19 मई को फैसला, मंत्री विजय शाह का क्या होगा:सरकार-पार्टी को सुप्रीम कोर्ट के रुख का इंतजार; इस्तीफा नहीं देने पर अड़े शाह
19 मई को फैसला, मंत्री विजय शाह का क्या होगा:सरकार-पार्टी को सुप्रीम कोर्ट के रुख का इंतजार; इस्तीफा नहीं देने पर अड़े शाह
सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह की याचिका पर सुनवाई 19 मई तक आगे बढ़ गई है। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि एमपी पुलिस शाह को देश की अखंडता को नुकसान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार करेगी या नहीं? कानून के जानकार कहते हैं कि देश की अखंडता को ठेस पहुंचाने की जिन धाराओं में केस दर्ज हुआ है, उसमें गिरफ्तारी की जानी चाहिए। हालांकि, पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के सवाल पर चुप्पी साधे हुए हैं। उधर, सरकार सुप्रीम कोर्ट के रुख का इंतजार कर रही है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शुक्रवार को दोहराया कि केस न्यायालय में है और न्यायालय जो भी फैसला देगा उसका सम्मान किया जाएगा। पढ़िए शाह को लेकर क्या संभावनाएं बन रही है। सभी को सुप्रीम कोर्ट के रुख का इंतजार क्यों है? विजय शाह खेमे ने सोशल मीडिया से शुरू की लामबंदी
इस पूरे मामले के बाद विजय शाह के समर्थकों ने लामबंदी शुरू कर दी है। शाह के बेटे दिव्यादित्य मित्र मंडल की ओर से सोशल मीडिया पर ऐसे संदेश प्रसारित किए जा रहे हैं, जिनमें मंत्री शाह सेना के जवानों के साथ खड़े हैं। शाह के खिलाफ बने नरेटिव के बीच उनके समर्थन में ऐसी सैकडों पोस्ट सोशल मीडिया पर अपलोड की जा रही है। हालांकि, खुद मंत्री विजय शाह ने चुप्पी साध ली है। उन्होंने मीडिया से दूरी बना ली है। उन्हें पार्टी संगठन ने हिदायत दी है कि वे इस मामले में अब एक शब्द भी न बोलें। इसके बाद से ही शाह भोपाल से दूर हो गए हैं और वे किसी भी मीडिया से बात नहीं कर रहे हैं। वे न तो भोपाल के बंगले पर हैं न ही खंडवा में हैं। भास्कर ने शाह की वकील विभा दत्त माखीजा से संपर्क किया तो जवाब मिला कि वे इस विषय में कोई जानकारी नहीं देंगी कि उन्होंने कोर्ट में किन बिंदुओं के आधार पर राहत मांगी है। बीजेपी वेट एंड वॉच की स्थिति में
सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रही है। 19 मई को होने वाली सुनवाई में यदि सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के आदेश पर हुई एफआईआर को सही ठहरा दे, तब सरकार निर्णायक स्थिति में होगी। हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि बीजेपी किसी प्रेशर में फैसला नहीं लेती। बीजेपी अगले दो दिनों में इस बात पर बारीकी से नजर रखेगी कि इस मुद्दे पर क्या जनमानस बन रहा है? पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि प्रज्ञा ने महात्मा गांधी को लेकर अशोभनीय टिप्पणी की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, मैं उन्हें माफ नहीं कर सकता, मगर पार्टी ने प्रज्ञा के खिलाफ तुरंत कोई एक्शन नहीं लिया। अगले चुनाव में उनका टिकट काटकर रुख स्पष्ट किया। क्या सरकार आदिवासी वोट बैंक के प्रेशर में है?
एक्सपर्ट कहते हैं कि विजय शाह के बयान पर पार्टी के भीतर और जनता में नाराजगी को पार्टी और सरकार दोनों समझ रही है, लेकिन शाह का आदिवासी होना तुरंत एक्शन में बाधा बन रहा है। दूसरी तरफ शाह के समर्थन में लामबंद लोगों ने तर्क दिया है कि बीते दिनों प्रहलाद पटेल के भीख मांगने वाले बयान पर उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं हुआ। दूसरे मंत्रियों पर भी गंभीर आरोप लगे, लेकिन उन पर भी पार्टी ने कोई एक्शन नहीं लिया तो अकेले शाह पर एक्शन की बात क्यों? शाह तो अपने बयान पर माफी भी मांग चुके हैं। क्या कांग्रेस को माइलेज मिल सकता है?
फौरी तौर पर बीजेपी के एक खेमे को ऐसा लग रहा है। वजह ये है कि कांग्रेस ने जनता के गुस्से वाले इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया है। जाहिर है कि यदि बीजेपी ने तुरंत एक्शन लिया तो कांग्रेस इसे अपनी जीत प्रचारित करेगी। वो तीन सवाल जिनका जवाब हर कोई जानना चाहता है 1. क्या शाह गिरफ्तार होंगे?
इस केस से जुड़े पुलिस अधिकारी इस सवाल काे टाल रहे हैं। इंदौर ग्रामीण की एसपी हितिका वासल से जब भास्कर ने ये सवाल पूछा तो उन्होंने सिर्फ ये कहा कि अभी इन्वेस्टिगेशन जारी है। उन्होंने इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं दिया कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद एफआईआर में संशोधन हुआ या नहीं? हालांकि एमपी के पूर्व एडवोकेट जनरल और सीनियर एडवोकेट अजय गुप्ता कहते हैं कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की जिन धाराओं में केस दर्ज हुआ है, उसमें गिरफ्तारी की जानी चाहिए। शाह के खिलाफ देश की अखंडता को बाधित करने का केस है। 2. क्या मंत्री रहते गिरफ्तारी संभव है?
गुप्ता कहते हैं कि अपराध गंभीर है। जिस तरह की धाराओं में केस है, उसमें पुलिस पर इस बात का नैतिक दबाव है कि गिरफ्तारी हो। हालांकि, मुख्यमंत्री मोहन यादव के पास ही गृह विभाग है। सीएम शुक्रवार को दोहरा चुके हैं कि केस विचाराधीन है। इससे ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि सरकार 19 मई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करेगी। न्यायालय से बढ़कर कोई नहीं है। विजय शाह मामले से जुड़ीं ये खबरें भी पढ़ें... 1.हाईकोर्ट का सवाल-क्या मंत्री को बचाने लिखी ऐसी एफआईआर:जवाब- राज्य की मंशा पर संदेह न करें; पढ़िए, मंत्री को बचाने वाली दलीलें मध्यप्रदेश के एडवोकेट जनरल प्रशांत सिंह ने गुरुवार को जब मंत्री विजय शाह की एफआईआर उनके सामने रखी तो जस्टिस श्रीधरन ने कहा कि आपके कृत्य से नीयत का अंदाजा हो रहा है, इसलिए अब नए सिरे से एफआईआर दर्ज होगी। साथ ही इस केस की पूरी जांच भी हमारी निगरानी में होगी। दरअसल, हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार की तरफ से विजय शाह के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज की गई, मगर इसमें ये नहीं लिखा कि विजय शाह ने सार्वजनिक तौर पर कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर क्या कहा था? जो कहा था वो किन-किन धाराओं के तहत किस अपराध की कैटेगरी में आता है? पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 2.अब तक विजय शाह का इस्तीफा नहीं होने की वजह:आदिवासी वोटर, प्रेशर में एक्शन नहीं लेने की रणनीति या विधायकी छोड़ने का डर कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर विवादास्पद टिप्पणी करने वाले मंत्री विजय शाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है, लेकिन उन्होंने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया, जबकि शाह की इस हरकत का पूरे देश में विरोध हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री उ
सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह की याचिका पर सुनवाई 19 मई तक आगे बढ़ गई है। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि एमपी पुलिस शाह को देश की अखंडता को नुकसान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार करेगी या नहीं? कानून के जानकार कहते हैं कि देश की अखंडता को ठेस पहुंचाने की जिन धाराओं में केस दर्ज हुआ है, उसमें गिरफ्तारी की जानी चाहिए। हालांकि, पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के सवाल पर चुप्पी साधे हुए हैं। उधर, सरकार सुप्रीम कोर्ट के रुख का इंतजार कर रही है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शुक्रवार को दोहराया कि केस न्यायालय में है और न्यायालय जो भी फैसला देगा उसका सम्मान किया जाएगा। पढ़िए शाह को लेकर क्या संभावनाएं बन रही है। सभी को सुप्रीम कोर्ट के रुख का इंतजार क्यों है? विजय शाह खेमे ने सोशल मीडिया से शुरू की लामबंदी
इस पूरे मामले के बाद विजय शाह के समर्थकों ने लामबंदी शुरू कर दी है। शाह के बेटे दिव्यादित्य मित्र मंडल की ओर से सोशल मीडिया पर ऐसे संदेश प्रसारित किए जा रहे हैं, जिनमें मंत्री शाह सेना के जवानों के साथ खड़े हैं। शाह के खिलाफ बने नरेटिव के बीच उनके समर्थन में ऐसी सैकडों पोस्ट सोशल मीडिया पर अपलोड की जा रही है। हालांकि, खुद मंत्री विजय शाह ने चुप्पी साध ली है। उन्होंने मीडिया से दूरी बना ली है। उन्हें पार्टी संगठन ने हिदायत दी है कि वे इस मामले में अब एक शब्द भी न बोलें। इसके बाद से ही शाह भोपाल से दूर हो गए हैं और वे किसी भी मीडिया से बात नहीं कर रहे हैं। वे न तो भोपाल के बंगले पर हैं न ही खंडवा में हैं। भास्कर ने शाह की वकील विभा दत्त माखीजा से संपर्क किया तो जवाब मिला कि वे इस विषय में कोई जानकारी नहीं देंगी कि उन्होंने कोर्ट में किन बिंदुओं के आधार पर राहत मांगी है। बीजेपी वेट एंड वॉच की स्थिति में
सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रही है। 19 मई को होने वाली सुनवाई में यदि सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के आदेश पर हुई एफआईआर को सही ठहरा दे, तब सरकार निर्णायक स्थिति में होगी। हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि बीजेपी किसी प्रेशर में फैसला नहीं लेती। बीजेपी अगले दो दिनों में इस बात पर बारीकी से नजर रखेगी कि इस मुद्दे पर क्या जनमानस बन रहा है? पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि प्रज्ञा ने महात्मा गांधी को लेकर अशोभनीय टिप्पणी की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, मैं उन्हें माफ नहीं कर सकता, मगर पार्टी ने प्रज्ञा के खिलाफ तुरंत कोई एक्शन नहीं लिया। अगले चुनाव में उनका टिकट काटकर रुख स्पष्ट किया। क्या सरकार आदिवासी वोट बैंक के प्रेशर में है?
एक्सपर्ट कहते हैं कि विजय शाह के बयान पर पार्टी के भीतर और जनता में नाराजगी को पार्टी और सरकार दोनों समझ रही है, लेकिन शाह का आदिवासी होना तुरंत एक्शन में बाधा बन रहा है। दूसरी तरफ शाह के समर्थन में लामबंद लोगों ने तर्क दिया है कि बीते दिनों प्रहलाद पटेल के भीख मांगने वाले बयान पर उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं हुआ। दूसरे मंत्रियों पर भी गंभीर आरोप लगे, लेकिन उन पर भी पार्टी ने कोई एक्शन नहीं लिया तो अकेले शाह पर एक्शन की बात क्यों? शाह तो अपने बयान पर माफी भी मांग चुके हैं। क्या कांग्रेस को माइलेज मिल सकता है?
फौरी तौर पर बीजेपी के एक खेमे को ऐसा लग रहा है। वजह ये है कि कांग्रेस ने जनता के गुस्से वाले इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया है। जाहिर है कि यदि बीजेपी ने तुरंत एक्शन लिया तो कांग्रेस इसे अपनी जीत प्रचारित करेगी। वो तीन सवाल जिनका जवाब हर कोई जानना चाहता है 1. क्या शाह गिरफ्तार होंगे?
इस केस से जुड़े पुलिस अधिकारी इस सवाल काे टाल रहे हैं। इंदौर ग्रामीण की एसपी हितिका वासल से जब भास्कर ने ये सवाल पूछा तो उन्होंने सिर्फ ये कहा कि अभी इन्वेस्टिगेशन जारी है। उन्होंने इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं दिया कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद एफआईआर में संशोधन हुआ या नहीं? हालांकि एमपी के पूर्व एडवोकेट जनरल और सीनियर एडवोकेट अजय गुप्ता कहते हैं कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की जिन धाराओं में केस दर्ज हुआ है, उसमें गिरफ्तारी की जानी चाहिए। शाह के खिलाफ देश की अखंडता को बाधित करने का केस है। 2. क्या मंत्री रहते गिरफ्तारी संभव है?
गुप्ता कहते हैं कि अपराध गंभीर है। जिस तरह की धाराओं में केस है, उसमें पुलिस पर इस बात का नैतिक दबाव है कि गिरफ्तारी हो। हालांकि, मुख्यमंत्री मोहन यादव के पास ही गृह विभाग है। सीएम शुक्रवार को दोहरा चुके हैं कि केस विचाराधीन है। इससे ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि सरकार 19 मई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करेगी। न्यायालय से बढ़कर कोई नहीं है। विजय शाह मामले से जुड़ीं ये खबरें भी पढ़ें... 1.हाईकोर्ट का सवाल-क्या मंत्री को बचाने लिखी ऐसी एफआईआर:जवाब- राज्य की मंशा पर संदेह न करें; पढ़िए, मंत्री को बचाने वाली दलीलें मध्यप्रदेश के एडवोकेट जनरल प्रशांत सिंह ने गुरुवार को जब मंत्री विजय शाह की एफआईआर उनके सामने रखी तो जस्टिस श्रीधरन ने कहा कि आपके कृत्य से नीयत का अंदाजा हो रहा है, इसलिए अब नए सिरे से एफआईआर दर्ज होगी। साथ ही इस केस की पूरी जांच भी हमारी निगरानी में होगी। दरअसल, हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार की तरफ से विजय शाह के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज की गई, मगर इसमें ये नहीं लिखा कि विजय शाह ने सार्वजनिक तौर पर कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर क्या कहा था? जो कहा था वो किन-किन धाराओं के तहत किस अपराध की कैटेगरी में आता है? पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 2.अब तक विजय शाह का इस्तीफा नहीं होने की वजह:आदिवासी वोटर, प्रेशर में एक्शन नहीं लेने की रणनीति या विधायकी छोड़ने का डर कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर विवादास्पद टिप्पणी करने वाले मंत्री विजय शाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है, लेकिन उन्होंने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया, जबकि शाह की इस हरकत का पूरे देश में विरोध हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती सहित बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता शाह के बयान की सार्वजनिक तौर पर आलोचना कर चुके हैं। शाह से इस्तीफा लेने के बजाय पार्टी डैमेज कंट्रोल में लगी है। अब सवाल यह है कि मामले के इतना तूल पकड़ने के बाद भी आखिर शाह से बीजेपी इस्तीफा क्यों नहीं ले पाई? पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें