दोषी पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करें- सुप्रीम कोर्ट:एमपी के युवक की कस्टडी में मौत का मामला…एफआईआर में आरोपी की जगह ‘फूल’ और ‘अन्य’ लिखा
दोषी पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करें- सुप्रीम कोर्ट:एमपी के युवक की कस्टडी में मौत का मामला…एफआईआर में आरोपी की जगह ‘फूल’ और ‘अन्य’ लिखा
पिछले साल की 14 जुलाई को शादी से ठीक एक दिन पहले गिरफ्तार किए गए मध्य प्रदेश के युवक देवा पारदी की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई थी। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपते हुए अदालत ने सख्त आदेश दिया कि दोषी पुलिसकर्मियों को एक महीने के भीतर गिरफ्तार किया जाए। इससे पहले कोर्ट ये टिप्पणी कर चुका है कि राज्य सरकार दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने की कोशिश कर रही है। ये रवैया शर्मनाक है। बेटे देवा को इंसाफ दिलाने के लिए उसकी मां अंसुरा बाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ रही है। वहीं, पुलिस डिपार्टमेंट ने दोषी पुलिसवालों को बचाने के लिए जो पहली एफआईआर लिखी थी थी उसमें भी नाम की जगह ‘फूल’ और ‘अन्य’ जैसे शब्द इस्तेमाल किए गए थे। कोर्ट ने कहा- कोई खुद के मामले में जज नहीं हो सकता
गुरुवार को सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सीबीआई को हैंडओवर कर दिया। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कहा- 8 महीने बाद भी एक भी आरोपी पुलिसकर्मी की गिरफ्तारी न होना दिखाता है कि जांच निष्पक्ष नहीं हो रही। राज्य पुलिस अपने ही लोगों को बचा रही है। यह मामला उस कानूनी सिद्धांत को पूरी तरह लागू करता है, जिसमें कहा गया है कि कोई व्यक्ति अपने ही मामले में जज नहीं हो सकता। देवा की मौत के आरोप म्याना थाने की लोकल पुलिस पर है और वहीं अब तक जांच भी कर रही थी। यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का सीधा उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि देवा के चाचा गंगाराम, जो इस केस के इकलौते चश्मदीद हैं, फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। इनकी जमानत की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस वक्त हिरासत में रहना ही उनकी सुरक्षा के लिए बेहतर है। बाहर आएंगे तो किसी दिन ट्रक से कुचल दिए जाएंगे और कहा जाएगा कि यह हादसा था। कोर्ट ने कहा- 'जिन दो पुलिस अफसरों की भूमिका संदिग्ध है उन्हें सिर्फ लाइन अटैच क्यों किया गया, गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?’ कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया है कि तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू करें। कोर्ट ने कहा कि आरोपी पुलिसकर्मियों को एक माह में गिरफ्तार किया जाए और गिरफ्तारी के 90 दिन में चार्जशीट पेश की जाए। टीआई और एसआई हुए अंडरग्राउंड
पिछले साल 4 सितंबर को म्याना थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी संजीत माबई, एसआई देवराज सिंह परिहार और उमरी चौकी प्रभारी एसआई उत्तम सिंह कुशवाह को लाइन अटैच किया गया था। तब से इस मामले की विवेचना गुना पुलिस ही कर रही थी। इस साल 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार पर तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने आरोपी पुलिसवालों की गिरफ्तारी न होने को हास्यास्पद और अमानवीय बताया था। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के कुछ दिन बाद ही टीआई संजीत माबई और एसआई उत्तम सिंह कुशवाह अंडरग्राउंड हो गए। उन्होंने लाइन में अपनी एक दिन की छुट्टी डलवाई और फरार हो गए। उस दिन के बाद से लाइन में उन्होंने हाजिरी नहीं दी है। इन पुलिसकर्मियों की थी भूमिका
इस पूरे मामले में एफआईआर में आरोपी के कॉलम में तीन ‘फूल’ टीआई और अन्य सात-आठ पुलिसकर्मी लिखा गया। आमतौर पर पुलिस डिपार्टमेंट में स्टार को बोलचाल में फूल कहते हैं और तीन स्टार वाले टीआई होते हैं, लेकिन हैरानी इस बात की थी कि इन पुलिसवालों के नाम तक दर्ज नहीं किए गए मानो इस थाने के स्टाफ के बारे में इसी थाने के अन्य पुलिसवालों काे कोई जानकारी ही न हो। एफआईआर भी उसी म्याना थाने में लिखी गई जिसमें ये वारदात हुई। पुलिस विभाग ने दो एसआई को राहत भी दे दी
संजीत माबई उस समय म्याना थाने के प्रभारी थे। ये वही थाना है, जहां देवा पारदी के साथ मारपीट की गई। एसआई उत्तम सिंह म्याना थाने के अंतर्गत आने वाली उमरी चौकी के प्रभारी थे। इसी उमरी चौकी के अंतर्गत भिडरा गांव में हुई चोरी के मामले में देवा और उसके चाचा गंगाराम पारदी से पूछताछ और बरामदगी के लिए पुलिस उन्हें लेकर आई थी। वहीं एसआई देवराज सिंह परिहार भी म्याना थाने में ही पदस्थ थे। हालांकि, लाइन हाजिर होने के कुछ समय बाद एसआई उत्तम सिंह की पोस्टिंग कैंट थाने में कर दी गई थी। वहीं एसआई देवराज सिंह परिहार का तबादला शिवपुरी जिले में हो गया था। मजिस्ट्रियल जांच न होती तो एफआईआर भी न होती इस मामले में मजिस्ट्रियल जांच हुई। शिवपुरी मेडिकल कॉलेज से मृतक की हिस्टोपैथोलॉजिकल (शरीर के उत्तकों की जांच) रिपोर्ट, FSL ग्वालियर से विसरा रिपोर्ट मंगाई गई। मजिस्ट्रियल जांच में यह कहा गया कि देवा पारदी की मौत पुलिस कस्टडी के दौरान मारपीट और प्रताड़ना के कारण संदिग्ध और असामान्य परिस्थितियों में हुई। मजिस्ट्रियल जांच के बाद पुलिस विभाग ने मजबूरी में पुलिसकर्मियों पर एफआईआर की थी। जिस थाने में देवा पारदी के साथ मारपीट का मामला हुआ था, उसी म्याना थाने में 5 सितंबर को मामला दर्ज हुआ। विवेचना अधिकारी एसडीओपी युवराज सिंह की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई। जानिए… आखिर क्या हुआ था उस दिन
15 जुलाई 2024 को बीलाखेड़ी के रहने वाले देवा पारदी (25) की शादी गुना शहर के गोकुल सिंह चक्क पर होने वाली थी। 14 जुलाई की शाम को उसकी बारात गुना के लिए निकलनी थी। 4.30 बजे पुलिस गांव में पहुंची। जिस ट्रैक्टर पर बारात जाना थी, उसी से देवा और उसके चाचा गंगाराम को पुलिस ले गई। पुलिस का कहना था कि एक चोरी के मामले में उससे कुछ बरामदगी करनी थी। 14 जुलाई की शाम परिवार वालों को जिला अस्पताल से सूचना मिली कि एक पारदी युवक को पोस्टमॉर्टम रूम में लाया गया है। अस्पताल पहुंचकर पता चला कि पुलिस कस्टडी में देवा की मौत हो गई है। इसके बाद बड़ी संख्या में पारदी समुदाय की महिलाएं जिला अस्पताल पहुंच गईं। देवा की चाची और उसकी होने वाली दुल्हन ने अपने ऊपर पेट्रोल डालकर आग लगाने की भी कोशिश की थी। वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने उन्हें बचाया। महिलाओं का आरोप था कि म्याना थाने में देवा पारदी और उसके चाचा के साथ मारपीट की गई, जिससे उसकी मौत हुई। इसके दो दिन बाद 17 जु
पिछले साल की 14 जुलाई को शादी से ठीक एक दिन पहले गिरफ्तार किए गए मध्य प्रदेश के युवक देवा पारदी की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई थी। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपते हुए अदालत ने सख्त आदेश दिया कि दोषी पुलिसकर्मियों को एक महीने के भीतर गिरफ्तार किया जाए। इससे पहले कोर्ट ये टिप्पणी कर चुका है कि राज्य सरकार दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने की कोशिश कर रही है। ये रवैया शर्मनाक है। बेटे देवा को इंसाफ दिलाने के लिए उसकी मां अंसुरा बाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ रही है। वहीं, पुलिस डिपार्टमेंट ने दोषी पुलिसवालों को बचाने के लिए जो पहली एफआईआर लिखी थी थी उसमें भी नाम की जगह ‘फूल’ और ‘अन्य’ जैसे शब्द इस्तेमाल किए गए थे। कोर्ट ने कहा- कोई खुद के मामले में जज नहीं हो सकता
गुरुवार को सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सीबीआई को हैंडओवर कर दिया। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कहा- 8 महीने बाद भी एक भी आरोपी पुलिसकर्मी की गिरफ्तारी न होना दिखाता है कि जांच निष्पक्ष नहीं हो रही। राज्य पुलिस अपने ही लोगों को बचा रही है। यह मामला उस कानूनी सिद्धांत को पूरी तरह लागू करता है, जिसमें कहा गया है कि कोई व्यक्ति अपने ही मामले में जज नहीं हो सकता। देवा की मौत के आरोप म्याना थाने की लोकल पुलिस पर है और वहीं अब तक जांच भी कर रही थी। यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का सीधा उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि देवा के चाचा गंगाराम, जो इस केस के इकलौते चश्मदीद हैं, फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। इनकी जमानत की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस वक्त हिरासत में रहना ही उनकी सुरक्षा के लिए बेहतर है। बाहर आएंगे तो किसी दिन ट्रक से कुचल दिए जाएंगे और कहा जाएगा कि यह हादसा था। कोर्ट ने कहा- 'जिन दो पुलिस अफसरों की भूमिका संदिग्ध है उन्हें सिर्फ लाइन अटैच क्यों किया गया, गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?’ कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया है कि तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू करें। कोर्ट ने कहा कि आरोपी पुलिसकर्मियों को एक माह में गिरफ्तार किया जाए और गिरफ्तारी के 90 दिन में चार्जशीट पेश की जाए। टीआई और एसआई हुए अंडरग्राउंड
पिछले साल 4 सितंबर को म्याना थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी संजीत माबई, एसआई देवराज सिंह परिहार और उमरी चौकी प्रभारी एसआई उत्तम सिंह कुशवाह को लाइन अटैच किया गया था। तब से इस मामले की विवेचना गुना पुलिस ही कर रही थी। इस साल 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार पर तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने आरोपी पुलिसवालों की गिरफ्तारी न होने को हास्यास्पद और अमानवीय बताया था। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के कुछ दिन बाद ही टीआई संजीत माबई और एसआई उत्तम सिंह कुशवाह अंडरग्राउंड हो गए। उन्होंने लाइन में अपनी एक दिन की छुट्टी डलवाई और फरार हो गए। उस दिन के बाद से लाइन में उन्होंने हाजिरी नहीं दी है। इन पुलिसकर्मियों की थी भूमिका
इस पूरे मामले में एफआईआर में आरोपी के कॉलम में तीन ‘फूल’ टीआई और अन्य सात-आठ पुलिसकर्मी लिखा गया। आमतौर पर पुलिस डिपार्टमेंट में स्टार को बोलचाल में फूल कहते हैं और तीन स्टार वाले टीआई होते हैं, लेकिन हैरानी इस बात की थी कि इन पुलिसवालों के नाम तक दर्ज नहीं किए गए मानो इस थाने के स्टाफ के बारे में इसी थाने के अन्य पुलिसवालों काे कोई जानकारी ही न हो। एफआईआर भी उसी म्याना थाने में लिखी गई जिसमें ये वारदात हुई। पुलिस विभाग ने दो एसआई को राहत भी दे दी
संजीत माबई उस समय म्याना थाने के प्रभारी थे। ये वही थाना है, जहां देवा पारदी के साथ मारपीट की गई। एसआई उत्तम सिंह म्याना थाने के अंतर्गत आने वाली उमरी चौकी के प्रभारी थे। इसी उमरी चौकी के अंतर्गत भिडरा गांव में हुई चोरी के मामले में देवा और उसके चाचा गंगाराम पारदी से पूछताछ और बरामदगी के लिए पुलिस उन्हें लेकर आई थी। वहीं एसआई देवराज सिंह परिहार भी म्याना थाने में ही पदस्थ थे। हालांकि, लाइन हाजिर होने के कुछ समय बाद एसआई उत्तम सिंह की पोस्टिंग कैंट थाने में कर दी गई थी। वहीं एसआई देवराज सिंह परिहार का तबादला शिवपुरी जिले में हो गया था। मजिस्ट्रियल जांच न होती तो एफआईआर भी न होती इस मामले में मजिस्ट्रियल जांच हुई। शिवपुरी मेडिकल कॉलेज से मृतक की हिस्टोपैथोलॉजिकल (शरीर के उत्तकों की जांच) रिपोर्ट, FSL ग्वालियर से विसरा रिपोर्ट मंगाई गई। मजिस्ट्रियल जांच में यह कहा गया कि देवा पारदी की मौत पुलिस कस्टडी के दौरान मारपीट और प्रताड़ना के कारण संदिग्ध और असामान्य परिस्थितियों में हुई। मजिस्ट्रियल जांच के बाद पुलिस विभाग ने मजबूरी में पुलिसकर्मियों पर एफआईआर की थी। जिस थाने में देवा पारदी के साथ मारपीट का मामला हुआ था, उसी म्याना थाने में 5 सितंबर को मामला दर्ज हुआ। विवेचना अधिकारी एसडीओपी युवराज सिंह की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई। जानिए… आखिर क्या हुआ था उस दिन
15 जुलाई 2024 को बीलाखेड़ी के रहने वाले देवा पारदी (25) की शादी गुना शहर के गोकुल सिंह चक्क पर होने वाली थी। 14 जुलाई की शाम को उसकी बारात गुना के लिए निकलनी थी। 4.30 बजे पुलिस गांव में पहुंची। जिस ट्रैक्टर पर बारात जाना थी, उसी से देवा और उसके चाचा गंगाराम को पुलिस ले गई। पुलिस का कहना था कि एक चोरी के मामले में उससे कुछ बरामदगी करनी थी। 14 जुलाई की शाम परिवार वालों को जिला अस्पताल से सूचना मिली कि एक पारदी युवक को पोस्टमॉर्टम रूम में लाया गया है। अस्पताल पहुंचकर पता चला कि पुलिस कस्टडी में देवा की मौत हो गई है। इसके बाद बड़ी संख्या में पारदी समुदाय की महिलाएं जिला अस्पताल पहुंच गईं। देवा की चाची और उसकी होने वाली दुल्हन ने अपने ऊपर पेट्रोल डालकर आग लगाने की भी कोशिश की थी। वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने उन्हें बचाया। महिलाओं का आरोप था कि म्याना थाने में देवा पारदी और उसके चाचा के साथ मारपीट की गई, जिससे उसकी मौत हुई। इसके दो दिन बाद 17 जुलाई को पारदी महिलाओं ने कलेक्ट्रेट में भी प्रदर्शन किया था। उन्होंने अपने कपड़े तक उतार दिए थे। मां लड़ रही सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई
इस पूरे मामले में देवा पारदी की मां अंसुरा बाई अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। वह हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले को लेकर गईं। भोपाल की एक संस्था ने भी उनका साथ दिया। देवा पारदी को न्याय दिलाने और मामले के इकलौते गवाह उसके चाचा गंगाराम पारदी की सुरक्षा के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन दायर की थी। सुनवाई के दौरान वह कई बार गुना से दिल्ली तक जा चुकी हैं। एमपी और राजस्थान में देवा पर कई गंभीर केस
देवा पारदी पर राजस्थान, मध्य प्रदेश के रतलाम, इंदौर समेत गुना जिले के तीन थानों में 8 केस दर्ज हैं। इनमें हत्या का प्रयास, लूट, डकैती, शासकीय कार्य में बाधा समेत चोरी के प्रकरण हैं। देवा के चाचा गंगाराम उर्फ गंगू पारदी पर भी 16 केस दर्ज हैं। सुरक्षा की दृष्टि से कोर्ट के आदेश पर गंगाराम पारदी फिलहाल ग्वालियर की सेंट्रल जेल में बंद है।