बाघ और तेंदुए के साथ अब चीते भी करेंगे राज:दुर्गावती टाइगर रिजर्व में चीतों की बसाहट की तैयारी शुरू, 600 वर्ग KM में बनेगा नया घर

मध्यप्रदेश के सबसे बड़े वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व (नौरादेही) में चीतों की बसाहट की तैयारियां शुरू हो गई हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के DIG डॉ. वीबी माथुर और टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी की टीम ने 1 से 3 मई तक किए गए निरीक्षण में मुहली, सिंहपुर और झापन रेंज को चीतों के लिए उपयुक्त पाया है। अगले एक से डेढ़ साल में चीतों को यहां लाया जा सकता है। दुर्गावती टाइगर रिजर्व में वर्तमान में मांसाहारी जानवरों में टाइगर और तेंदुओं के साथ ही भेड़िया और सियार भी मौजूद हैं। ऐसे में यहां चीतों की बसाहट होगी तो यह देश का पहला ऐसा टाइगर रिजर्व होगा, जहां पर एक साथ टाइगर, तेंदुआ और चीता नजर आएंगे। यह प्रयोग भी साबित होगा कि यह तीनों जानवर एकसाथ एक जंगल में रह सकते हैं। इसके लिए 22 गांवों का विस्थापन, फेंसिंग और ग्रासलैंड मैनेजमेंट जैसी तैयारियां की जा रही हैं। चीता प्रोजेक्ट के अफसरों के निरीक्षण के बाद टाइगर रिजर्व में चीतों की बसाहट के लिए पत्राचार शुरू हो गया है। पहला पत्र जारी किया गया है, जिसमें टाइगर रिजर्व को जंगल में तैयारियां करने के निर्देश दिए गए हैं। चीतों के लिए इन रेंजों में हैं लंबे मैदान टाइगर रिजर्व की मुहली, सिंहपुर और झापन रेंज का क्षेत्रफल लगभग 600 वर्ग किलोमीटर है। यह पूरे टाइगर रिजर्व के 2339 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन रेंजों में विशाल मैदान हैं, जो चीतों को दौड़कर शिकार करने में सहायक होंगे। यह क्षेत्र चीतों के लिए सुरक्षित वातावरण प्रदान करता है। यहां पर्याप्त जल स्रोत हैं और शिकार के लिए चिंकारा, चीतल, सांभर जैसे शाकाहारी जानवर भी मौजूद हैं। टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने चीतों की बसाहट के लिए तैयारियां आरंभ कर दी हैं। प्राथमिकता के तौर पर जंगल में स्थित गांवों का विस्थापन किया जाएगा। साथ ही, मैदानी क्षेत्रों से खरपतवार हटाने का कार्य भी शुरू होगा। टाइगर रिजर्व के दमोह जिले में लगभग 25 किलोमीटर लंबी फेंसिंग की जाएगी। इससे वन्य जीवों और मानव बस्तियों के बीच संपर्क कम होगा, फसलों को नुकसान से बचाया जा सकेगा, और वन्य जीवों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। चीतों के भोजन के लिए लाए जाएंगे शाकाहारी जानवर टाइगर रिजर्व में चीतों की बसाहट के लिए विस्तृत तैयारियां की जा रही हैं। इन तैयारियों में चार प्रमुख कार्य शामिल हैं - विस्थापन, खरपतवार हटाना, फेंसिंग और जल स्रोतों का विकास। वर्तमान में टाइगर रिजर्व में जल संसाधनों की स्थिति अच्छी है। यहां दो बड़ी नदियां - ब्यारमा और बामनेर के साथ तीन बड़े तालाब मौजूद हैं। फिर भी एनटीसीए के निर्देश पर कुछ रेंजों में नए जल स्रोत विकसित किए जाएंगे। चीतों के भोजन की व्यवस्था के लिए एक विशेष योजना बनाई गई है। इसके तहत अन्य टाइगर रिजर्व से शाकाहारी जानवरों को यहां लाया जाएगा। यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि चीतों के आने पर उन्हें भोजन की कमी का सामना न करना पड़े। टाइगर रिजर्व की तीन रेंजों से 22 गांवों का विस्थापन अब तक 10 गांवों का विस्थापन हो चुका है। शेष गांवों के लिए प्रक्रिया जारी है। कुल मिलाकर 2500 से 3000 लोगों को विस्थापित किया जाएगा। चीता प्रोजेक्ट के कारण इस प्रक्रिया में तेजी लाई जा रही है। सभी गांव वालों ने विस्थापन के लिए सहमति दे दी है और बजट मिलते ही कार्य पूरा किया जाएगा। टाइगर रिजर्व में कमर्शियल वाहनों पर लगेगी रोक टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने वन्यजीवों की सुरक्षा को देखते हुए महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। रिजर्व के अंदर से गुजरने वाले तारादेही-महाराजपुर मार्ग पर कमर्शियल वाहनों के आवागमन पर रोक लगाई जाएगी। यह मार्ग लगभग 22 किलोमीटर लंबा है, जहां रोजाना भारी वाहनों का आवागमन होता है। वर्तमान में इस मार्ग पर भारी कमर्शियल वाहन, यात्री बसें और अन्य छोटे वाहन चलते हैं। तेज रफ्तार और अधिक संख्या में वाहनों के कारण वन्यजीवों को खतरा रहता है। कई बार दुर्घटनाओं में वन्यजीवों की मृत्यु भी हुई है। रहली और पाटन मार्ग पर भी यह प्रतिबंध लागू होगा। इन मार्गों पर केवल आपातकालीन वाहनों को अनुमति दी जाएगी। तीनों जानवरों के शिकार अलग, इसलिए रह सकते हैं एकसाथ वन्य जीव शास्त्रियों के अनुसार, चीता, तेंदुए और टाइगर के शिकार का तरीका और उनके टारगेट अलग-अलग होते हैं। अब रही इन तीनों जानवरों के आमने-सामने आने की बात तो चीता, हमेशा बाघ और तेंदुए से दूरी बनाए रखता है। यह ठीक उसी तरह से संभव है जिस तरह से बाघ के साथ तेंदुए भी सर्वाइव कर लेते हैं। आइए जानते हैं बाघ, तेंदुआ और चीता किसका शिकार करते हैं। चीतों के लिए कूनो से पहले नौरादेही को चुना गया था चीतों की बसाहट की पहल शुरू होने पर भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) देहरादून ने देश में चीतों की बसाहट के लिए सबसे पहले सागर के नौरादेही अभ्यारण्य को चिन्हित किया था। 15 साल पहले वर्ष 2010 में यहां सर्वे किया गया था, जिसमें नौरादेही की मुहली, सिंहपुर और झापन रेंज को चीता की बसाहट के लिए अनुकूल माना गया था। परिस्थितियों के अनुरूप सबसे पहले चीतों की बसाहट कूनो में की गई थी। लेकिन अब फिर नौरादेही अभ्यारण्य के टाइगर रिजर्व बनने के बाद यहां चीतों की बसाहट करने की प्रक्रिया शुरू की गई है। वर्ष 2023 में बना था दुर्गावती टाइगर रिजर्व नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य को 20 सितंबर 2023 को टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया था। इसका नाम बदलकर वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिवर्ज कर दिया गया है। यह मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। जिसका क्षेत्रफल 2339 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। दरअसल, नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य की स्थापना वर्ष 1975 में हुई थी। तब इसका क्षेत्रफल 1197 वर्ग किमी था। लेकिन टाइगर रिजर्व का दर्जा मिलने के बाद इसका क्षेत्रफल बढ़कर 2339 वर्ग किमी हो गया। इसमें 1414 वर्ग किमी कोर एरिया और 925.12 वर्ग किमी बफर एरिया शामिल है।

बाघ और तेंदुए के साथ अब चीते भी करेंगे राज:दुर्गावती टाइगर रिजर्व में चीतों की बसाहट की तैयारी शुरू, 600 वर्ग KM में बनेगा नया घर
मध्यप्रदेश के सबसे बड़े वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व (नौरादेही) में चीतों की बसाहट की तैयारियां शुरू हो गई हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के DIG डॉ. वीबी माथुर और टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी की टीम ने 1 से 3 मई तक किए गए निरीक्षण में मुहली, सिंहपुर और झापन रेंज को चीतों के लिए उपयुक्त पाया है। अगले एक से डेढ़ साल में चीतों को यहां लाया जा सकता है। दुर्गावती टाइगर रिजर्व में वर्तमान में मांसाहारी जानवरों में टाइगर और तेंदुओं के साथ ही भेड़िया और सियार भी मौजूद हैं। ऐसे में यहां चीतों की बसाहट होगी तो यह देश का पहला ऐसा टाइगर रिजर्व होगा, जहां पर एक साथ टाइगर, तेंदुआ और चीता नजर आएंगे। यह प्रयोग भी साबित होगा कि यह तीनों जानवर एकसाथ एक जंगल में रह सकते हैं। इसके लिए 22 गांवों का विस्थापन, फेंसिंग और ग्रासलैंड मैनेजमेंट जैसी तैयारियां की जा रही हैं। चीता प्रोजेक्ट के अफसरों के निरीक्षण के बाद टाइगर रिजर्व में चीतों की बसाहट के लिए पत्राचार शुरू हो गया है। पहला पत्र जारी किया गया है, जिसमें टाइगर रिजर्व को जंगल में तैयारियां करने के निर्देश दिए गए हैं। चीतों के लिए इन रेंजों में हैं लंबे मैदान टाइगर रिजर्व की मुहली, सिंहपुर और झापन रेंज का क्षेत्रफल लगभग 600 वर्ग किलोमीटर है। यह पूरे टाइगर रिजर्व के 2339 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन रेंजों में विशाल मैदान हैं, जो चीतों को दौड़कर शिकार करने में सहायक होंगे। यह क्षेत्र चीतों के लिए सुरक्षित वातावरण प्रदान करता है। यहां पर्याप्त जल स्रोत हैं और शिकार के लिए चिंकारा, चीतल, सांभर जैसे शाकाहारी जानवर भी मौजूद हैं। टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने चीतों की बसाहट के लिए तैयारियां आरंभ कर दी हैं। प्राथमिकता के तौर पर जंगल में स्थित गांवों का विस्थापन किया जाएगा। साथ ही, मैदानी क्षेत्रों से खरपतवार हटाने का कार्य भी शुरू होगा। टाइगर रिजर्व के दमोह जिले में लगभग 25 किलोमीटर लंबी फेंसिंग की जाएगी। इससे वन्य जीवों और मानव बस्तियों के बीच संपर्क कम होगा, फसलों को नुकसान से बचाया जा सकेगा, और वन्य जीवों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। चीतों के भोजन के लिए लाए जाएंगे शाकाहारी जानवर टाइगर रिजर्व में चीतों की बसाहट के लिए विस्तृत तैयारियां की जा रही हैं। इन तैयारियों में चार प्रमुख कार्य शामिल हैं - विस्थापन, खरपतवार हटाना, फेंसिंग और जल स्रोतों का विकास। वर्तमान में टाइगर रिजर्व में जल संसाधनों की स्थिति अच्छी है। यहां दो बड़ी नदियां - ब्यारमा और बामनेर के साथ तीन बड़े तालाब मौजूद हैं। फिर भी एनटीसीए के निर्देश पर कुछ रेंजों में नए जल स्रोत विकसित किए जाएंगे। चीतों के भोजन की व्यवस्था के लिए एक विशेष योजना बनाई गई है। इसके तहत अन्य टाइगर रिजर्व से शाकाहारी जानवरों को यहां लाया जाएगा। यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि चीतों के आने पर उन्हें भोजन की कमी का सामना न करना पड़े। टाइगर रिजर्व की तीन रेंजों से 22 गांवों का विस्थापन अब तक 10 गांवों का विस्थापन हो चुका है। शेष गांवों के लिए प्रक्रिया जारी है। कुल मिलाकर 2500 से 3000 लोगों को विस्थापित किया जाएगा। चीता प्रोजेक्ट के कारण इस प्रक्रिया में तेजी लाई जा रही है। सभी गांव वालों ने विस्थापन के लिए सहमति दे दी है और बजट मिलते ही कार्य पूरा किया जाएगा। टाइगर रिजर्व में कमर्शियल वाहनों पर लगेगी रोक टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने वन्यजीवों की सुरक्षा को देखते हुए महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। रिजर्व के अंदर से गुजरने वाले तारादेही-महाराजपुर मार्ग पर कमर्शियल वाहनों के आवागमन पर रोक लगाई जाएगी। यह मार्ग लगभग 22 किलोमीटर लंबा है, जहां रोजाना भारी वाहनों का आवागमन होता है। वर्तमान में इस मार्ग पर भारी कमर्शियल वाहन, यात्री बसें और अन्य छोटे वाहन चलते हैं। तेज रफ्तार और अधिक संख्या में वाहनों के कारण वन्यजीवों को खतरा रहता है। कई बार दुर्घटनाओं में वन्यजीवों की मृत्यु भी हुई है। रहली और पाटन मार्ग पर भी यह प्रतिबंध लागू होगा। इन मार्गों पर केवल आपातकालीन वाहनों को अनुमति दी जाएगी। तीनों जानवरों के शिकार अलग, इसलिए रह सकते हैं एकसाथ वन्य जीव शास्त्रियों के अनुसार, चीता, तेंदुए और टाइगर के शिकार का तरीका और उनके टारगेट अलग-अलग होते हैं। अब रही इन तीनों जानवरों के आमने-सामने आने की बात तो चीता, हमेशा बाघ और तेंदुए से दूरी बनाए रखता है। यह ठीक उसी तरह से संभव है जिस तरह से बाघ के साथ तेंदुए भी सर्वाइव कर लेते हैं। आइए जानते हैं बाघ, तेंदुआ और चीता किसका शिकार करते हैं। चीतों के लिए कूनो से पहले नौरादेही को चुना गया था चीतों की बसाहट की पहल शुरू होने पर भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) देहरादून ने देश में चीतों की बसाहट के लिए सबसे पहले सागर के नौरादेही अभ्यारण्य को चिन्हित किया था। 15 साल पहले वर्ष 2010 में यहां सर्वे किया गया था, जिसमें नौरादेही की मुहली, सिंहपुर और झापन रेंज को चीता की बसाहट के लिए अनुकूल माना गया था। परिस्थितियों के अनुरूप सबसे पहले चीतों की बसाहट कूनो में की गई थी। लेकिन अब फिर नौरादेही अभ्यारण्य के टाइगर रिजर्व बनने के बाद यहां चीतों की बसाहट करने की प्रक्रिया शुरू की गई है। वर्ष 2023 में बना था दुर्गावती टाइगर रिजर्व नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य को 20 सितंबर 2023 को टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया था। इसका नाम बदलकर वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिवर्ज कर दिया गया है। यह मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। जिसका क्षेत्रफल 2339 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। दरअसल, नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य की स्थापना वर्ष 1975 में हुई थी। तब इसका क्षेत्रफल 1197 वर्ग किमी था। लेकिन टाइगर रिजर्व का दर्जा मिलने के बाद इसका क्षेत्रफल बढ़कर 2339 वर्ग किमी हो गया। इसमें 1414 वर्ग किमी कोर एरिया और 925.12 वर्ग किमी बफर एरिया शामिल है।