सरकारी योजनाओं से वंचित 399 विस्थापित परिवार:14 साल से दफ्तरों के चक्कर काट रहे; इनकी जमीन राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं

छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले में बारनवापारा अभ्यारण को पर्यटन स्थल बनाने के लिए 399 परिवारों को विस्थापित किया गया। इन परिवारों को महासमुंद जिले की वन भूमि पर बसाया गया। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण इस वन भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया। इसका खामियाजा यहां रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है। वे जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, किसान क्रेडिट कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज नहीं बनवा पा रहे हैं। वृद्धा पेंशन, मनरेगा जॉब कार्ड और किसान सम्मान निधि का लाभ भी नहीं मिल रहा है। इनमें अधिकतर आदिवासी परिवार हैं। पिछले 14 सालों से ये लोग सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल रहा है। खुद के पैसों से सड़क पर मुरुम डाला विस्थापितों के आवागमन के लिए बना पुल भी क्षतिग्रस्त हो चुका है। स्कूली बच्चों को रोजाना इसी रास्ते से 6 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। लोगों को खुद के पैसों से सड़क पर मुरुम डलवाना पड़ता है। वन विभाग को कई बार आवेदन देने के बावजूद पुल की मरम्मत नहीं कराई गई है। ग्रामीणों को जीविकोपार्जन के लिए 5 एकड़ जमीन दी सरकार ने तीन अलग-अलग स्थानों पर इन परिवारों को बसाया है। रामसागर पारा में 168, श्रीरामपुर में 135 और लाटादादर में 96 परिवार रह रहे हैं। प्रत्येक परिवार को 12 डिसमिल जमीन पर सिंगल बीएचके मकान और जीविकोपार्जन के लिए 5 एकड़ जमीन दी गई है। परेशानी दूर करने कोई नहीं आया - ग्रामीण भावा पंचायत के लोगों का कहना है लोकसभा से लेकर पंचायत चुनाव में वोट देने का अधिकार तो मिला है लेकिन हमारी परेशानी दूर करने कोई भी सामने नहीं आया। जब तक वन भूमि को राजस्व मद परिवर्तन नहीं किया जाता ऐसे ही परेशानी होगी। प्रशासन ने कही सर्वे कराने की बात जब जिला प्रशासन को अपने परेशानी बताते हैं तो अधिकारी सिर्फ आश्वासन ही देते हैं। इस संबंध में कलेक्टर विनय कुमार लहंगे का कहना है विस्थापितों को बसाए गए तीनों स्थानों का वन और राजस्व विभाग की जॉइंट सर्वे कराया जाएगा। जरूर पड़ने पर शासन से भी अभिमत लेंगे।

सरकारी योजनाओं से वंचित 399 विस्थापित परिवार:14 साल से दफ्तरों के चक्कर काट रहे; इनकी जमीन राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं
छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले में बारनवापारा अभ्यारण को पर्यटन स्थल बनाने के लिए 399 परिवारों को विस्थापित किया गया। इन परिवारों को महासमुंद जिले की वन भूमि पर बसाया गया। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण इस वन भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया। इसका खामियाजा यहां रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है। वे जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, किसान क्रेडिट कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज नहीं बनवा पा रहे हैं। वृद्धा पेंशन, मनरेगा जॉब कार्ड और किसान सम्मान निधि का लाभ भी नहीं मिल रहा है। इनमें अधिकतर आदिवासी परिवार हैं। पिछले 14 सालों से ये लोग सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल रहा है। खुद के पैसों से सड़क पर मुरुम डाला विस्थापितों के आवागमन के लिए बना पुल भी क्षतिग्रस्त हो चुका है। स्कूली बच्चों को रोजाना इसी रास्ते से 6 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। लोगों को खुद के पैसों से सड़क पर मुरुम डलवाना पड़ता है। वन विभाग को कई बार आवेदन देने के बावजूद पुल की मरम्मत नहीं कराई गई है। ग्रामीणों को जीविकोपार्जन के लिए 5 एकड़ जमीन दी सरकार ने तीन अलग-अलग स्थानों पर इन परिवारों को बसाया है। रामसागर पारा में 168, श्रीरामपुर में 135 और लाटादादर में 96 परिवार रह रहे हैं। प्रत्येक परिवार को 12 डिसमिल जमीन पर सिंगल बीएचके मकान और जीविकोपार्जन के लिए 5 एकड़ जमीन दी गई है। परेशानी दूर करने कोई नहीं आया - ग्रामीण भावा पंचायत के लोगों का कहना है लोकसभा से लेकर पंचायत चुनाव में वोट देने का अधिकार तो मिला है लेकिन हमारी परेशानी दूर करने कोई भी सामने नहीं आया। जब तक वन भूमि को राजस्व मद परिवर्तन नहीं किया जाता ऐसे ही परेशानी होगी। प्रशासन ने कही सर्वे कराने की बात जब जिला प्रशासन को अपने परेशानी बताते हैं तो अधिकारी सिर्फ आश्वासन ही देते हैं। इस संबंध में कलेक्टर विनय कुमार लहंगे का कहना है विस्थापितों को बसाए गए तीनों स्थानों का वन और राजस्व विभाग की जॉइंट सर्वे कराया जाएगा। जरूर पड़ने पर शासन से भी अभिमत लेंगे।