स्वच्छता शृंगार योजना:हर साल सफाई पर 25 करोड़ खर्च, फिर भी छत्तीसगढ़ में 7% टॉयलेट ही साफ, 34 राज्यों के सर्वे में हम 30वें
स्वच्छता शृंगार योजना:हर साल सफाई पर 25 करोड़ खर्च, फिर भी छत्तीसगढ़ में 7% टॉयलेट ही साफ, 34 राज्यों के सर्वे में हम 30वें
छत्तीसगढ़ में पिछले साल नवंबर में टॉयलेट दिवस के मौके पर क्लीन टॉयलेट चैलेंज प्रतियोगिता शुरू की गई थी। इसके लिए देशभर के शहरी निकायों के 10 हजार टॉयलेट को चुना गया। इसका उद्देश्य शहरों में सार्वजनिक शौचालय की जमीनी स्थिति का आंकलन करना था। इस चैलेंज में 36 में से 34 राज्यों (इसमें केंद्रशासित प्रदेश भी में शामिल।)का सर्वे किया गया, जिसमें छत्तीसगढ़ ने 30वां पायदान हासिल किया हैै। छत्तीसगढ़ के चुने हुए 190 टॉयलेट में से केवल 14 ही स्वच्छ पाए गए...यानी 7 प्रतिशत ही। इसे लेकर भास्कर ने पड़ताल की, जिसमें कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। स्वच्छता श्रृंगार योजना के लिए केंद्र फंड देता है। पिछले 5 साल में प्रदेश में 1750 से ज्यादा पब्लिक टॉयलेट बनाए गए हैं, जिनमें 17000 से ज्यादा सीट हैं। इनके निर्माण में करीब 100 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च हुआ। यही नहीं, योजना से एक सीट के महीने भरके रखरखाव, साफ-सफाई व मरम्मत के लिए 1200 रुपए भी दिए जाते हैं। इस लिहाज से देखें तो मेंटेनेंस पर हर साल 25.62 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। पिछले पांच साल में करीब 125 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। ये खर्च सिर्फ स्वच्छता श्रृंगार योजना के अंतर्गत बनाए गए पब्लिक और सामुदायिक टॉयलेट का है। कई निकायों में टॉयलेट बिल्ड ऑपरेटिंग सिस्टम पर भी चल रहे हैं, जिसमें टॉयलेट शुल्क लिया जाता है। वहीं, निगम या नगर पंचायत के बनाए ऐसे टॉयलेट जो इस सिस्टम से नहीं बने हैं, उनमें केयर टेकर आदि का खर्च निकाय खुद वहन करता है। इसके अलावा कहीं-कहीं सामाजिक संस्थाएं भी इनका संचालन कर रही हैं। भास्कर ने 40 से अधिक टॉयलेट का मुआयना किया, तो कहीं पानी नहीं मिला तो कहीं केयर टेकर ही गायब थे। दिव्यांग के लिए सुविधाएं भी नहीं मिली। वहीं कई जगह महिलाओं के सेनेटरी पेड के बॉक्स भी नहीं दिखे। इस आंकलन में ट़ॉयलेट में सफाई के स्थिति के साथ ये सुविधाएं भी देखी गई। रायपुर में 5 साल पहले स्मार्ट सिटी ने भी 32 ई-टॉयलेट बनाए, जिनके निर्माण पर 2 करोड़ से ज्यादा खर्च हुए हैं, जो पिछले 5 साल में खराब हो चुके हैं। यह स्थिति स्वच्छ भारत सर्वेक्षण के बाद सामने आई है। सर्वेक्षण नवंबर-दिसंबर 2023 में प्रदेशों के शहरी निकायों ने नामांकित 10 हजार टॉयलेट में किया। इसमें निकायों को चुने हुए टॉयलेट के वीडियो भिजवाने थे। इसमें देखा गया कि टॉयलेट सुचारू रूप से काम कर रहे हैं या नहीं। साफ सुथरे हैं या नहीं। इकोफ्रेंडली होने के साथ सुरक्षित हैं या नहीं। सर्वे फॉर्म भी भरवाए गए। पब्लिक से भी फीड बैक लिया गया। टॉयलेट में केयर टेकर, स्वच्छता कर्मी नियमित सफाई का आंकलन किया गया। बता दें कि हाल ही में सर्वे का रिजल्ट जारी किया गया है। आंकड़ों से समझें पब्लिक टॉयलेट की मॉनिटरिंग बढ़ाई गई है, सुधार भी आया क्लीन टॉयलेट चैलेंज का रिजल्ट पिछले साल के सर्वे के आधार पर आया है। अभी हमने शहरों में पब्लिक टॉयलेट की मॉनिटरिंग बढ़ाई है। इससे सुधार देखा जा रहा है। हम इसका पूरा रिजल्ट भी मंगवा रहे हैं, ताकि ये जान सकें कि किन पैमाने पर स्थिति कमजोर रही है। वैसे सफाई के हर बिंदु पर रणनीति से काम कर रहे हैं।
-शशांक पांडे, सीईओ, सूडा
छत्तीसगढ़ में पिछले साल नवंबर में टॉयलेट दिवस के मौके पर क्लीन टॉयलेट चैलेंज प्रतियोगिता शुरू की गई थी। इसके लिए देशभर के शहरी निकायों के 10 हजार टॉयलेट को चुना गया। इसका उद्देश्य शहरों में सार्वजनिक शौचालय की जमीनी स्थिति का आंकलन करना था। इस चैलेंज में 36 में से 34 राज्यों (इसमें केंद्रशासित प्रदेश भी में शामिल।)का सर्वे किया गया, जिसमें छत्तीसगढ़ ने 30वां पायदान हासिल किया हैै। छत्तीसगढ़ के चुने हुए 190 टॉयलेट में से केवल 14 ही स्वच्छ पाए गए...यानी 7 प्रतिशत ही। इसे लेकर भास्कर ने पड़ताल की, जिसमें कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। स्वच्छता श्रृंगार योजना के लिए केंद्र फंड देता है। पिछले 5 साल में प्रदेश में 1750 से ज्यादा पब्लिक टॉयलेट बनाए गए हैं, जिनमें 17000 से ज्यादा सीट हैं। इनके निर्माण में करीब 100 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च हुआ। यही नहीं, योजना से एक सीट के महीने भरके रखरखाव, साफ-सफाई व मरम्मत के लिए 1200 रुपए भी दिए जाते हैं। इस लिहाज से देखें तो मेंटेनेंस पर हर साल 25.62 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। पिछले पांच साल में करीब 125 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। ये खर्च सिर्फ स्वच्छता श्रृंगार योजना के अंतर्गत बनाए गए पब्लिक और सामुदायिक टॉयलेट का है। कई निकायों में टॉयलेट बिल्ड ऑपरेटिंग सिस्टम पर भी चल रहे हैं, जिसमें टॉयलेट शुल्क लिया जाता है। वहीं, निगम या नगर पंचायत के बनाए ऐसे टॉयलेट जो इस सिस्टम से नहीं बने हैं, उनमें केयर टेकर आदि का खर्च निकाय खुद वहन करता है। इसके अलावा कहीं-कहीं सामाजिक संस्थाएं भी इनका संचालन कर रही हैं। भास्कर ने 40 से अधिक टॉयलेट का मुआयना किया, तो कहीं पानी नहीं मिला तो कहीं केयर टेकर ही गायब थे। दिव्यांग के लिए सुविधाएं भी नहीं मिली। वहीं कई जगह महिलाओं के सेनेटरी पेड के बॉक्स भी नहीं दिखे। इस आंकलन में ट़ॉयलेट में सफाई के स्थिति के साथ ये सुविधाएं भी देखी गई। रायपुर में 5 साल पहले स्मार्ट सिटी ने भी 32 ई-टॉयलेट बनाए, जिनके निर्माण पर 2 करोड़ से ज्यादा खर्च हुए हैं, जो पिछले 5 साल में खराब हो चुके हैं। यह स्थिति स्वच्छ भारत सर्वेक्षण के बाद सामने आई है। सर्वेक्षण नवंबर-दिसंबर 2023 में प्रदेशों के शहरी निकायों ने नामांकित 10 हजार टॉयलेट में किया। इसमें निकायों को चुने हुए टॉयलेट के वीडियो भिजवाने थे। इसमें देखा गया कि टॉयलेट सुचारू रूप से काम कर रहे हैं या नहीं। साफ सुथरे हैं या नहीं। इकोफ्रेंडली होने के साथ सुरक्षित हैं या नहीं। सर्वे फॉर्म भी भरवाए गए। पब्लिक से भी फीड बैक लिया गया। टॉयलेट में केयर टेकर, स्वच्छता कर्मी नियमित सफाई का आंकलन किया गया। बता दें कि हाल ही में सर्वे का रिजल्ट जारी किया गया है। आंकड़ों से समझें पब्लिक टॉयलेट की मॉनिटरिंग बढ़ाई गई है, सुधार भी आया क्लीन टॉयलेट चैलेंज का रिजल्ट पिछले साल के सर्वे के आधार पर आया है। अभी हमने शहरों में पब्लिक टॉयलेट की मॉनिटरिंग बढ़ाई है। इससे सुधार देखा जा रहा है। हम इसका पूरा रिजल्ट भी मंगवा रहे हैं, ताकि ये जान सकें कि किन पैमाने पर स्थिति कमजोर रही है। वैसे सफाई के हर बिंदु पर रणनीति से काम कर रहे हैं।
-शशांक पांडे, सीईओ, सूडा