शंकराचार्य मठ इंदौर में प्रवचन:परमात्मा ने जितना हम सोच भी नहीं पाते, उससे भी अधिक दिया- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज
शंकराचार्य मठ इंदौर में प्रवचन:परमात्मा ने जितना हम सोच भी नहीं पाते, उससे भी अधिक दिया- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज
गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में लिखा है- सकल पदारथ है जग माही कर्महीन नर पावत नाही...परमात्मा ने जितना हम सोच भी नहीं पाते, उससे भी अधिक दिया है, पर जिसको हराम दाढ़ लग जाती है, वह केवल हराम का खाना चाहता है। खुद तो कुछ करता नहीं है, अपने आपको श्रेष्ठ बताने के लिए बड़ी-बड़ी डींगे हांका करता है। दूसरों की दया को वह समझता है कि यह हमसे डर रहे हैं। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में रविवार को यह बात कही। खुद कुछ नहीं करता और भगवान को कोसता है महाराजश्री ने कहा कि व्यक्ति को जो काम उसे आता है, वह काम नहीं करता बल्कि व्यर्थ के कामों में अपना समय बिताता रहता है और भगवान को कोसता है। भगवान ने तो मुझे कुछ दिया ही नहीं। उसे यह नहीं मालूम कि यह शरीर कितना कीमती है। इसका एक-एक अंग बहुमूल्य है। यदि जानना है तो उनसे पूछो जिनकी आंखे नहीं हैं। कान नहीं हैं, हाथ-पांव नहीं हैं। बल नहीं है। तो वे बताएंगे कि शरीर की कीमत क्या है? परमात्मा ने जो हमें दिया, वह अद्भुत है... डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने एक दृष्टांत सुनाया- एक नेत्रहीन व्यक्ति था। वह भिक्षा मांगता था। उसे कोई चवन्नी तो कोई अठन्नी दे देता था। एक दिन एक धनी आदमी वहां से निकला, जहां वह नेत्रहीन व्यक्ति भिक्षा मांगा करता था। उसे दया आ गई। उसने सौ का नोट नेत्रहीन के हाथ पर रख दिया और चला गया। नेत्रहीन भिखारी ने सोचा किसी ने मेरे साथ उपहास किया है और सौ के नोट को कागज का टुकड़ा समझकर फेंक दिया। एक तीसरा व्यक्ति यह सब देख रहा था। वह नेत्रहीन के पास आया, सौ का नोट उठाया और नेत्रहीन के हाथों में रखकर कहा तुम जिसे कागज समझ रहे हो, वह सौ का नोट है। नेत्रहीन व्यक्ति बड़ा खुश हुआ। ठीक इसी तरह परमात्मा ने इतना कुछ दिया है। ज्ञानचक्षु न होने के कारण हम उसे जान ही नहीं पाते। परमात्मा ने जो हमें दिया है, वह अद्भुत है।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में लिखा है- सकल पदारथ है जग माही कर्महीन नर पावत नाही...परमात्मा ने जितना हम सोच भी नहीं पाते, उससे भी अधिक दिया है, पर जिसको हराम दाढ़ लग जाती है, वह केवल हराम का खाना चाहता है। खुद तो कुछ करता नहीं है, अपने आपको श्रेष्ठ बताने के लिए बड़ी-बड़ी डींगे हांका करता है। दूसरों की दया को वह समझता है कि यह हमसे डर रहे हैं। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में रविवार को यह बात कही। खुद कुछ नहीं करता और भगवान को कोसता है महाराजश्री ने कहा कि व्यक्ति को जो काम उसे आता है, वह काम नहीं करता बल्कि व्यर्थ के कामों में अपना समय बिताता रहता है और भगवान को कोसता है। भगवान ने तो मुझे कुछ दिया ही नहीं। उसे यह नहीं मालूम कि यह शरीर कितना कीमती है। इसका एक-एक अंग बहुमूल्य है। यदि जानना है तो उनसे पूछो जिनकी आंखे नहीं हैं। कान नहीं हैं, हाथ-पांव नहीं हैं। बल नहीं है। तो वे बताएंगे कि शरीर की कीमत क्या है? परमात्मा ने जो हमें दिया, वह अद्भुत है... डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने एक दृष्टांत सुनाया- एक नेत्रहीन व्यक्ति था। वह भिक्षा मांगता था। उसे कोई चवन्नी तो कोई अठन्नी दे देता था। एक दिन एक धनी आदमी वहां से निकला, जहां वह नेत्रहीन व्यक्ति भिक्षा मांगा करता था। उसे दया आ गई। उसने सौ का नोट नेत्रहीन के हाथ पर रख दिया और चला गया। नेत्रहीन भिखारी ने सोचा किसी ने मेरे साथ उपहास किया है और सौ के नोट को कागज का टुकड़ा समझकर फेंक दिया। एक तीसरा व्यक्ति यह सब देख रहा था। वह नेत्रहीन के पास आया, सौ का नोट उठाया और नेत्रहीन के हाथों में रखकर कहा तुम जिसे कागज समझ रहे हो, वह सौ का नोट है। नेत्रहीन व्यक्ति बड़ा खुश हुआ। ठीक इसी तरह परमात्मा ने इतना कुछ दिया है। ज्ञानचक्षु न होने के कारण हम उसे जान ही नहीं पाते। परमात्मा ने जो हमें दिया है, वह अद्भुत है।