सिवनी में लगता है एशिया का सबसे बड़ा मेघनाद मेला:60 फीट ऊंचा खंभा पूजा का प्रतीक; यहां मन्नत मांगने लोग आते
सिवनी में लगता है एशिया का सबसे बड़ा मेघनाद मेला:60 फीट ऊंचा खंभा पूजा का प्रतीक; यहां मन्नत मांगने लोग आते
सिवनी में होली के दूसरे दिन यानी शनिवार को मेघनाद की पूजा होती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह एशिया का सबसे बड़ा मेघनाद मेला है। मेले में जिले और आसपास के हजारों आदिवासी इकट्ठा होते हैं। मेला केवलारी विधानसभा क्षेत्र के पांजरा गांव में लगता है। मेघनाद की प्रतिमा के बजाय एक 60 फीट ऊंचा खंभा पूजा का प्रतीक है। इस खंभे पर करीब 30 फीट की खूंटियां लगाई जाती हैं। इन खूंटियों से एक मचान बनता है, जिस पर तीन लोगों के बैठने की व्यवस्था होती है। ग्रामीण जयदीप दुबे, हजारीलाल उइके, ज्ञानी लाल मरापे, कमल सिंह परते और केएस तेकाम ने बताया कि मेघनाद की पूजा में मन्नत मांगी जाती है। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु 60 फीट की ऊंचाई पर रस्सी के सहारे परिक्रमा करते हैं। महिला-पुरुष को मचान पर ले जाते हैं मेले का सबसे खूबसूरत नजारा तब दिखता है जब मन्नत पूरी होने पर महिला-पुरुषों को मचान पर ले जाया जाता है। उन्हें पेट के बल लिटाकर खंभे के ऊपरी सिरे में लगी चारों तरफ घूमने वाली लकड़ी से बांधा जाता है। झूलते समय उनके ऊपर से नारियल फेंका जाता है। यह आदिवासी संस्कृति और आस्था का उदाहरण है। अलग-अलग धर्मों के लोग भी यहां आकर पूजा-अर्चना करते हैं। आदिवासी समुदाय के लोग मेघनाद को अपना आराध्य मानते हैं और अलग-अलग नामों से उनकी पूजा करते हैं।
सिवनी में होली के दूसरे दिन यानी शनिवार को मेघनाद की पूजा होती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह एशिया का सबसे बड़ा मेघनाद मेला है। मेले में जिले और आसपास के हजारों आदिवासी इकट्ठा होते हैं। मेला केवलारी विधानसभा क्षेत्र के पांजरा गांव में लगता है। मेघनाद की प्रतिमा के बजाय एक 60 फीट ऊंचा खंभा पूजा का प्रतीक है। इस खंभे पर करीब 30 फीट की खूंटियां लगाई जाती हैं। इन खूंटियों से एक मचान बनता है, जिस पर तीन लोगों के बैठने की व्यवस्था होती है। ग्रामीण जयदीप दुबे, हजारीलाल उइके, ज्ञानी लाल मरापे, कमल सिंह परते और केएस तेकाम ने बताया कि मेघनाद की पूजा में मन्नत मांगी जाती है। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु 60 फीट की ऊंचाई पर रस्सी के सहारे परिक्रमा करते हैं। महिला-पुरुष को मचान पर ले जाते हैं मेले का सबसे खूबसूरत नजारा तब दिखता है जब मन्नत पूरी होने पर महिला-पुरुषों को मचान पर ले जाया जाता है। उन्हें पेट के बल लिटाकर खंभे के ऊपरी सिरे में लगी चारों तरफ घूमने वाली लकड़ी से बांधा जाता है। झूलते समय उनके ऊपर से नारियल फेंका जाता है। यह आदिवासी संस्कृति और आस्था का उदाहरण है। अलग-अलग धर्मों के लोग भी यहां आकर पूजा-अर्चना करते हैं। आदिवासी समुदाय के लोग मेघनाद को अपना आराध्य मानते हैं और अलग-अलग नामों से उनकी पूजा करते हैं।