मौसंबी के साथ ताइवानी अमरूद और तुअर की खेती:नेपाल, नई दिल्ली, कोलकाता तक एक्सपोर्ट; पांढुर्णा का किसान कमा रहा सालाना 9 लाख का प्रॉफिट

किसान आमतौर पर एक बार में एक ही फसल उगाता है, लेकिन पांढुर्णा के 33 साल के निकेश खानवे कुछ अलग कर रहे हैं। वे एक बार में तीन तरह की फसल ले रहे हैं। निकेश 8 एकड़ में मौसंबी, ताइवानी अमरूद और तुअर की खेती कर रहे हैं। बड़ी बात ये है कि उन्होंने तीनों के पौधे एक साथ और पास-पास लगाए हैं। हाल ही में मौसंबी की पहली फसल बेची है। इससे 12 लाख रुपए से ज्यादा का प्रॉफिट हुआ है। इतना ही नहीं, निकेश 10 से 12 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। निकेश ने एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन किया है। वे खाद-बीज की दुकान भी चलाते हैं। दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में इस बार बात निकेश खानवे की ही, जिनकी सफलता से दूसरे किसान भी प्रेरित हो रहे हैं। पहले जानिए, एक साथ तीन फसलें कैसे ले रहे निकेश खानवे बताते हैं, ‘हमारा पहले से ही 4000 पेड़ों का संतरे का बागान है। परंपरागत फसल उगाते थे तो मुनाफा कम होता था। एक दोस्त की सलाह पर तीन साल पहले 8 एकड़ में मौसंबी के 1500 पौधे लगाए। संतरे और मौसंबी एक जैसी मिट्टी और वातावरण में लग जाते हैं। काली और सामान्य मिट्‌टी की जरूरत होती है। मौसंबी की फसल के लिए धूप, बारिश और ठंड का मौसम अनुकूल माना जाता है। बारिश के सीजन में 50 रुपए प्रति पेड़ के हिसाब से 1500 पौधे मौसंबी के खरीदे। 10 बाय 15 की दूरी पर गड्‌ढे करके इन्हें लगा दिया। दो साल तक लगातार देखभाल की। पेड़ों के बीच दूरी पर्याप्त रखी। दूसरे साल में इनके बीच में ताइवानी अमरूद के 1200 पेड़ लगाए। इसके बाद दोनों पेड़ों के बीच बची जगह में तुअर की बुवाई कर दी। लगातार देखभाल से तीसरे साल 2024 में मौसंबी की बंपर फसल से 9 लाख रुपए से अधिक का मुनाफा हुआ। यानी एक साथ तीन फसलें लगाकर ज्यादा मुनाफा कमाया।’ पंचामृत का स्प्रे, गोबर और केंचुआ खाद का इस्तेमाल निकेश बताते हैं कि मौसंबी के पेड़ों को कीटों से बचाने के लिए पंचामृत का स्प्रे किया जाता है। गौमूत्र, बेसन, गोबर और नीम की पत्ती का मिश्रण करके पंचामृत बनाया जाता है। गोबर और केंचुआ खाद का इस्तेमाल भी किया जाता है। केंचुआ खाद के लिए खेत में टंकी बनाई हैं। निकेश खानवे के खेत में मौसंबी की फसल की देखरेख करने के लिए हर दिन 10 मजदूर काम करते हैं। एक मजदूर पर रोजाना करीब 300 से 500 रुपए तक खर्च होता है। 25 से 30 टन उत्पादन, 35 रुपए प्रति किलो बिक्री निकेश खानवे का कहना है कि मौसंबी फसल का पहला उत्पादन 30 हजार टन हुआ है। संतरे की अपेक्षा मौसंबी को प्रति टन के हिसाब से बेचा जाता है। मौसंबी को 35 रुपए प्रति किलो के हिसाब से दाम मिल रहे हैं। निकेश के दोस्त और पांढुर्णा के संतरा व्यापारी राजेश पाल ने बताया कि मौसंबी का निर्यात नेपाल, नई दिल्ली और कोलकाता में सबसे अधिक हो रहा है। फिलहाल, बांग्लादेश में जारी तनाव के चलते मौसंबी और संतरे के परिवहन को ब्रेक लगा है।

मौसंबी के साथ ताइवानी अमरूद और तुअर की खेती:नेपाल, नई दिल्ली, कोलकाता तक एक्सपोर्ट; पांढुर्णा का किसान कमा रहा सालाना 9 लाख का प्रॉफिट
किसान आमतौर पर एक बार में एक ही फसल उगाता है, लेकिन पांढुर्णा के 33 साल के निकेश खानवे कुछ अलग कर रहे हैं। वे एक बार में तीन तरह की फसल ले रहे हैं। निकेश 8 एकड़ में मौसंबी, ताइवानी अमरूद और तुअर की खेती कर रहे हैं। बड़ी बात ये है कि उन्होंने तीनों के पौधे एक साथ और पास-पास लगाए हैं। हाल ही में मौसंबी की पहली फसल बेची है। इससे 12 लाख रुपए से ज्यादा का प्रॉफिट हुआ है। इतना ही नहीं, निकेश 10 से 12 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। निकेश ने एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन किया है। वे खाद-बीज की दुकान भी चलाते हैं। दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में इस बार बात निकेश खानवे की ही, जिनकी सफलता से दूसरे किसान भी प्रेरित हो रहे हैं। पहले जानिए, एक साथ तीन फसलें कैसे ले रहे निकेश खानवे बताते हैं, ‘हमारा पहले से ही 4000 पेड़ों का संतरे का बागान है। परंपरागत फसल उगाते थे तो मुनाफा कम होता था। एक दोस्त की सलाह पर तीन साल पहले 8 एकड़ में मौसंबी के 1500 पौधे लगाए। संतरे और मौसंबी एक जैसी मिट्टी और वातावरण में लग जाते हैं। काली और सामान्य मिट्‌टी की जरूरत होती है। मौसंबी की फसल के लिए धूप, बारिश और ठंड का मौसम अनुकूल माना जाता है। बारिश के सीजन में 50 रुपए प्रति पेड़ के हिसाब से 1500 पौधे मौसंबी के खरीदे। 10 बाय 15 की दूरी पर गड्‌ढे करके इन्हें लगा दिया। दो साल तक लगातार देखभाल की। पेड़ों के बीच दूरी पर्याप्त रखी। दूसरे साल में इनके बीच में ताइवानी अमरूद के 1200 पेड़ लगाए। इसके बाद दोनों पेड़ों के बीच बची जगह में तुअर की बुवाई कर दी। लगातार देखभाल से तीसरे साल 2024 में मौसंबी की बंपर फसल से 9 लाख रुपए से अधिक का मुनाफा हुआ। यानी एक साथ तीन फसलें लगाकर ज्यादा मुनाफा कमाया।’ पंचामृत का स्प्रे, गोबर और केंचुआ खाद का इस्तेमाल निकेश बताते हैं कि मौसंबी के पेड़ों को कीटों से बचाने के लिए पंचामृत का स्प्रे किया जाता है। गौमूत्र, बेसन, गोबर और नीम की पत्ती का मिश्रण करके पंचामृत बनाया जाता है। गोबर और केंचुआ खाद का इस्तेमाल भी किया जाता है। केंचुआ खाद के लिए खेत में टंकी बनाई हैं। निकेश खानवे के खेत में मौसंबी की फसल की देखरेख करने के लिए हर दिन 10 मजदूर काम करते हैं। एक मजदूर पर रोजाना करीब 300 से 500 रुपए तक खर्च होता है। 25 से 30 टन उत्पादन, 35 रुपए प्रति किलो बिक्री निकेश खानवे का कहना है कि मौसंबी फसल का पहला उत्पादन 30 हजार टन हुआ है। संतरे की अपेक्षा मौसंबी को प्रति टन के हिसाब से बेचा जाता है। मौसंबी को 35 रुपए प्रति किलो के हिसाब से दाम मिल रहे हैं। निकेश के दोस्त और पांढुर्णा के संतरा व्यापारी राजेश पाल ने बताया कि मौसंबी का निर्यात नेपाल, नई दिल्ली और कोलकाता में सबसे अधिक हो रहा है। फिलहाल, बांग्लादेश में जारी तनाव के चलते मौसंबी और संतरे के परिवहन को ब्रेक लगा है।