साल में कोदो का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ है। इससे रकबा बढ़ा है। एक एकड़ में करीब 5 हजार रुपए लागत आत
उमरिया के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 29 से 31 अक्टूबर के बीच 10 हाथियों की मौत के बाद कोदो मिलेट्स उत्पादन करने वाले किसानों के लिए नया संकट खड़ा हो गया है। श्री अन्न के नाम से ब्रांडिंग हो रही है, लेकिन इस फसल को खरीदार नहीं मिल रहे। हालत ये है कि व्यापारी आधे से कम दाम में भी खरीदने को तैयार नहीं हैं। वजह- अभी तक की जांच में कोदो को ही हाथियों की मौत का जिम्मेदार बताया गया है। ऐसे में किसान सरकार की ओर देख रहे हैं। दूसरी तरफ कोदो में जहर मिलने पर एनजीटी ने चिंता जताते हुए पीसीसीएफ, कलेक्टर और केंद्र को नोटिस जारी किया है। क्या वाकई हाथियों की मौत की वजह से कोदो की मांग अचानक कम हो गई। दैनिक भास्कर ने किसानों, व्यापारियों और एग्रीकल्चर एक्सपर्ट्स से बात की। पढ़िए रिपोर्ट... कोदो की फसल भी श्री अन्न में शामिल
एक साल पहले शहडोल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुटकी की खीर और कोदो का भात परोसा गया। तब से सरकार मोटे अनाज की ब्रांडिंग कर रही है। 2024 तक श्री अन्न के रूप में मनाने का फैसला लिया गया। इसे 2026 तक बढ़ा दिया गया। श्री अन्न यानी छोटे दानों वाले अनाज की फसलों का एक समूह। मोटे अनाजों को ये नाम वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल बजट के दौरान दिया था। इन्हीं श्री अन्न में कोदो भी शामिल है। यह लघु धान्य फसल है। अन्य फसलें हैं- रागी, ज्वार, बाजरा, सवा/संवा/झांगोरा, कुटकी और कंगनी। हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार मोटा अनाज मोटापा, दिल की बीमारियां, टाइप-2 डायबिटीज और कैंसर का खतरा घटाता है। यह शरीर में ऐसे बैक्टीरिया की संख्या को बढ़ाता है, जो आंतों की सेहत दुरुस्त रखते हैं। इसमें फाइबर के साथ विटामिन-बी, फोलेट, जिंक, आयरन, मैग्नीशियम, आयरन और कई तरह के एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं। श्री अन्न अपनी ग्लूटेन मुक्त पोषण संरचना के कारण चावल और गेहूं से बेहतर होते हैं। इनमें कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स के साथ प्रोबायोटिक और एंटी ऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। किसान बोले- कोदो उगाकर हम बर्बाद हो गए
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के नजदीकी गांवों में 9500 हेक्टेयर में कोदो की फसल उगाई जाती है। किसान राम सिंह का कहना है, ‘हाथियों के मरने से हमें क्या लेना-देना। हमारी क्या गलती है। यह बात तो शासन जाने या वन विभाग। पिछले साल कोदो 40 से 45 रुपए प्रति किलो तक बेचा था। इस बार 15 रुपए किलो में भी खरीदने को तैयार नहीं हैं। हम तो बर्बाद हो जाएंगे। हमारे यहां हजारों क्विंटल कोदो की फसल पड़ी है। शासन इस पर ध्यान नहीं दे रहा। सरकार ने जब कोदो को प्रमोट किया, तो हमने इसकी खेती की। इस तरह होगा, तो हम मर जाएंगे।’ किसान कमलेश्वर बताते हैं, ‘कोदो खाने से हाथी मर गए। अब हमारी फसल लेने वाला कोई नहीं है। अब हम कोदो की खेती नहीं करेंगे। मेरे पास 20 क्विंटल कोदो है। सरकार कहती है कि मोटे अनाज की खेती करो, तो हम करते हैं। इस बार ज्यादा खेती की है। किसान बहादुर सिंह ने बताया कि कोदो बेचने गए, तो व्यापारी ने यह कहकर इनकार कर दिया कि सलखनियां में कोदो खाने से हाथियों की मौत हो गई है। ऐसे में हम इसे नहीं लेंगे। अब हम कहां ले जाएं फसल को। व्यापारियों ने 15 रुपए प्रति किलो भाव बताया। अब हम कहां जाएंगे। मानपुर क्षेत्र के किसानों ने बताया कि हाथियों की मौत के बाद फसल कोई नहीं ले रहा। फसल का भाव भी नहीं मिल रहा, जिसको लेकर परेशानी हो रही है। व्यापारी बोले- मंडी से मांग नहीं आ रही
उमरिया में कोदो खरीदने वाले व्यापारी खुलकर तो कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन ये जरूर कहते हैं कि हाथियों की मौत के कारण ही इस बार मांग नहीं आ रही। व्यापारियों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, ‘कोदो का बाजार इस समय मंदा है। मंडी में मांग नहीं आ रही। कोदो का भाव इस समय 15 से 20 रुपए प्रति किलो है। पिछले साल 35 से 45 रुपए प्रति किलो तक था। मध्यप्रदेश में कोदो की मंडी नहीं है। यहां से कोदो नासिक भेजा जाता है। हाथियों की मौत राष्ट्रीय मुद्दा बन गई। शायद, इसलिए नासिक मंडी से ही मांग नहीं आ रही। दूसरा कारण- नई फसल भी है। अधिकारी कह रहे- परेशान नहीं होने देंगे
उमरिया में कृषि विभाग के उप संचालक संग्राम सिंह ने बताया, ‘जिले में इस बार करीब 9500 हेक्टेयर में करीब 10 हजार किसानों ने कोदो की खेती की है। क्योंकि सरकार इसे प्रमोट कर रही है, इसलिए कोदो की खेती को लेकर नई–नई तकनीक किसानों को समझाते हैं। उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं। वर्तमान हालात को देखते हुए अन्न श्री योजना के तहत किसानों की सूची मंगवाएंगे। 3900 रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। शासन को पत्र लिखा जाएगा। व्यापारियों और सरकार से संपर्क करेंगे। किसानों को परेशानी न हो, इसका ध्यान रखेंगे।' फसल कटवाई जा रही है, किसान सहयोग कर रहे
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा कहते हैं, ‘टाइगर रिजर्व क्षेत्र में 3500 एकड़ में कोदो की फसल बोयी गई थी, जिसमें पूरी फसल कटवाई जा रही है। किसान सहयोग कर रहे हैं। फसल पर निगरानी रख रहे हैं। जो भी फसल बची है, वहां देख रहे हैं कि जंगली जानवर उधर न जाएं।’ एक्सपर्ट बोले- समस्या का समाधान हो जाए, तब बेचें
डिंडौरी कृषि विज्ञान केंद्र की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. गीता सिंह ने बताया कि कोदो लघु धान्य फसल है। यह सेहत के लिए फायदेमंद है। कटाई करते समय किसान खेत में ही गट्ठे बनाकर रख देते हैं। अगर नमी रह जाती है, तो यह विषैला हो जाता है। इसे खाने से उल्टी और डिहाइड्रेशन की शिकायत होती है। इसके लिए किसानों को खेत में गट्ठे बनाकर नहीं रखने की सलाह दी जाती है। कोदो फसल की बुवाई जुलाई महीने में की जाती है। इसके लिए ज्यादा पानी की जरूरत भी नहीं पड़ती। इसमें लागत भी बहुत कम आती है। भाव नहीं मिल रहा, तो किसान इंतजार करें
डिंडौरी कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीएन श्रीवास कहते हैं कि पिछले दो साल में कोदो का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ है। इससे रकबा बढ़ा है। एक एकड़ में करीब 5 हजार रुपए लागत आती है। जब तक हाथियों की मौत के मामले में स्थिति साफ नहीं हो जाएगी, तब तक ऐसा रहेगा। हालांकि यह सभी खेतों में नहीं होगा, लेकिन फिर भी लोगों में डर है। अगर भाव नहीं मिल रहा, तो किसानों को इंतजार करना चाहिए। इसे स्टोर करके रख सकते हैं। जब समस्या का निदान हो जाए, तब बेच सकते हैं। डॉ. श्रीवास का कहना है कि किसान अपनी फसल का एक्सपर्ट होता है। वह बेचने से पहले इसे थोड़ी मात्रा में खाकर देखेगा। पहली बार में ही गड़बड़ समझ आ जाएगी। अगर शराब के बराबर नशा होगा, तो समझ जाएगा कि यह खाने लायक नहीं है। कोदो की फसल लगाना फायदेमंद है?
देश में मोटे अनाज को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे किसानों को भी फायदा होगा। इसकी खेती लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। इसमें पानी की खपत कम होती है। यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत नहीं पड़ती। कोदो की खेती सिंचित और असिंचित जमीन पर हो जाती है। यह ऐसी फसल है जो ढाई महीने में तैयार हो जाती है। मध्यप्रदेश सरकार ने श्री अन्न प्रोत्साहन योजना लागू करने की घोषणा की है। जिसके तहत मोटे अनाज की खेती पर किसानों को प्रति किलो 10 रुपए दिए जाएंगे, जो सीधे उनके बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किए जाएंगे। सरकार ने इस साल कोदो की एमएसपी 3500 रुपए प्रति क्विंटल तय की है। कोदो की फसल में जहर चिंताजनक- एनजीटी
10 जंगली हाथियों की मौत के मामले में एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने भी संज्ञान लिया है। एनजीटी ने कहा कि कोदो की फसल में माइसोटॉक्सिन पाया जाना चिंता का विषय है। फसल के संपर्क में आने वाले पालतू पशुओं और वन्य जीवों के लिए ये खतरा हो सकता है। ट्रिब्यूनल ने मामले में कई अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। इनमें प्रदेश के पीसीसीएफ, चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन, उमरिया कलेक्टर, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) बरेली के निदेशक और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव शामिल हैं। एनजीटी ने अगली सुनवाई (12 दिसंबर) से एक हफ्ते पहले जवाब दाखिल करने को कहा है। देश में कोदो अनाज का कितना उत्पादन?
साल 2014 में थोक में कोदो 10 रुपए किलो तक बिकता था। सरकार के प्रोत्साहन देने के बाद भाव बढ़कर 40 से 45 रुपए प्रति किलो हो गया। बड़े शहरों में पैकिंग कर रिटेल में 90 से 100 रुपए प्रति किलो तक बिकता है। वहीं, उत्पादन की बात करें, तो साल 2014 में प्रदेश में 750 एकड़ में 1500 किसान कोदो की खेती करते थे। एमपी में इस बार कोदो-कुटकी की बुआई 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में की गई है। इसकी उन्नत जवाहर किस्म से प्रति हेक्टयर 20 से 22 क्विंटल पैदावार होती है, जबकि औसत उपज 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की है। मध्यप्रदेश सरकार ने मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को बीज खरीदने पर 80 प्रतिशत तक सब्सिडी देने का ऐलान किया है। एमपी सहित देश में लगातार इसका रकबा बढ़ता जा रहा है। इससे जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें... एक्सपर्ट बोले- लीडर के मरने पर उग्र हो जाते हैं हाथी उमरिया में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से सटे चंदिया वन परिक्षेत्र में 2 नवंबर को हाथी ने तीन लोगों को कुचल दिया। दो लोगों की जान चली गई। यह वही हाथी है, जिसके झुंड के 10 हाथियों की 31 अक्टूबर से 2 नवंबर के बीच मौत हुई। इसके बाद सवाल खड़ा हो गया कि हाथी बदला लेने आ गया। कारण- इस गांव में पहली बार हाथी का अटैक हुआ। पढ़ें पूरी खबर... हाथियों ने 3 लोगों को कुचला, 2 की मौत उमरिया में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के चंदिया वन परिक्षेत्र में हाथियों ने 3 लोगों को कुचल दिया। इनमें 2 लोगों की मौत हो गई। एक युवक घायल है। घटना शनिवार सुबह एनएच-43 से लगे देवरा गांव की है। ये गांव उस सलखनिया गांव से महज 4 किलोमीटर दूर है, जहां पिछले 3 दिन में 10 हाथियों की मौत हो चुकी है। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें बांधवगढ़ में कैसे हुई 10 हाथियों की मौत बांधवगढ़ नेशनल पार्क में दो दिन में 10 हाथियों की मौत का रहस्य अब भी बरकरार है। वन विभाग की टीम मौत का वास्तविक कारण पता नहीं लगा सकी है। महकमा प्रारंभिक रूप से कोदो की फसल को ही जिम्मेदार मान रहा है। हाथियों में कोदो से जहर फैलने की आशंका के चलते अब विभाग इस फसल को ही नष्ट करा रहा है। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें बांधवगढ़ में मल्टीपल-ऑर्गन डैमेज से हुई 10 हाथियों की मौत उमरिया के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में तीन दिन में 10 हाथियों की मौत मल्टीपल ऑर्गन डैमेज होने से हुई थी। पीएम के दौरान हाथियों के पेट में बड़ी मात्रा में कोदो मिला है। अफसरों का मानना है कि फंगस लगे कोदो से माइको नाम का टॉक्सिन बनता है, जो हाथियों के लिए खतरनाक है। इसके बाद वन विभाग ने सभी परिक्षेत्र में कोदो की फसल दो दिन में नष्ट करवाने के आदेश दिए हैं। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें