इंदौर में दो दिनी हर्निया एसेंशियल्स डिडैक्टिक्स वर्कशॉप:समय पर की गई सर्जरी से बचाया जा सकता है हर्निया

इंदौर में आयोजित दो दिनी मेडिकल ट्रेनिंग वर्कशॉप “हर्निया एसेंशियल्स डिडैक्टिक्स” के दूसरे दिन 5 जुलाई को चिकित्सा शिक्षा और सर्जिकल उत्कृष्टता की दिशा में एक प्रभावशाली कदम देखने को मिला। देशभर से आए युवा सर्जनों, मेडिकल छात्रों और विशेषज्ञों ने इस सघन प्रशिक्षण सत्र में भाग लिया। इसमें हर्निया की जटिलताओं, आधुनिक सर्जिकल तकनीकों और लाइव केस प्रेजेंटेशन पर गहन चर्चा हुई। दिन की शुरुआत सुबह 9 बजे लाइव वर्कशॉप से हुई, जिसमें हर्निया रिपेयर की प्रमुख तकनीकों TEP रिपेयर, TAP/TEP रिपेयर, IPOM रिव्यू रिपेयर, E-TEP रिपेयर और लिचेंस्टीन रिपेयर का लाइव प्रदर्शन किया गया। इन वास्तविक सर्जरी के दौरान प्रतिभागियों को तकनीकों की सूक्ष्मताओं को बारीकी से समझने और अनुभव करने का अवसर मिला। दो दिनी वर्कशॉप में में देशभर से आए सर्जनों, मेडिकल छात्रों और पोस्टग्रेजुएट ट्रेनीज़ ने हिस्सा लिया। उन्हें हर्निया रोग की बारीकियों, नवीनतम सर्जिकल तकनीकों और उपचार के आधुनिक तरीकों की गहन जानकारी दी गई। इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में हर्निया के विभिन्न प्रकारों, विशेषकर इनगुइनल, वेंट्रल और इनसिजनल हर्निया, के निदान, थ्योरी से लेकर थ्री-डायमेंशनल लैप्रोस्कोपी और नवीनतम eTEP, MILOS, TARM तकनीकों तक की विस्तृत चर्चा की गई। प्रतिभागियों को केस-आधारित चर्चाओं, वीडियो केस स्टडीज़, लाइव डेमोन्स्ट्रेशन और फीडबैक सेशनों के माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त हुआ। सीनियर सर्जन डॉ. सी. पी. कोठारी ने 'क्लासिफिकेशन ऑफ हर्निया, हर्निया रिपेयर, लेप्रोस्कोपिक बनाम ओपन रिपेयर तकनीक, टीईपी/टीएपीपी जैसे विषयों पर बात की। उन्होंने हर्निया के प्रकारों की वैज्ञानिक वर्गीकरण पद्धति को सरल और व्यावहारिक ढंग से प्रस्तुत किया। उनका जोर इस बात पर था कि हर रोगी के लिए उपचार का निर्णय व्यक्तिगत जांच और आवश्यकता पर आधारित होना चाहिए। वर्कशॉप के कन्वीनर डॉ. अमिताभ गोयल ने कहा इंदौर में आयोजित यह दो दिनी कार्यशाला ‘हर्निया एसेंशियल्स डिडैक्टिक्स’ हर्निया सर्जरी की बुनियादी और आधुनिक तकनीकों पर आधारित एक व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम है। यह कोर्स उन सभी युवा सर्जनों, मेडिकल ट्रेनीज़ और पोस्टग्रेजुएट छात्रों के लिए है जो हर्निया के क्षेत्र में अपनी समझ और सर्जिकल कौशल को मजबूत करना चाहते हैं। यह कार्यशाला इंटरनेशनल गाइडलाइन्स पर आधारित थी और इसमें हर्निया की एनाटॉमी से लेकर क्लासिफिकेशन, सर्जरी के प्रकार, सही निर्णय लेने की प्रक्रिया और एडवांस्ड लैप्रोस्कोपिक अप्रोच तक हर जरूरी पहलू को कवर किया गया। प्रतिभागियों को लाइव केस डिस्कशन, रेडियोलॉजी एनालिसिस और सर्जिकल पोजिशनिंग जैसी बारीक चीजें भी सिखाई गई। सर्जन डॉ. गणेश शेनॉय (बेंगलूर) ने कहा कि हर्निया की जटिलताओं को हम जितनी जल्दी पहचानें, परिणाम उतने ही बेहतर होते हैं। यह कार्यक्रम इस सोच पर आधारित था कि हर सर्जन को न केवल तकनीकी ज्ञान हो, बल्कि उसे यह भी पता हो कि कब और क्यों किसी विशेष प्रक्रिया को अपनाना है। सर्जरी के बाद की जटिलताओं और संक्रमण को कैसे कम किया जाए, यह भी एक अहम हिस्सा रहा। डॉ. अंकुर महेश्वरी ने कहा कि हर्निया एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर के अंदर का कोई अंग या ऊतक कमजोर मांसपेशियों या ऊतकों की दीवार से बाहर की ओर निकलने लगता है। आमतौर पर यह पेट के निचले हिस्से में होता है। यह अधिक वजन उठाने, पुरानी खांसी, कब्ज, सर्जरी के बाद की कमजोरी या उम्र बढ़ने के कारण हो सकता है। हर्निया के प्रमुख लक्षणों में किसी हिस्से में सूजन या उभार, चलने-फिरने या खांसने पर दर्द, भारीपन का अहसास और कभी-कभी कब्ज शामिल हैं। अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो हर्निया जटिल रूप ले सकता है, इसलिए इसका इलाज आवश्यक है। एशिया पैसिफिक हर्निया सोसाइटी (APHS) के अध्यक्ष और वरिष्ठ सर्जन डॉ. राजेश खुल्लर द्वारा एक विशेष वीडियो सेशन का आयोजन किया गया। इस सत्र में इनगुइनल, वेंट्रल और इनसिजनल हर्निया की जटिल अवस्थाओं के प्रभावी प्रबंधन और समय पर निदान की महत्ता को रेखांकित किया गया। उन्होंने कहा कि हर्निया की सही पहचान और समय पर की गई सर्जरी से न केवल बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है, बल्कि रोगी की जीवन गुणवत्ता भी बेहतर की जा सकती है।” कार्यशाला के दौरान केस-आधारित डेमोन्स्ट्रेशन भी हुए, जिनमें केस की प्रकृति, लोकेशन और जटिलता के अनुसार उपयुक्त सर्जिकल तकनीक के चयन की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया गया। वर्कशॉप के अंतिम चरण में केस क्लोजिंग, पोस्ट-ऑप केयर और संभावित जटिलताओं पर भी चर्चा की गई। समापन पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए। डॉ. अमिताभ गोयल ने कहा इस वर्कशॉप का उद्देश्य केवल सर्जनों को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करना नहीं था, बल्कि आमजन को यह समझाना भी था कि हर्निया एक सामान्य समस्या नहीं है। पेट की दीवार की कमजोरी से उत्पन्न यह स्थिति समय रहते पहचान ली जाए तो पूरी तरह ठीक की जा सकती है। हल्की सूजन या उभार को नजरअंदाज न करें। आज की आधुनिक तकनीकों से हर्निया का इलाज तेज़, सुरक्षित और कम दर्द वाला है।

इंदौर में दो दिनी हर्निया एसेंशियल्स डिडैक्टिक्स वर्कशॉप:समय पर की गई सर्जरी से बचाया जा सकता है हर्निया
इंदौर में आयोजित दो दिनी मेडिकल ट्रेनिंग वर्कशॉप “हर्निया एसेंशियल्स डिडैक्टिक्स” के दूसरे दिन 5 जुलाई को चिकित्सा शिक्षा और सर्जिकल उत्कृष्टता की दिशा में एक प्रभावशाली कदम देखने को मिला। देशभर से आए युवा सर्जनों, मेडिकल छात्रों और विशेषज्ञों ने इस सघन प्रशिक्षण सत्र में भाग लिया। इसमें हर्निया की जटिलताओं, आधुनिक सर्जिकल तकनीकों और लाइव केस प्रेजेंटेशन पर गहन चर्चा हुई। दिन की शुरुआत सुबह 9 बजे लाइव वर्कशॉप से हुई, जिसमें हर्निया रिपेयर की प्रमुख तकनीकों TEP रिपेयर, TAP/TEP रिपेयर, IPOM रिव्यू रिपेयर, E-TEP रिपेयर और लिचेंस्टीन रिपेयर का लाइव प्रदर्शन किया गया। इन वास्तविक सर्जरी के दौरान प्रतिभागियों को तकनीकों की सूक्ष्मताओं को बारीकी से समझने और अनुभव करने का अवसर मिला। दो दिनी वर्कशॉप में में देशभर से आए सर्जनों, मेडिकल छात्रों और पोस्टग्रेजुएट ट्रेनीज़ ने हिस्सा लिया। उन्हें हर्निया रोग की बारीकियों, नवीनतम सर्जिकल तकनीकों और उपचार के आधुनिक तरीकों की गहन जानकारी दी गई। इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में हर्निया के विभिन्न प्रकारों, विशेषकर इनगुइनल, वेंट्रल और इनसिजनल हर्निया, के निदान, थ्योरी से लेकर थ्री-डायमेंशनल लैप्रोस्कोपी और नवीनतम eTEP, MILOS, TARM तकनीकों तक की विस्तृत चर्चा की गई। प्रतिभागियों को केस-आधारित चर्चाओं, वीडियो केस स्टडीज़, लाइव डेमोन्स्ट्रेशन और फीडबैक सेशनों के माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त हुआ। सीनियर सर्जन डॉ. सी. पी. कोठारी ने 'क्लासिफिकेशन ऑफ हर्निया, हर्निया रिपेयर, लेप्रोस्कोपिक बनाम ओपन रिपेयर तकनीक, टीईपी/टीएपीपी जैसे विषयों पर बात की। उन्होंने हर्निया के प्रकारों की वैज्ञानिक वर्गीकरण पद्धति को सरल और व्यावहारिक ढंग से प्रस्तुत किया। उनका जोर इस बात पर था कि हर रोगी के लिए उपचार का निर्णय व्यक्तिगत जांच और आवश्यकता पर आधारित होना चाहिए। वर्कशॉप के कन्वीनर डॉ. अमिताभ गोयल ने कहा इंदौर में आयोजित यह दो दिनी कार्यशाला ‘हर्निया एसेंशियल्स डिडैक्टिक्स’ हर्निया सर्जरी की बुनियादी और आधुनिक तकनीकों पर आधारित एक व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम है। यह कोर्स उन सभी युवा सर्जनों, मेडिकल ट्रेनीज़ और पोस्टग्रेजुएट छात्रों के लिए है जो हर्निया के क्षेत्र में अपनी समझ और सर्जिकल कौशल को मजबूत करना चाहते हैं। यह कार्यशाला इंटरनेशनल गाइडलाइन्स पर आधारित थी और इसमें हर्निया की एनाटॉमी से लेकर क्लासिफिकेशन, सर्जरी के प्रकार, सही निर्णय लेने की प्रक्रिया और एडवांस्ड लैप्रोस्कोपिक अप्रोच तक हर जरूरी पहलू को कवर किया गया। प्रतिभागियों को लाइव केस डिस्कशन, रेडियोलॉजी एनालिसिस और सर्जिकल पोजिशनिंग जैसी बारीक चीजें भी सिखाई गई। सर्जन डॉ. गणेश शेनॉय (बेंगलूर) ने कहा कि हर्निया की जटिलताओं को हम जितनी जल्दी पहचानें, परिणाम उतने ही बेहतर होते हैं। यह कार्यक्रम इस सोच पर आधारित था कि हर सर्जन को न केवल तकनीकी ज्ञान हो, बल्कि उसे यह भी पता हो कि कब और क्यों किसी विशेष प्रक्रिया को अपनाना है। सर्जरी के बाद की जटिलताओं और संक्रमण को कैसे कम किया जाए, यह भी एक अहम हिस्सा रहा। डॉ. अंकुर महेश्वरी ने कहा कि हर्निया एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर के अंदर का कोई अंग या ऊतक कमजोर मांसपेशियों या ऊतकों की दीवार से बाहर की ओर निकलने लगता है। आमतौर पर यह पेट के निचले हिस्से में होता है। यह अधिक वजन उठाने, पुरानी खांसी, कब्ज, सर्जरी के बाद की कमजोरी या उम्र बढ़ने के कारण हो सकता है। हर्निया के प्रमुख लक्षणों में किसी हिस्से में सूजन या उभार, चलने-फिरने या खांसने पर दर्द, भारीपन का अहसास और कभी-कभी कब्ज शामिल हैं। अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो हर्निया जटिल रूप ले सकता है, इसलिए इसका इलाज आवश्यक है। एशिया पैसिफिक हर्निया सोसाइटी (APHS) के अध्यक्ष और वरिष्ठ सर्जन डॉ. राजेश खुल्लर द्वारा एक विशेष वीडियो सेशन का आयोजन किया गया। इस सत्र में इनगुइनल, वेंट्रल और इनसिजनल हर्निया की जटिल अवस्थाओं के प्रभावी प्रबंधन और समय पर निदान की महत्ता को रेखांकित किया गया। उन्होंने कहा कि हर्निया की सही पहचान और समय पर की गई सर्जरी से न केवल बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है, बल्कि रोगी की जीवन गुणवत्ता भी बेहतर की जा सकती है।” कार्यशाला के दौरान केस-आधारित डेमोन्स्ट्रेशन भी हुए, जिनमें केस की प्रकृति, लोकेशन और जटिलता के अनुसार उपयुक्त सर्जिकल तकनीक के चयन की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया गया। वर्कशॉप के अंतिम चरण में केस क्लोजिंग, पोस्ट-ऑप केयर और संभावित जटिलताओं पर भी चर्चा की गई। समापन पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए। डॉ. अमिताभ गोयल ने कहा इस वर्कशॉप का उद्देश्य केवल सर्जनों को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करना नहीं था, बल्कि आमजन को यह समझाना भी था कि हर्निया एक सामान्य समस्या नहीं है। पेट की दीवार की कमजोरी से उत्पन्न यह स्थिति समय रहते पहचान ली जाए तो पूरी तरह ठीक की जा सकती है। हल्की सूजन या उभार को नजरअंदाज न करें। आज की आधुनिक तकनीकों से हर्निया का इलाज तेज़, सुरक्षित और कम दर्द वाला है।