पद्मश्री विजेता जगदीश जोशीला का निमाड़ में स्वागत:खरगोन में कहा- निमाड़ी को राजभाषा का दर्जा दिलाने के लिए समर्पित रहूंगा
पद्मश्री विजेता जगदीश जोशीला का निमाड़ में स्वागत:खरगोन में कहा- निमाड़ी को राजभाषा का दर्जा दिलाने के लिए समर्पित रहूंगा
खरगोन के साहित्यकार जगदीश जोशीला गुरुवार शाम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से पद्मश्री पुरस्कार लेने के बाद जिले में लौटे। इंदौर से गोगांवा तक उनके स्वागत के लिए अलग-अलग जगहों पर मंच लगाए गए। धामनोद, महेश्वर, मंडलेश्वर, कसरावद और खरगोन में सामजिक संगठनों ने उनका सम्मान किया। इस दौरान जोशीला ने कहा कि यह पुरस्कार पूरे निमाड़ को मिला है। यह निमाड़ी की कमाई है। मैंने जो निमाड़ी का झंडा उठाया है। उसे राजभाषा का दर्जा दिलाने तक आजीवन तन, मन, धन से समर्पित रहूंगा। जोशीला ने इंदौर से दोपहर 2 बजे यात्रा शुरू की थी। शाम को वे गृहनगर गोगांवा पहुंचे। यहां हंसराज गार्डन में स्वागत कार्यक्रम हुआ। जोशीला ने कहा कि इस सम्मान से जो अनुभूति हो रही है, उसे शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है। देश के इकलौते निमाड़ी उपन्यासकार 76 वर्षीय जगदीश जोशीला को बुधवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में पद्मश्री सम्मान दिया गया। वे साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में लंबे योगदान के लिए चुने गए हैं। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। जोशीला ने इस सम्मान को निमाड़ और निमाड़ी बोली का सम्मान बताया। 56 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं जोशीला ने निमाड़ी और हिंदी में 56 से अधिक किताबें लिखीं हैं। उनके उपन्यासों में संत सिंगाजी, अहिल्या बाई होलकर, टंट्या भील और आदिगुरु शंकराचार्य जैसे लोकनायकों और ऐतिहासिक पात्रों की कहानियां हैं। उनकी रचनाओं ने निमाड़ की संस्कृति, बोली और कला को नई पहचान दी है। जोशीला का जन्म एक श्रमिक परिवार में हुआ। जीवनयापन के लिए उन्होंने माहेश्वरी साड़ी बुनाई का काम किया। उनकी लेखनी को देखकर प्रसिद्ध लेखक माखनलाल चतुर्वेदी ने उन्हें 'जोशीला' उपनाम दिया था। ये खबर भी पढ़ें.. निमाड़ी साहित्यकार जगदीश जोशीला को मिला पद्मश्री पुरस्कार खरगोन के साहित्यकार जगदीश जोशीला को बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्मश्री से सम्मानित किया। यह सम्मान उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए मिला। जोशीला ने पद्मश्री को निमाड़ और निमाड़ी बोली का सम्मान बताया। पूरी खबर पढ़ें...
खरगोन के साहित्यकार जगदीश जोशीला गुरुवार शाम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से पद्मश्री पुरस्कार लेने के बाद जिले में लौटे। इंदौर से गोगांवा तक उनके स्वागत के लिए अलग-अलग जगहों पर मंच लगाए गए। धामनोद, महेश्वर, मंडलेश्वर, कसरावद और खरगोन में सामजिक संगठनों ने उनका सम्मान किया। इस दौरान जोशीला ने कहा कि यह पुरस्कार पूरे निमाड़ को मिला है। यह निमाड़ी की कमाई है। मैंने जो निमाड़ी का झंडा उठाया है। उसे राजभाषा का दर्जा दिलाने तक आजीवन तन, मन, धन से समर्पित रहूंगा। जोशीला ने इंदौर से दोपहर 2 बजे यात्रा शुरू की थी। शाम को वे गृहनगर गोगांवा पहुंचे। यहां हंसराज गार्डन में स्वागत कार्यक्रम हुआ। जोशीला ने कहा कि इस सम्मान से जो अनुभूति हो रही है, उसे शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है। देश के इकलौते निमाड़ी उपन्यासकार 76 वर्षीय जगदीश जोशीला को बुधवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में पद्मश्री सम्मान दिया गया। वे साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में लंबे योगदान के लिए चुने गए हैं। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। जोशीला ने इस सम्मान को निमाड़ और निमाड़ी बोली का सम्मान बताया। 56 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं जोशीला ने निमाड़ी और हिंदी में 56 से अधिक किताबें लिखीं हैं। उनके उपन्यासों में संत सिंगाजी, अहिल्या बाई होलकर, टंट्या भील और आदिगुरु शंकराचार्य जैसे लोकनायकों और ऐतिहासिक पात्रों की कहानियां हैं। उनकी रचनाओं ने निमाड़ की संस्कृति, बोली और कला को नई पहचान दी है। जोशीला का जन्म एक श्रमिक परिवार में हुआ। जीवनयापन के लिए उन्होंने माहेश्वरी साड़ी बुनाई का काम किया। उनकी लेखनी को देखकर प्रसिद्ध लेखक माखनलाल चतुर्वेदी ने उन्हें 'जोशीला' उपनाम दिया था। ये खबर भी पढ़ें.. निमाड़ी साहित्यकार जगदीश जोशीला को मिला पद्मश्री पुरस्कार खरगोन के साहित्यकार जगदीश जोशीला को बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्मश्री से सम्मानित किया। यह सम्मान उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए मिला। जोशीला ने पद्मश्री को निमाड़ और निमाड़ी बोली का सम्मान बताया। पूरी खबर पढ़ें...