साल के 295 दिन गंदगी भरी शिप्रा में स्नान:600 करोड़ खर्च फिर भी नर्मदा से नहीं मिल रहा पानी; अब 900 करोड़ का दूसरा प्रोजेक्ट

उज्जैन के त्रिवेणी संगम पर शिप्रा में गंदगी भरा पानी मिलाने वाली कान्ह नदी को 28.5 किमी का डक्ट बनाकर शहर से बाहर करने के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। इसकी लागत 900 करोड़ रुपए है। शिप्रा को प्रदूषण से बचाने और इसके प्रवाह को सालभर बनाए रखने के लिए नर्मदा नदी से लिंक करने के करीब 600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट के बाद शिप्रा को लेकर ये दूसरा मेगा प्रोजेक्ट है। हालांकि, नर्मदा-शिप्रा लिंक की हालत ये है कि भारी भरकम रकम खर्च होने के बाद भी यहां आने वाले श्रद्धालुओं ने साल के 295 दिन सीवेज के पानी से भरी शिप्रा में ही स्नान किया है। कभी शिप्रा के शुद्धिकरण का स्थायी समाधान मानी जा रही नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना तकनीकी रूप से चालू होने के बावजूद नदी को शुद्ध क्यों नहीं कर पा रही है, यह जानने दैनिक भास्कर की टीम इंदौर के नजदीक शिप्रा के उद्गम स्थल मूंडला उज्जैयनी, पंप पॉइंट मूंडला दोस्तार और पाइप लाइन के एंड पॉइंट उज्जैन त्रिवेणी संगम पर पहुंची। आखिर क्या वजह है कि भारी भरकम खर्च के बाद भी सिर्फ 70 दिन ही नर्मदा नदी से शिप्रा तक पानी पहुंच सका है, इस प्राेजेक्ट के कामयाब न होने के बाद अब कान्ह नदी के पानी को डक्ट बनाकर शिप्रा को प्रदूषण से दूर रखने की कवायद कितनी असरदार हो पाएगी, पढ़िए ये रिपोर्ट.... पक्की नहर में एक-दो फीट ठहरा हुआ पानी भास्कर की टीम सबसे पहले इंदौर से बेटमा रोड पर करीब 20 किलोमीटर दूर उज्जैनी मूंडला गांव पहुंची। ग्रामीणों ने बताया कि शिप्रा का उद्गम स्थल काकरी टेकड़ी की पहाड़ी कुछ दूरी पर है। हम संगम स्थल पर पहुंचे तो आसपास दुकानें बंद थी। इक्का-दुक्का लोग ही आ-जा रहे थे। स्थानीय महिलाएं ककड़ी, अमरूद की डलिया लिए बैठी थीं। उन्होंने बताया कि यहां केवल रविवार या छुट्‌टी के दिन भीड़ लगती है, बाकी दिन ऐसा ही रहता है। यहां सीमेंट और टाइल्स से बनाई गई पक्की नहर में एक-दो फीट ठहरा हुआ पानी भरा था। किनारे पर काई नजर आ रही थी। जहां बड़ी पाइप लाइन से नर्मदा जल प्रतीकात्मक रूप से शिप्रा में गिराया जाता है, वह मुख्य झरना सूखा पड़ा था। टेकरी पर बने पार्क की देखभाल करने वाली कंपनी के कर्मचारी अश्विन पटेल ने बताया, 'झरना रेगुलर चलाते हैं। अभी बंद है। हमने पानी में काई वगैरह की सफाई भी कराई है।' यहां से हम करीब 200 सीढ़ियां चढ़कर पहाड़ी पर बने मंदिर पहुंचे। यहां सिर्फ मुख्य उद्गगम कुंड और 10 फीट की दूरी पर बने दूसरे कुंड में ही कुछ लीटर पानी भरा मिला। प्रसाद बेचने वाली बसंती बाई ने बताया कि नीचे छोटे से नाले जैसी जो जगह दिख रही है, यही शिप्रा माई है। ऊपर पाइप लाइन तो डली है लेकिन नदी सूखी रहती है। जब कभी अधिकारी यहां आते हैं, तब पानी भी आता है। बाकी दिन यही हाल रहता है। चौकीदार बोला- पंप खराब हैं, ठीक थे तब पानी चलता था संगम पार्क से करीब दो किलोमीटर दूर मूंडला दोस्तार गांव में नर्मदा नदी से लिफ्ट करके लाए जाने वाले पानी को उद्गम स्थल टेकड़ी के पार्क भेजने के लिए पंप लगे हैं। यहां मौजूद चौकीदार हुकुमचंद ने बताया कि अभी पंप खराब हैं। कुछ दिन पहले ठीक थे, तब पानी चलता था। ओंकारेश्वर के पास से लिफ्ट करके लाए जाने वाले पानी की कुछ मात्रा संगम स्थल के पार्क में छोड़ी जाती थी। इसका बड़ा हिस्सा नजदीक के सोनवा गांव में पाइप लाइन से शिप्रा नदी में छोड़ा जाता था, जो देवास को पार करते हुए उज्जैन पहुंचता था। अब पाइप लाइन डल गई है। पाइप से पानी सीधे त्रिवेणी घाट पहुंच जाता है, यहां के पाइप से कभी-कभी पानी सोनवा गांव में भी छोड़ते हैं। दो-चार दिन में कुछ देर के लिए छोड़ते हैं पानी इसके बाद हम यहां से इंदौर की ओर कुछ किलोमीटर दूर सोनवा गांव पहुंचे। इस गांव से नदी का पाट दिखाई देना शुरू होता है। यहां दोस्तार गांव के पंप से एक पाइप लाकर पानी शिप्रा नदी में छोड़े जाने की व्यवस्था की गई है। इस सोनवा गांव को स्थानीय लोग नर्मदा-शिप्रा का असली संगम भी कहते हैं क्योंकि यहीं से काफी पानी देवास की ओर बहते हुए उज्जैन तक पहुंचता था। लेकिन 2021 में मूंडला के पंप से उज्जैन तक पाइप लाइन डल जाने के बाद यहां भी नहर जैसी छोटी सी नदी में कीचड़ भरा दिखता है। सोनवा गांव में हमें किसान सुरेश अपने खेत में प्याज के रोपे लगवाते मिले। उनके खेत के पास से शिप्रा नदी का रास्ता है। नर्मदा का पानी बिना नुकसान के बहता जाए इसलिए यहां नदी के बहाव वाले हिस्से का ही सीमेंटीकरण कर दिया गया है। पुलिया के पास नदी में कुछ इंच पानी भरा हुआ था। अंतिम बिंदु त्रिवेणी घाट पर कान्ह नदी का गंदा पानी दैनिक भास्कर की टीम नर्मदा-शिप्रा रिवर लिंक परियोजना के अंतिम बिंदु उज्जैन के त्रिवेणी घाट पर पहुंची। इंदौर से उज्जैन की ओर जाने पर उज्जैन से करीब छह किलोमीटर पहले यही जगह शिप्रा, इंदौर की कान्ह नदी और विलुप्त नदी शलगू या गंडगी का संगम है। 10 साल में 154.48 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी शिप्रा में छोड़ा इस दौरान पता लगा कि नर्मदा-शिप्रा लिंक प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद से 10 साल में 154.48 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी शिप्रा में छोड़ा गया है। इसका बिल 350 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है, लेकिन उज्जैन प्रशासन अब तक भुगतान नहीं कर पाया है। इस बारे में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के इंजीनियर एचआर चौहान का कहना है कि बिल ताे जनरेट होंगे ही। बिल भी वही जनरेट हो रहे हैं जो नियम के अनुसार पहले से ही तय रेट है इसलिए बकाया बिल को लेकर कोई संशय नहीं हाेना चाहिए। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण मर्जी से पानी नहीं भेजता। उज्जैन प्रशासन जितना डिमांड भेजता है, उसी के अनुसार पानी देते हैं। बिल भरा जाना या न भरा जाना, सरकारी विभागों के बीच का मामला है। लेकिन नियमों के अनुसार बिल जनरेट होते ही हैं। अब सारी उम्मीदें कान्ह योजना पर टिकीं जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर राजेश चौऋषिया ने बताया- क्लोज डक्ट योजना की टेंडर शर्त के अनुसार, 15 साल तक कंपनी को ही पूरा मेंटेनेंस करना होगा। पिछली बार जो कान्ह डायवर्जन योजना थी, उसके

साल के 295 दिन गंदगी भरी शिप्रा में स्नान:600 करोड़ खर्च फिर भी नर्मदा से नहीं मिल रहा पानी; अब 900 करोड़ का दूसरा प्रोजेक्ट
उज्जैन के त्रिवेणी संगम पर शिप्रा में गंदगी भरा पानी मिलाने वाली कान्ह नदी को 28.5 किमी का डक्ट बनाकर शहर से बाहर करने के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। इसकी लागत 900 करोड़ रुपए है। शिप्रा को प्रदूषण से बचाने और इसके प्रवाह को सालभर बनाए रखने के लिए नर्मदा नदी से लिंक करने के करीब 600 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट के बाद शिप्रा को लेकर ये दूसरा मेगा प्रोजेक्ट है। हालांकि, नर्मदा-शिप्रा लिंक की हालत ये है कि भारी भरकम रकम खर्च होने के बाद भी यहां आने वाले श्रद्धालुओं ने साल के 295 दिन सीवेज के पानी से भरी शिप्रा में ही स्नान किया है। कभी शिप्रा के शुद्धिकरण का स्थायी समाधान मानी जा रही नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना तकनीकी रूप से चालू होने के बावजूद नदी को शुद्ध क्यों नहीं कर पा रही है, यह जानने दैनिक भास्कर की टीम इंदौर के नजदीक शिप्रा के उद्गम स्थल मूंडला उज्जैयनी, पंप पॉइंट मूंडला दोस्तार और पाइप लाइन के एंड पॉइंट उज्जैन त्रिवेणी संगम पर पहुंची। आखिर क्या वजह है कि भारी भरकम खर्च के बाद भी सिर्फ 70 दिन ही नर्मदा नदी से शिप्रा तक पानी पहुंच सका है, इस प्राेजेक्ट के कामयाब न होने के बाद अब कान्ह नदी के पानी को डक्ट बनाकर शिप्रा को प्रदूषण से दूर रखने की कवायद कितनी असरदार हो पाएगी, पढ़िए ये रिपोर्ट.... पक्की नहर में एक-दो फीट ठहरा हुआ पानी भास्कर की टीम सबसे पहले इंदौर से बेटमा रोड पर करीब 20 किलोमीटर दूर उज्जैनी मूंडला गांव पहुंची। ग्रामीणों ने बताया कि शिप्रा का उद्गम स्थल काकरी टेकड़ी की पहाड़ी कुछ दूरी पर है। हम संगम स्थल पर पहुंचे तो आसपास दुकानें बंद थी। इक्का-दुक्का लोग ही आ-जा रहे थे। स्थानीय महिलाएं ककड़ी, अमरूद की डलिया लिए बैठी थीं। उन्होंने बताया कि यहां केवल रविवार या छुट्‌टी के दिन भीड़ लगती है, बाकी दिन ऐसा ही रहता है। यहां सीमेंट और टाइल्स से बनाई गई पक्की नहर में एक-दो फीट ठहरा हुआ पानी भरा था। किनारे पर काई नजर आ रही थी। जहां बड़ी पाइप लाइन से नर्मदा जल प्रतीकात्मक रूप से शिप्रा में गिराया जाता है, वह मुख्य झरना सूखा पड़ा था। टेकरी पर बने पार्क की देखभाल करने वाली कंपनी के कर्मचारी अश्विन पटेल ने बताया, 'झरना रेगुलर चलाते हैं। अभी बंद है। हमने पानी में काई वगैरह की सफाई भी कराई है।' यहां से हम करीब 200 सीढ़ियां चढ़कर पहाड़ी पर बने मंदिर पहुंचे। यहां सिर्फ मुख्य उद्गगम कुंड और 10 फीट की दूरी पर बने दूसरे कुंड में ही कुछ लीटर पानी भरा मिला। प्रसाद बेचने वाली बसंती बाई ने बताया कि नीचे छोटे से नाले जैसी जो जगह दिख रही है, यही शिप्रा माई है। ऊपर पाइप लाइन तो डली है लेकिन नदी सूखी रहती है। जब कभी अधिकारी यहां आते हैं, तब पानी भी आता है। बाकी दिन यही हाल रहता है। चौकीदार बोला- पंप खराब हैं, ठीक थे तब पानी चलता था संगम पार्क से करीब दो किलोमीटर दूर मूंडला दोस्तार गांव में नर्मदा नदी से लिफ्ट करके लाए जाने वाले पानी को उद्गम स्थल टेकड़ी के पार्क भेजने के लिए पंप लगे हैं। यहां मौजूद चौकीदार हुकुमचंद ने बताया कि अभी पंप खराब हैं। कुछ दिन पहले ठीक थे, तब पानी चलता था। ओंकारेश्वर के पास से लिफ्ट करके लाए जाने वाले पानी की कुछ मात्रा संगम स्थल के पार्क में छोड़ी जाती थी। इसका बड़ा हिस्सा नजदीक के सोनवा गांव में पाइप लाइन से शिप्रा नदी में छोड़ा जाता था, जो देवास को पार करते हुए उज्जैन पहुंचता था। अब पाइप लाइन डल गई है। पाइप से पानी सीधे त्रिवेणी घाट पहुंच जाता है, यहां के पाइप से कभी-कभी पानी सोनवा गांव में भी छोड़ते हैं। दो-चार दिन में कुछ देर के लिए छोड़ते हैं पानी इसके बाद हम यहां से इंदौर की ओर कुछ किलोमीटर दूर सोनवा गांव पहुंचे। इस गांव से नदी का पाट दिखाई देना शुरू होता है। यहां दोस्तार गांव के पंप से एक पाइप लाकर पानी शिप्रा नदी में छोड़े जाने की व्यवस्था की गई है। इस सोनवा गांव को स्थानीय लोग नर्मदा-शिप्रा का असली संगम भी कहते हैं क्योंकि यहीं से काफी पानी देवास की ओर बहते हुए उज्जैन तक पहुंचता था। लेकिन 2021 में मूंडला के पंप से उज्जैन तक पाइप लाइन डल जाने के बाद यहां भी नहर जैसी छोटी सी नदी में कीचड़ भरा दिखता है। सोनवा गांव में हमें किसान सुरेश अपने खेत में प्याज के रोपे लगवाते मिले। उनके खेत के पास से शिप्रा नदी का रास्ता है। नर्मदा का पानी बिना नुकसान के बहता जाए इसलिए यहां नदी के बहाव वाले हिस्से का ही सीमेंटीकरण कर दिया गया है। पुलिया के पास नदी में कुछ इंच पानी भरा हुआ था। अंतिम बिंदु त्रिवेणी घाट पर कान्ह नदी का गंदा पानी दैनिक भास्कर की टीम नर्मदा-शिप्रा रिवर लिंक परियोजना के अंतिम बिंदु उज्जैन के त्रिवेणी घाट पर पहुंची। इंदौर से उज्जैन की ओर जाने पर उज्जैन से करीब छह किलोमीटर पहले यही जगह शिप्रा, इंदौर की कान्ह नदी और विलुप्त नदी शलगू या गंडगी का संगम है। 10 साल में 154.48 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी शिप्रा में छोड़ा इस दौरान पता लगा कि नर्मदा-शिप्रा लिंक प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद से 10 साल में 154.48 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी शिप्रा में छोड़ा गया है। इसका बिल 350 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है, लेकिन उज्जैन प्रशासन अब तक भुगतान नहीं कर पाया है। इस बारे में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के इंजीनियर एचआर चौहान का कहना है कि बिल ताे जनरेट होंगे ही। बिल भी वही जनरेट हो रहे हैं जो नियम के अनुसार पहले से ही तय रेट है इसलिए बकाया बिल को लेकर कोई संशय नहीं हाेना चाहिए। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण मर्जी से पानी नहीं भेजता। उज्जैन प्रशासन जितना डिमांड भेजता है, उसी के अनुसार पानी देते हैं। बिल भरा जाना या न भरा जाना, सरकारी विभागों के बीच का मामला है। लेकिन नियमों के अनुसार बिल जनरेट होते ही हैं। अब सारी उम्मीदें कान्ह योजना पर टिकीं जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर राजेश चौऋषिया ने बताया- क्लोज डक्ट योजना की टेंडर शर्त के अनुसार, 15 साल तक कंपनी को ही पूरा मेंटेनेंस करना होगा। पिछली बार जो कान्ह डायवर्जन योजना थी, उसके टेंडर में ये शर्तें नहींं थीं। नई योजना में वर्षाकाल के बाद के पानी को बायपास करने की मात्रा पिछली कान्ह योजना से लगभग 7-8 गुना ज्यादा होगी। जो डक्ट बनेंगे, उनकी आसानी से जेसीबी की मदद से सफाई हो सकेगी। कुल मिलाकर हमारे सारे स्नान पर्व क्षिप्रा में बिना गंदे पानी के हो सकेंगे। कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (कैग) ने नर्मदा-शिप्रा लिंक योजना को फेल करार देते हुए उज्जैन में शिप्रा को साफ रखने के लिए ये सुझाव दिए थे-