पीले चावल देकर रमन को बुलाया गया था चुनाव लड़ने:छत्तीसगढ़ में उपचुनाव से विधायक बने दो मुख्यमंत्री; अबतक 16 उपचुनाव 8-8 से बराबर
पीले चावल देकर रमन को बुलाया गया था चुनाव लड़ने:छत्तीसगढ़ में उपचुनाव से विधायक बने दो मुख्यमंत्री; अबतक 16 उपचुनाव 8-8 से बराबर
छत्तीसगढ़ में रायपुर-दक्षिण विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। बीजेपी ने अनुभवी चेहरे सुनील सोनी को मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस ने युवा चेहरे आकाश शर्मा पर भरोसा जताया है। रोचक बात है कि, प्रदेश को पहले और दूसरे मुख्यमंत्री उपचुनाव से ही मिले हैं। पीले चावल देकर रमन सिंह को चुनाव लड़ने बुलाया गया था। प्रदेश में 16 उपचुनाव हुए हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार में यह पहला उपचुनाव है। कुछ इलेक्शन ऐसे भी रहे हैं, जिनसे रोचक किस्से जुड़े हुए हैं। आपको बताते हैं उपचुनाव से जुड़े ऐसे ही किस्से अब आपको विस्तार से बताते हैं 'रोचक किस्सों वाले उपचुनाव' छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 2000 में हुआ। राज्य गठन के बाद कांग्रेस से अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि वे विधायक नहीं थे उनका नाम आलाकमान से तय हुआ था। मुख्यमंत्री बनने के लिए विधायक का चुनाव लड़ना था। तब जोगी के लिए अपनी सीट छोड़ने वाला शख्स कोई कांग्रेसी नहीं बल्कि मरवाही से बीजेपी के विधायक रामदयाल उइके थे। रेलवे स्टेशन पर सौंपा था इस्तीफा वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश चंद्र होता ने बताया कि, रामदयाल उइके खुद सामने आए और जोगी के लिए मरवाही सीट छोड़ने का ऐलान कर दिया। तब पार्टी छोड़ते वक्त रामदयाल उइके ने ये आरोप लगाया था कि विधायक होने के बावजूद बीजेपी में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला लेकिन असलियत ये थी कि वे बीजेपी में रहने के बावजूद वे जोगी के कट्टर समर्थक थे। इसके बाद जोगी ने मरवाही सीट से उपचुनाव लड़ा जहां उनके सामने बीजेपी से अमर सिंह खुसरो मैदान में थे। जीत जोगी को मिली और वे प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। इसके बाद उइके कांग्रेस में आए, हालांकि साल 2018 के चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। राज्य बनने के बाद पहली बार विधानसभा के चुनाव साल 2003 में हुए। तब बीजेपी को बहुमत मिला। जोगी सरकार के जाने के बाद रमन सिंह मुख्यमंत्री तो चुन लिए गए लेकिन वे भी विधायक नहीं थे। रमन उस समय सांसद थे और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी। ऐसे में उनके पुराने मित्र प्रदीप गांधी ने सीट छोड़ी। प्रदीप गांधी राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव सीट से विधायक चुने गए थे। वरिष्ठ पत्रकार सचिन अग्रहरि बताते हैं कि पहले विधानसभा सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा में भाग लेने के तुरंत बाद गांधी ने उन्हें न्योता भेजा था। सांसद बन गए विधायक और विधायक बन गए सांसद रमन सिंह के सामने कांग्रेस की गीतादेवी सिंह प्रत्याशी बनाई गईं लेकिन रमन सिंह को जीत हासिल हुई, जबकि रमन के लिए सीट छोड़ने वाले प्रदीप गांधी को लोकसभा की टिकट मिल गई, इसमें वे जीत भी गए। यानी, जो सांसद थे वो विधायक बन गए और जो विधायक थे वो सांसद। साल 2006 में जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी तब विधानसभा के अध्यक्ष रहे पं राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल के निधन से कोटा की सीट खाली हुई थी। इस सीट से उनके बेटे को चुनाव लड़ाने की चर्चा थी लेकिन उन्होंने खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद नामांकन का समय खत्म होने से आधे घंटे पहले पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी ने नामांकन लिया। बीजेपी के ठाकुर भूपेंद्र सिंह को हरा भी दिया। ये छत्तीसगढ़ का पहला उपचुनाव था, जिसमें सत्ता पक्ष की जगह विपक्ष की प्रत्याशी विधायक बनीं। अकलतरा विधानसभा सीट की सबसे रोचक बात यह है कि, यहां जिस पार्टी का विधायक बनता है उस पार्टी की सरकार नहीं बनती। अकलतरा के लोगों को सत्ता पक्ष वाला विधायक मिला भी तो सिर्फ उपचुनाव में... साल 2004 में बीजेपी के छत्तराम देवांगन चुनाव जीत कर संसदीय सचिव बने थे। यह कह सकते हैं कि, इस उपचुनाव के अलावा अकलतरा विधानसभा को सत्ता का सुख नहीं मिला। अकलतरा सीट का इतिहास पांचवां किस्सा- ऐसी सीट जो अब अस्तित्व में ही नहीं साल 2007... सीट- मालखरौदा- इस सीट से बीजेपी के निर्मल सिन्हा विधानसभा चुनाव में हार गए थे। फिर उन्होंने चुनाव याचिका लगाई, जिसमें तत्कालीन विधायक लालसाय खूंटे की सदस्यता खत्म हो गई। उपचुनाव हुए और निर्मल सिन्हा को जीत मिली। ये सीट अब अस्तित्व में ही नहीं है। साल 2014...विक्रम उसेंडी के सांसद बनने के बाद अंतागढ़ विधानसभा सीट खाली हुई। 12 सितंबर, 2014 को यहां उपचुनाव होना था लेकिन अचानक नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख खत्म होने के बाद कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार ने नाम वापस ले लिया। एक तरह से बीजेपी के भोजराज नाग वॉकओवर में जीत गए। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद खाली हुई मरवाही सीट में साल 2020 में उपचुनाव हुए। इसमें उनके बेटे अमित जोगी ने जेसीसीजे (जोगी) पार्टी से नामांकन दाखिल किया, लेकिन जाति प्रमाण पत्र को फर्जी करार देते हुए मरवाही से अमित जोगी का नामांकन खारिज हो गया। ऐसे में अब जोगी परिवार मरवाही से चुनाव नहीं लड़ पाया। राज्य गठन के बाद पहली बार बिना जोगी, मरवाही का चुनाव हुआ। इसमें बीजेपी के गंभीर सिंह को कांग्रेस के केके ध्रुव ने हरा दिया। उपचुनाव से जुड़े कुछ और फैक्ट्स 2003 में देवव्रत सिंह खैरागढ़ से विधानसभा चुनाव जीते थे। इसके बाद जब सांसद प्रदीप गांधी की सदस्यता चली गई, तो राजनांदगांव लोकसभा का उपचुनाव हुआ। इसमें कांग्रेस ने देवव्रत सिंह को प्रत्याशी बनाया। देवव्रत सिंह लोकसभा चुनाव जीत गए और खैरागढ़ सीट खाली हो गई, जैसे इस बार रायपुर दक्षिण सीट हुई है। इसके बाद खैरागढ़ सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा से कोमल जंघेल जीत गए थे। देवव्रत सिंह के निधन के बाद 2022 में फिर खैरागढ़ में उपचुनाव हुए। इस बार हुए कांग्रेस से यशोदा वर्मा जीत गईं। यहां कांग्रेस ने खैरागढ़ को जिला बनाने का दांव खेला था। इस उपचुनाव में जीत के तुरंत बाद ही खैरागढ़-छुईखदान-गंडई को जिला बनाया गया। भूपेश सरकार में प्रदेश में पांच उपचुनाव हुए थे। इनमें सभी में कांग्रेस की जीत हुई थी। इनमें दंतेवाड़ा, चित्रकोट, मरवाही, खैरागढ़ और भानुप्रतापपुर का उपचुनाव शामिल है।
छत्तीसगढ़ में रायपुर-दक्षिण विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। बीजेपी ने अनुभवी चेहरे सुनील सोनी को मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस ने युवा चेहरे आकाश शर्मा पर भरोसा जताया है। रोचक बात है कि, प्रदेश को पहले और दूसरे मुख्यमंत्री उपचुनाव से ही मिले हैं। पीले चावल देकर रमन सिंह को चुनाव लड़ने बुलाया गया था। प्रदेश में 16 उपचुनाव हुए हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार में यह पहला उपचुनाव है। कुछ इलेक्शन ऐसे भी रहे हैं, जिनसे रोचक किस्से जुड़े हुए हैं। आपको बताते हैं उपचुनाव से जुड़े ऐसे ही किस्से अब आपको विस्तार से बताते हैं 'रोचक किस्सों वाले उपचुनाव' छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 2000 में हुआ। राज्य गठन के बाद कांग्रेस से अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि वे विधायक नहीं थे उनका नाम आलाकमान से तय हुआ था। मुख्यमंत्री बनने के लिए विधायक का चुनाव लड़ना था। तब जोगी के लिए अपनी सीट छोड़ने वाला शख्स कोई कांग्रेसी नहीं बल्कि मरवाही से बीजेपी के विधायक रामदयाल उइके थे। रेलवे स्टेशन पर सौंपा था इस्तीफा वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश चंद्र होता ने बताया कि, रामदयाल उइके खुद सामने आए और जोगी के लिए मरवाही सीट छोड़ने का ऐलान कर दिया। तब पार्टी छोड़ते वक्त रामदयाल उइके ने ये आरोप लगाया था कि विधायक होने के बावजूद बीजेपी में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला लेकिन असलियत ये थी कि वे बीजेपी में रहने के बावजूद वे जोगी के कट्टर समर्थक थे। इसके बाद जोगी ने मरवाही सीट से उपचुनाव लड़ा जहां उनके सामने बीजेपी से अमर सिंह खुसरो मैदान में थे। जीत जोगी को मिली और वे प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। इसके बाद उइके कांग्रेस में आए, हालांकि साल 2018 के चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। राज्य बनने के बाद पहली बार विधानसभा के चुनाव साल 2003 में हुए। तब बीजेपी को बहुमत मिला। जोगी सरकार के जाने के बाद रमन सिंह मुख्यमंत्री तो चुन लिए गए लेकिन वे भी विधायक नहीं थे। रमन उस समय सांसद थे और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी। ऐसे में उनके पुराने मित्र प्रदीप गांधी ने सीट छोड़ी। प्रदीप गांधी राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव सीट से विधायक चुने गए थे। वरिष्ठ पत्रकार सचिन अग्रहरि बताते हैं कि पहले विधानसभा सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा में भाग लेने के तुरंत बाद गांधी ने उन्हें न्योता भेजा था। सांसद बन गए विधायक और विधायक बन गए सांसद रमन सिंह के सामने कांग्रेस की गीतादेवी सिंह प्रत्याशी बनाई गईं लेकिन रमन सिंह को जीत हासिल हुई, जबकि रमन के लिए सीट छोड़ने वाले प्रदीप गांधी को लोकसभा की टिकट मिल गई, इसमें वे जीत भी गए। यानी, जो सांसद थे वो विधायक बन गए और जो विधायक थे वो सांसद। साल 2006 में जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी तब विधानसभा के अध्यक्ष रहे पं राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल के निधन से कोटा की सीट खाली हुई थी। इस सीट से उनके बेटे को चुनाव लड़ाने की चर्चा थी लेकिन उन्होंने खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद नामांकन का समय खत्म होने से आधे घंटे पहले पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी ने नामांकन लिया। बीजेपी के ठाकुर भूपेंद्र सिंह को हरा भी दिया। ये छत्तीसगढ़ का पहला उपचुनाव था, जिसमें सत्ता पक्ष की जगह विपक्ष की प्रत्याशी विधायक बनीं। अकलतरा विधानसभा सीट की सबसे रोचक बात यह है कि, यहां जिस पार्टी का विधायक बनता है उस पार्टी की सरकार नहीं बनती। अकलतरा के लोगों को सत्ता पक्ष वाला विधायक मिला भी तो सिर्फ उपचुनाव में... साल 2004 में बीजेपी के छत्तराम देवांगन चुनाव जीत कर संसदीय सचिव बने थे। यह कह सकते हैं कि, इस उपचुनाव के अलावा अकलतरा विधानसभा को सत्ता का सुख नहीं मिला। अकलतरा सीट का इतिहास पांचवां किस्सा- ऐसी सीट जो अब अस्तित्व में ही नहीं साल 2007... सीट- मालखरौदा- इस सीट से बीजेपी के निर्मल सिन्हा विधानसभा चुनाव में हार गए थे। फिर उन्होंने चुनाव याचिका लगाई, जिसमें तत्कालीन विधायक लालसाय खूंटे की सदस्यता खत्म हो गई। उपचुनाव हुए और निर्मल सिन्हा को जीत मिली। ये सीट अब अस्तित्व में ही नहीं है। साल 2014...विक्रम उसेंडी के सांसद बनने के बाद अंतागढ़ विधानसभा सीट खाली हुई। 12 सितंबर, 2014 को यहां उपचुनाव होना था लेकिन अचानक नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख खत्म होने के बाद कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार ने नाम वापस ले लिया। एक तरह से बीजेपी के भोजराज नाग वॉकओवर में जीत गए। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद खाली हुई मरवाही सीट में साल 2020 में उपचुनाव हुए। इसमें उनके बेटे अमित जोगी ने जेसीसीजे (जोगी) पार्टी से नामांकन दाखिल किया, लेकिन जाति प्रमाण पत्र को फर्जी करार देते हुए मरवाही से अमित जोगी का नामांकन खारिज हो गया। ऐसे में अब जोगी परिवार मरवाही से चुनाव नहीं लड़ पाया। राज्य गठन के बाद पहली बार बिना जोगी, मरवाही का चुनाव हुआ। इसमें बीजेपी के गंभीर सिंह को कांग्रेस के केके ध्रुव ने हरा दिया। उपचुनाव से जुड़े कुछ और फैक्ट्स 2003 में देवव्रत सिंह खैरागढ़ से विधानसभा चुनाव जीते थे। इसके बाद जब सांसद प्रदीप गांधी की सदस्यता चली गई, तो राजनांदगांव लोकसभा का उपचुनाव हुआ। इसमें कांग्रेस ने देवव्रत सिंह को प्रत्याशी बनाया। देवव्रत सिंह लोकसभा चुनाव जीत गए और खैरागढ़ सीट खाली हो गई, जैसे इस बार रायपुर दक्षिण सीट हुई है। इसके बाद खैरागढ़ सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा से कोमल जंघेल जीत गए थे। देवव्रत सिंह के निधन के बाद 2022 में फिर खैरागढ़ में उपचुनाव हुए। इस बार हुए कांग्रेस से यशोदा वर्मा जीत गईं। यहां कांग्रेस ने खैरागढ़ को जिला बनाने का दांव खेला था। इस उपचुनाव में जीत के तुरंत बाद ही खैरागढ़-छुईखदान-गंडई को जिला बनाया गया। भूपेश सरकार में प्रदेश में पांच उपचुनाव हुए थे। इनमें सभी में कांग्रेस की जीत हुई थी। इनमें दंतेवाड़ा, चित्रकोट, मरवाही, खैरागढ़ और भानुप्रतापपुर का उपचुनाव शामिल है।