महाष्टमी की रात मां अंबे का निकला खप्पर:गरबियों से की गई मां की वंदना; 406 सालों से चली आ रही है परंपरा
महाष्टमी की रात मां अंबे का निकला खप्पर:गरबियों से की गई मां की वंदना; 406 सालों से चली आ रही है परंपरा
नवरात्रि में भावसार मोहल्ला स्थित श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में महाष्टमी की रात माताजी के खप्पर का आयोजन हुआ। भावसार क्षत्रिय समाज ने 406 वर्षों से चली आ रही खप्पर परंपरा का आयोजन किया। मध्यरात्रि में माता अंबे की सवारी निकली। माता अंबे ने सुबह 4.15 बजे एक हाथ मे जलता हुआ खप्पर और दूसरे हाथ में तलवार लेकर भक्तों को दर्शन दिए। निमाड़ी गरबियों पर माताजी की वंदना हुई। शुरुआत झाड़ के विशेष पूजन से हुई। इसके बाद धार्मिक सवारियां निकली। सबसे पहले भगवान गणेश सवारी में निकले। पूर्वजों की खप्पर परंपरा का निर्वहन किया गया
खप्पर आयोजन समिति अध्यक्ष डॉ मोहन भावसार ने बताया कि पूर्वजों की खप्पर की परंपरा का निर्वहन किया गया। माताजी करीब 45 मिनट तक रमती रही। श्रद्धालुओं ने मां अंबे के जयकारे लगाए। भक्तों ने माताजी की सवारी के चरण छुए। गरबियों से माताजी की वंदना की गई। मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र भावसार लाला ने बताया कि माता अंबे का स्वांग मनोज मधु भावसार व आयुष सुनील भावसार व गणेशजी का स्वांग आयुष भार्गव व प्रीत भार्गव ने धारण किया।
नवरात्रि में भावसार मोहल्ला स्थित श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में महाष्टमी की रात माताजी के खप्पर का आयोजन हुआ। भावसार क्षत्रिय समाज ने 406 वर्षों से चली आ रही खप्पर परंपरा का आयोजन किया। मध्यरात्रि में माता अंबे की सवारी निकली। माता अंबे ने सुबह 4.15 बजे एक हाथ मे जलता हुआ खप्पर और दूसरे हाथ में तलवार लेकर भक्तों को दर्शन दिए। निमाड़ी गरबियों पर माताजी की वंदना हुई। शुरुआत झाड़ के विशेष पूजन से हुई। इसके बाद धार्मिक सवारियां निकली। सबसे पहले भगवान गणेश सवारी में निकले। पूर्वजों की खप्पर परंपरा का निर्वहन किया गया
खप्पर आयोजन समिति अध्यक्ष डॉ मोहन भावसार ने बताया कि पूर्वजों की खप्पर की परंपरा का निर्वहन किया गया। माताजी करीब 45 मिनट तक रमती रही। श्रद्धालुओं ने मां अंबे के जयकारे लगाए। भक्तों ने माताजी की सवारी के चरण छुए। गरबियों से माताजी की वंदना की गई। मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र भावसार लाला ने बताया कि माता अंबे का स्वांग मनोज मधु भावसार व आयुष सुनील भावसार व गणेशजी का स्वांग आयुष भार्गव व प्रीत भार्गव ने धारण किया।