MP में दबंगों ने दलित-आदिवासियों से ठेके पर ली सरपंची:सरपंचों ने कबूला- आधे-आधे में समझौता हुआ, 15 हजार आते हैं तो 5 उनके 5 हमारे
छतरपुर में दलित और आदिवासी सरपंचों वाली कई ग्राम पंचायतें 50:50 फॉर्मूले पर ठेके पर चल रही हैं। ये बात खुद सरपंचों ने स्वीकारी है। उनका कहना है कि गांव के कुछ दबंग हमें काम नहीं करने देते इसलिए हमने पंचायत का काम दूसरों को दे दिया। कहीं दाऊजी के हाथ में पंचायत की कमान है तो कहीं मुनीमजी काम देखते हैं। छतरपुर में कुल 81 पंचायतें हैं, जिनमें से 60 एससी-एसटी और ओबीसी के लिए रिजर्व हैं। यहां की रिजर्व पंचायतों पर दबंगों के कब्जे की शिकायतों के बाद दैनिक भास्कर टीम ने छतरपुर जिले की पांच पंचायतों में पहुंचकर पड़ताल की। इस बारे में सरपंचों से बात की। कुछ सरपंचों से कैमरे पर खुलकर पंचायत के कामकाज के बंटवारे के बारे में बताया। वहीं कुछ सरपंचों का सच छिपे कैमरे में रिकॉर्ड हुई बातचीत में सामने आया। पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट.. 5 पंचायतें इस तरह चल रही ठेका सिस्टम से... 1.ग्राम पंचायत - खड़गांय दलित सरपंच ने कहा- हम काम नहीं करा पा रहे थे, मंदिर में हुआ 50-50% का समझौता इस पंचायत के सरपंच धनीराम अहिरवार हैं। सरपंच ने कहा, ग्राम पंचायत दूसरे तो चला ही रहे हैं। हर पंचायत समझौते पर ही चल रही है। समझौता तो करना ही पड़ता है। मैं अपनी पंचायत की बात बता रहा हूं। हम और हमारे गांव के ही जग्गा दाऊ हैं। रामबाबू शर्मा जी। ये गांव का काम देखते हैं, मैं जनपद का काम संभालता हूं। आराम से हमारी पार्टनरशिप है। हमने पूछा-समझौता कैसे हुआ? बोले- समझौता ऐसे हुआ कि हमने पहले सरपंच बनने के बाद अकेले काम करने की कोशिश की। लोगों ने शिकायत की। परेशान किया। हम काम नहीं करा पा रहे थे। परेशान होने के बाद हमने रामबाबू शर्मा से बात की कि आप हमारे साथ पंचायत चलाइए, गांव में काम कराइए। हमने काल भैरव मंदिर में गांव के कुछ लोगों को और रामबाबू शर्मा (जग्गा दाऊ) को बुलाया। फिर हमने उनके साथ सरपंची को लेकर समझौता किया था। दरअसल, सरपंच बनने के बाद मैं सामुदायिक भवन का निर्माण करा रहा था। गांव के कुछ लोग दबाव बना रहे थे कि भवन का निर्माण बाउंड्री के अंदर करो। कुछ लोग कह रहे थे बाहर करो। कुछ लोग ऊपर शिकायत करने के लिए तैयार थे कि ये बाउंड्री के अंदर क्यों बना दिया। मेरे ऊपर कई तरह के ऐसे दबाव आए। जनता परेशान कर रही है। इसलिए मैंने जग्गा दाऊ से कहा कि आप हमारे साथ रहिए। मैं गांव दारी का काम नहीं झेल पाऊंगा, आप झेल लेंगे। आप गांव के प्रतिष्ठित आदमी हो, आपका सम्मान है। एक बार कुछ कह देंगे तो वही होगा। उन्होंने मेरा सहयोग किया। सरपंच का चुनाव जीतने में भी मेरी मदद की थी। बस ऐसे दोनों की साझेदारी हो गई। उन्होंने मेरे चुनाव में आने वाला खर्च 2 लाख रुपए भी मुझे दे दिए हैं। इसके बाद से काम में कोई परेशानी नहीं आई। हमने पूछा- कौन हैं जग्गा दाऊ? बोले- पंचायत चुनाव के 6 महीने पहले से अपना माहौल बनाने में लग गए थे, लेकिन आखिरी में एससी सीट आ गई तो मैं चुनावी मैदान में कूद गया। हालांकि फिर उन्होंने मेरा सपोर्ट किया। समझौते के वक्त उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले उन्होंने अपना माहौल बनाने में 6 लाख रुपए खर्च कर दिए थे। मैंने उन्हें बताया कि मैंने 2 लाख रुपए खर्च किए हैं। दोनों के मिलाकर कुल खर्च 8 लाख रुपए हुए। 50-50% समझौते के बाद ये तय हुआ कि ये अमाउंट भी 50-50 कर लेते हैं। दोनों के हिस्से में 4-4 लाख रुपए का खर्च आया। मेरे हिस्से में आए 4 लाख में से 2 लाख वो पहले ही खर्च कर चुके थे। बाकी 2 लाख रुपए उन्होंने मुझे दिए। अब दोनों 50-50 में पंचायत चला रहे हैं। गांव के सभी काम वो ही कराते हैं, मैं जनपद के काम देखता हूं। सरपंच ने आगे कहा कि छतरपुर जनपद पंचायत में 81 पंचायतें हैं। इनमें से 10-11 एससी पंचायतें हैं। इनमें से ऐसी कोई पंचायत नहीं है, जिसमें कोई भी सरपंच अपने मन से काम करा पा रहा हो। उनमें सामान्य वर्ग के लोगों का ही दबदबा है। सरपंचों को उनके साथ मिलकर नंबर 2 का काम करना पड़ता है। ऐसा नहीं करेगा तो काम का 10 से 15% जनपद में ही कमीशन देना पड़ता है। ऐसे में वो क्या ही कर पाएगा। जैसे देरी पंचायत में एससी सरपंच है, वहां भी ऐसा ही चल रहा है। सुकमा पंचायत में पटेल लोगों ने एससी का अविश्वास ही करा दिया, वो कोर्ट के चक्कर में फंसा हुआ है। इकारा में पुरुषोत्तम सरपंच परेशान हैं। जो सामान्य वर्ग के लोग पहले 3-4 बार सरपंच रहे उन्होंने सामुदायिक भवन से लेकर हर चीज पर कब्जा कर रखा है वो इसलिए परेशान हैं। 2. ग्राम पंचायत -थरा आदिवासी सरपंच बोले - मुनीम जी ही चलाते पंचायत, 15 आते हैं तो 2-4 हजार देते हैं थरा गांव पहुंचने पर जिससे भी पूछा कि सरपंच का घर कहां है? यहां का सरपंच कौन है? सभी ने मुनीम (मुनीम शर्मा) का नाम और पता बताया। हमने बताया कि सरपंच तो आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है और जो चुनाव जीते उनका नाम और घर का पता बताइए। इसके बाद एक व्यक्ति ने असली सरपंच के घर का पता बताया। सरपंच रामभरोसी कोंदवार अपने छोटे से मकान के बाहर ही बैठे हुए थे। पंचायत कौन चला रहा है? ये सवाल पूछा तो रामभरोसी ने कहा- आप मेरे साथ मुनीम के घर पर ही चलो, वहीं बात कर लेते हैं। इसके बाद हमने उसे वहीं रोक कर बात की। सरपंच बेटे से बात करता देख उनकी मां शीला बाई वहां पहुंच गई। शीला ने कहा मैं बताऊंगी तभी आपको समझ आएगा। मेरे पति गांव की थोड़ी-बहुत राजनीति करते थे। जैसे ही आदिवासी सीट आई तो उनकी चुनाव लड़ने की इच्छा थी, लेकिन वो 60 साल के हो चुके थे, इसलिए चुनाव नहीं लड़ सकते थे। हमारा बेटा बाहर काम करने गया था। पति ने बेटे को गांव बुलाया और फॉर्म डलवाया। इसके बाद हम चुनाव जीत गए तो मुनीम महाराज बोले कि चुनाव हमारे कारण जीते हो। अब 15 हजार रुपए आएगा तो 5 सरकार में ऊपर जाएगा। 5 तुम्हें मिलेगा, 5 हम रखेंगे। सरपंची के काम की हमें और हमारे बेटे को कोई जानकारी नहीं है। जैसे ही सरकार से काम आते हैं मुनीम ही लोगों को ढूंढते हैं, वही ठेका देते हैं। हमें तो पता ही नहीं कैसे क्या काम हो रहा है। हमारा गुजारा तो खेती से चल रह
छतरपुर में दलित और आदिवासी सरपंचों वाली कई ग्राम पंचायतें 50:50 फॉर्मूले पर ठेके पर चल रही हैं। ये बात खुद सरपंचों ने स्वीकारी है। उनका कहना है कि गांव के कुछ दबंग हमें काम नहीं करने देते इसलिए हमने पंचायत का काम दूसरों को दे दिया। कहीं दाऊजी के हाथ में पंचायत की कमान है तो कहीं मुनीमजी काम देखते हैं। छतरपुर में कुल 81 पंचायतें हैं, जिनमें से 60 एससी-एसटी और ओबीसी के लिए रिजर्व हैं। यहां की रिजर्व पंचायतों पर दबंगों के कब्जे की शिकायतों के बाद दैनिक भास्कर टीम ने छतरपुर जिले की पांच पंचायतों में पहुंचकर पड़ताल की। इस बारे में सरपंचों से बात की। कुछ सरपंचों से कैमरे पर खुलकर पंचायत के कामकाज के बंटवारे के बारे में बताया। वहीं कुछ सरपंचों का सच छिपे कैमरे में रिकॉर्ड हुई बातचीत में सामने आया। पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट.. 5 पंचायतें इस तरह चल रही ठेका सिस्टम से... 1.ग्राम पंचायत - खड़गांय दलित सरपंच ने कहा- हम काम नहीं करा पा रहे थे, मंदिर में हुआ 50-50% का समझौता इस पंचायत के सरपंच धनीराम अहिरवार हैं। सरपंच ने कहा, ग्राम पंचायत दूसरे तो चला ही रहे हैं। हर पंचायत समझौते पर ही चल रही है। समझौता तो करना ही पड़ता है। मैं अपनी पंचायत की बात बता रहा हूं। हम और हमारे गांव के ही जग्गा दाऊ हैं। रामबाबू शर्मा जी। ये गांव का काम देखते हैं, मैं जनपद का काम संभालता हूं। आराम से हमारी पार्टनरशिप है। हमने पूछा-समझौता कैसे हुआ? बोले- समझौता ऐसे हुआ कि हमने पहले सरपंच बनने के बाद अकेले काम करने की कोशिश की। लोगों ने शिकायत की। परेशान किया। हम काम नहीं करा पा रहे थे। परेशान होने के बाद हमने रामबाबू शर्मा से बात की कि आप हमारे साथ पंचायत चलाइए, गांव में काम कराइए। हमने काल भैरव मंदिर में गांव के कुछ लोगों को और रामबाबू शर्मा (जग्गा दाऊ) को बुलाया। फिर हमने उनके साथ सरपंची को लेकर समझौता किया था। दरअसल, सरपंच बनने के बाद मैं सामुदायिक भवन का निर्माण करा रहा था। गांव के कुछ लोग दबाव बना रहे थे कि भवन का निर्माण बाउंड्री के अंदर करो। कुछ लोग कह रहे थे बाहर करो। कुछ लोग ऊपर शिकायत करने के लिए तैयार थे कि ये बाउंड्री के अंदर क्यों बना दिया। मेरे ऊपर कई तरह के ऐसे दबाव आए। जनता परेशान कर रही है। इसलिए मैंने जग्गा दाऊ से कहा कि आप हमारे साथ रहिए। मैं गांव दारी का काम नहीं झेल पाऊंगा, आप झेल लेंगे। आप गांव के प्रतिष्ठित आदमी हो, आपका सम्मान है। एक बार कुछ कह देंगे तो वही होगा। उन्होंने मेरा सहयोग किया। सरपंच का चुनाव जीतने में भी मेरी मदद की थी। बस ऐसे दोनों की साझेदारी हो गई। उन्होंने मेरे चुनाव में आने वाला खर्च 2 लाख रुपए भी मुझे दे दिए हैं। इसके बाद से काम में कोई परेशानी नहीं आई। हमने पूछा- कौन हैं जग्गा दाऊ? बोले- पंचायत चुनाव के 6 महीने पहले से अपना माहौल बनाने में लग गए थे, लेकिन आखिरी में एससी सीट आ गई तो मैं चुनावी मैदान में कूद गया। हालांकि फिर उन्होंने मेरा सपोर्ट किया। समझौते के वक्त उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले उन्होंने अपना माहौल बनाने में 6 लाख रुपए खर्च कर दिए थे। मैंने उन्हें बताया कि मैंने 2 लाख रुपए खर्च किए हैं। दोनों के मिलाकर कुल खर्च 8 लाख रुपए हुए। 50-50% समझौते के बाद ये तय हुआ कि ये अमाउंट भी 50-50 कर लेते हैं। दोनों के हिस्से में 4-4 लाख रुपए का खर्च आया। मेरे हिस्से में आए 4 लाख में से 2 लाख वो पहले ही खर्च कर चुके थे। बाकी 2 लाख रुपए उन्होंने मुझे दिए। अब दोनों 50-50 में पंचायत चला रहे हैं। गांव के सभी काम वो ही कराते हैं, मैं जनपद के काम देखता हूं। सरपंच ने आगे कहा कि छतरपुर जनपद पंचायत में 81 पंचायतें हैं। इनमें से 10-11 एससी पंचायतें हैं। इनमें से ऐसी कोई पंचायत नहीं है, जिसमें कोई भी सरपंच अपने मन से काम करा पा रहा हो। उनमें सामान्य वर्ग के लोगों का ही दबदबा है। सरपंचों को उनके साथ मिलकर नंबर 2 का काम करना पड़ता है। ऐसा नहीं करेगा तो काम का 10 से 15% जनपद में ही कमीशन देना पड़ता है। ऐसे में वो क्या ही कर पाएगा। जैसे देरी पंचायत में एससी सरपंच है, वहां भी ऐसा ही चल रहा है। सुकमा पंचायत में पटेल लोगों ने एससी का अविश्वास ही करा दिया, वो कोर्ट के चक्कर में फंसा हुआ है। इकारा में पुरुषोत्तम सरपंच परेशान हैं। जो सामान्य वर्ग के लोग पहले 3-4 बार सरपंच रहे उन्होंने सामुदायिक भवन से लेकर हर चीज पर कब्जा कर रखा है वो इसलिए परेशान हैं। 2. ग्राम पंचायत -थरा आदिवासी सरपंच बोले - मुनीम जी ही चलाते पंचायत, 15 आते हैं तो 2-4 हजार देते हैं थरा गांव पहुंचने पर जिससे भी पूछा कि सरपंच का घर कहां है? यहां का सरपंच कौन है? सभी ने मुनीम (मुनीम शर्मा) का नाम और पता बताया। हमने बताया कि सरपंच तो आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है और जो चुनाव जीते उनका नाम और घर का पता बताइए। इसके बाद एक व्यक्ति ने असली सरपंच के घर का पता बताया। सरपंच रामभरोसी कोंदवार अपने छोटे से मकान के बाहर ही बैठे हुए थे। पंचायत कौन चला रहा है? ये सवाल पूछा तो रामभरोसी ने कहा- आप मेरे साथ मुनीम के घर पर ही चलो, वहीं बात कर लेते हैं। इसके बाद हमने उसे वहीं रोक कर बात की। सरपंच बेटे से बात करता देख उनकी मां शीला बाई वहां पहुंच गई। शीला ने कहा मैं बताऊंगी तभी आपको समझ आएगा। मेरे पति गांव की थोड़ी-बहुत राजनीति करते थे। जैसे ही आदिवासी सीट आई तो उनकी चुनाव लड़ने की इच्छा थी, लेकिन वो 60 साल के हो चुके थे, इसलिए चुनाव नहीं लड़ सकते थे। हमारा बेटा बाहर काम करने गया था। पति ने बेटे को गांव बुलाया और फॉर्म डलवाया। इसके बाद हम चुनाव जीत गए तो मुनीम महाराज बोले कि चुनाव हमारे कारण जीते हो। अब 15 हजार रुपए आएगा तो 5 सरकार में ऊपर जाएगा। 5 तुम्हें मिलेगा, 5 हम रखेंगे। सरपंची के काम की हमें और हमारे बेटे को कोई जानकारी नहीं है। जैसे ही सरकार से काम आते हैं मुनीम ही लोगों को ढूंढते हैं, वही ठेका देते हैं। हमें तो पता ही नहीं कैसे क्या काम हो रहा है। हमारा गुजारा तो खेती से चल रहा है। गांव के लोग हमारे पास काम के लिए आते ही नहीं। कोई गलती से कभी आ गया तो बेटा उन्हें मुनीम के पास भेज देता है। सरपंच रामभरोसी कोंदवार ने कहा - हमारे यहां 50-50 का मामला नहीं है। 15 हजार आता है तो कभी 5 तो कभी 2 हजार रुपए हमें दे देते हैं। यहां ठेके का मामला नहीं है, उन्होंने पंचायत पर कब्जा कर रखा है। वो बोलते हैं तुम्हें नॉलेज नहीं है, सरपंची हमें ही चलाने दो। रामभरोसी ने आगे कहा कि सभी काम और लिखा-पढ़ी वही करते हैं। मैं बस दस्तखत करता हूं। वो बोलते हैं चुनाव में हमने जीत दिलाई है, जबकि उन्होंने चुनाव में एक रुपए का खर्च नहीं किया है। हमने पूरे ढाई लाख रुपए खर्च किए थे। हमने 10% ब्याज पर पैसा उठाया है। 3 साल हो गए अभी तक नहीं चुका पाए हैं। बाकी सब बातें मेरी माता जी को मालूम है। उन्होंने खर्च किया है। मुझे तो बस चुनाव में खड़ा कराया गया था। मां शीला आगे बोली, हमारा मकान बनना था तब तक आदिवासी सीट आ गई। जो जुड़े पैसे रखे थे, वो भी खर्च हो गए। बाकी का खर्च कर्ज लेकर किया था। हम मुनीम से कहते हैं कि कुछ नहीं तो हमारा कर्ज ही चुका दो तो वो कहते हैं कि कैसा कर्जा? क्या तुमने गांव वालों को चुनाव में पैसे दिए थे जनता को। हम जानते हैं कि कितना खर्च हुआ है। ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले सिमरिया गांव की जशोदा बाई ने कहा- चुनाव तो कोई भी लड़ा हो हम तो मुनीमजी को जानते हैं। अब यहां रोड खराब है तो वही बनवाएंगे। 3. ग्राम पंचायत - अतनियां महिला सरपंच का बेटा बोला - पैसे वे लगाते हैं, बाकी जो बचत होती है उसका आधा-आधा करते हैं अतनियां गांव में माना बाई सरपंच हैं। सरपंच प्रतिनिधि खेमचंद्र कोंदवार हैं, लेकिन सरपंची मैयादीन यादव चला रहे हैं। गांव पहुंचने पर परचून की दुकान पर बैठे कुछ लोगों ने कहा, हमारे यहां की सरपंची तो ठेके पर चल रही है। माना बाई तो नाम की सरपंच है। सरपंची यादव जी चला रहे हैं। इसके बाद हम सरपंच के घर पहुंचे। माना बाई से बात की तो उन्होंने कहा, मेरे पति ही काम देखते हैं। मुझे ज्यादा कुछ पता नहीं है। इसके बाद हमने सरपंच पति खेमचंद्र कोंदवार से बात की। खेमचंद्र कोंदवार ने कहा - पंचायत में सड़क, नाली का काम कराया तो लोगों ने उनमें तोड़फोड़ कर उसकी फोटो लेकर न्यूज पेपर में छपवा दी। मैं काम ही नहीं करा पा रहा था। इसके अलावा हमारे पास कामों में शुरुआती तौर पर लगाने के लिए पैसा नहीं है। पंचायतों में पैसे बाद में आते हैं, शुरुआत में खुद लगाने पड़ते हैं। खेमचंद्र ने स्वीकारा कि मैयादीन यादव से ग्राम पंचायत चलाने को लेकर हमारी बातचीत हुई। वे कहते हैं- बात ये हुई थी कि जिस काम में जितने पैसे लगेंगे, वही लगाएंगे। बाकी जो बचत होगी उन रुपयों को आधा-आधा कर लिया जाएगा। स्टाम्प पर नहीं, लेकिन सामान्य कागज पर इसको लेकर लिखा-पढ़ी भी हुई थी। ये कागज यादव के ही पास है। हालांकि अभी वह बीमार चल रहा है। इलाज में 6-7 लाख रुपए लग गया है। पंचायत में एक साल से कोई काम नहीं हो रहे हैं। मैयादीन के भी 5-6 लाख फंसे हुए हैं। एक नाली बनवाई थी, कुछ गांव वालों ने तोड़ दी। इंजीनियर ने उसे पास ही नहीं किया। उसमें 2 लाख रुपए बचने थे, वो भी नहीं मिले। कर्जा लेकर खा रहा हूं। स्थिति ये है कमरों में पानी भरा है। 4.ग्राम पंचायत -चौका सरपंच राजस्थान में लैब चला रहे है, छोटा भाई पंचायत चला रहा चौका ग्राम पंचायत के सरपंच कृष्णगोपाल अहिरवार हैं। हम पंचायत में सरपंच के घर पहुंचे। घर से एक बुजुर्ग महिला बाहर आईं। ये सरपंच की मां थीं। उन्होंने हमसे कहा सरपंच साहब नहीं हैं, वो स्कूल गए हैं। बच्चों को पढ़ाते हैं। हमने दोबारा पूछा सरपंच बच्चों को पढ़ा रहे हैं। फिर वो बोलीं नहीं वो सरपंच के छोटे भाई हैं। सरपंची के काम यहां वहीं देखते हैं। सरपंच तो राजस्थान में अपने एक और भाई के साथ हैं। वहां बिजनेस करते हैं। उनका वहां लैब है। पंचायत का पूरा काम छोटा भाई रामगोपाल अहिरवार देखता है। वो मामोन गांव में प्राथमिक शिक्षक है। कोविड में पिता की मौत के बाद उसे अनुकंपा नियुक्ति मिल गई थी। पंचायत में जब कोई बहुत जरूरी काम होता है तो कृष्ण गोपाल को आना पड़ता है। 5. ग्राम पंचायत -रमपुरा आधी पंचायत पप्पू दाऊ, और आधी सरपंच चला रहे, दोनों ने गांव बांट लिए हैं रमपुरा ग्राम पंचायत के सरपंच भुमानीदीन यादव ने कहा, हमने चुनाव में जो पैसा खर्च कर दिया वो भी नहीं निकल पा रहा है। मनरेगा का पैसा एक-एक साल नहीं आता। काम करने वालों को तो रोज पैसा चाहिए। पंचायत में तीन गांव हैं- रमपुरा, पिपोरा खुर्द, पिपोरा कला। पिपोरा खुर्द में पप्पू राजा दाऊ रहते हैं। मेरे और पप्पू दाऊ के बीच तालमेल बना हुआ है। दोनों मिलकर ही पंचायत चला रहे हैं। पिपोरा खुर्द गांव की आबादी के बराबर पिपोरा कला और रमपुरा की आबादी है। पिपोरा खुर्द का काम पप्पू दाऊ देख रहे हैं। बाकी दो गांव के काम मैं देख रहा हूं। यहां दबदबा जैसी कोई बात नहीं है। पिछली बार सामान्य सीट आई थी वो सरपंच बने थे तो मैं उनके साथ काम करता था। उन्होंने आगे कहा- इस बार पिछड़ा सीट आई है तौ मैं सरपंच बन गया और वो आधा काम देख रहे हैं। उस गांव में काम होता है तो वो कराते हैं। बाकी मैं कराता हूं। दो अन्य सरपंचों से हमारी बात हुई। हम उनका वीडियो रिकॉर्ड नहीं कर पाए। साथ ही उन्होंने नाम जाहिर न करने की बात कहते हुए बताया कि छतरपुर के एक दाऊ साहब हैं, उन्होंने छतरपुर जनपद पंचायत की 3 पंचायतों को 12 से 20 लाख रुपए तक के ठेके पर ले रखा है। सरपंचों को किस्त में पैसा दिया जा रहा है। कुछ सरपंचों को कार भी दी है, लेकिन उनके नाम पर नहीं कराई है। बाकी पंचायत पूरी तरह से वही चला रहे हैं। सरपंच सिर्फ दस्तखत करता है। जनपद पंचायत सीईओ ने कहा- 6 महीने पहले आया था दबंगई का मामला जनपद पंचायत छतरपुर के सीईओ अजय सिंह ने कहा, 6 महीने पहले अतनिया पंचायत से एक दबंगई का मामला सामने आया था। वहां माना बाई सरपंच हैं। इसके बाद हमने पूर्व सरपंच को बुलाकर समझाया था। थाने में भी आवेदन दिया था। अब पंचायत सुचारू रूप से संचालित हो रही है। पंचायत ठेके पर चल रही हैं, 50-50% के समझौते के साथ चल रही हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए सीईओ ने कहा, ऐसा कोई मामला अब तक सामने नहीं आया है। अगर ऐसा कोई मामला सामने आता है तो उस पर हम लोग सख्ती से काम करते हैं।