खजुराहो में बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री 7 दिसंबर से सात दिन के लिए अज्ञातवास पर चले गए हैं। इस दौरान वे कहां रहेंगे, ये जानकारी किसी को नहीं है। बताया गया है कि शनिवार को वे उत्तराखंड के ऋषिकेश गए थे, वहीं से एकांतवास पर चले गए। बागेश्वर धाम में उन्होंने बताया कि इस दौरान वे किताब लिखेंगे। टाइटल ‘मेरे संन्यासी बाबा’ होगा। यह किताब उन्हीं संन्यासी बाबा पर है, जिनका नाम वे अपने दरबार और प्रवचन के दौरान बार-बार लेते रहते हैं। उनकी समाधि भी बागेश्वर धाम में है। इससे पहले भी वे दो पुस्तकें 'सनातन धर्म क्या है' और ‘मल्टी-टैलेंटेड हनुमान’ लिख चुके हैं। ये दोनों किताबें भी उन्होंने एकांतवास के दौरान ही लिखी थीं। अज्ञातवास पर जाने से पहले पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने किताब में क्या हाेगा, इसके बारे में बताया। दैनिक भास्कर ने संन्यासी बाबा के बारे में भी जानकारी हासिल की। जैसे–जैसे आज्ञा मिलेगी, कलम चलती जाएगी
धीरेंद्र शास्त्री ने बताया कि उनके गुरुजी ने आज्ञा दी है, इसलिए संन्यासी बाबा पर किताब लिखने जा रहे हैं। 19 साल बाद संन्यासी बाबा ने मुझे उनके बारे में लिखने की प्रेरणा दी है। अभी तो मैं ये बताने की स्थिति में नहीं हूं कि पुस्तक में क्या होगा? जैसे-जैसे उनकी आज्ञा मिलती जाएगी, कलम चलती जाएगी। पुस्तक लिखने कहां जा रहा हूं, ये उस वक्त बताऊंगा, जब अगले साल पुस्तक का विमोचन समारोह होगा। धीरेंद्र शास्त्री के मुताबिक, पुस्तक में ये तो स्वाभाविक तौर पर होगा कि मैं जिन संन्यासी बाबा का बार-बार नाम लेता हूं, जो मेरे आराध्य हैं, आखिर वो कैसे थे। उनका जन्म कहां हुआ। वे किस दौर में धरती पर थे। उन्होंने जिंदा समाधि क्यों ली? पहली बार हमारे दादागुरु को उनके दर्शन कब हुए। वे किस राजा के यहां राजपुरोहित थे और आज भी मंदिर में क्यों आते हैं। एक पैर पर किए थे सवा करोड़ हनुमान चालीसा पाठ
शास्त्री के अनुसार, एकांतवास के दौरान हम अपने दादा के गुरु, पूज्य गुरु संन्यासी बाबा के जीवन परिचय, उनकी जीवन यात्रा के प्रारंभ से लेकर, जीवन यात्रा के मध्य घटित घटनाओं और उनके जीवन में हुए दिव्य चमत्कार, कृपा, उनकी साधना-तपस्या और कैसे एक पैर पर खड़े होकर उन्होंने सवा करोड़ हनुमान चालीसा पाठ किए, कैसे उन्हें हनुमान जी के दर्शन मिले। इन सभी बातों को पुस्तक में लिखेंगे। अब जानिए, कौन हैं संन्यासी बाबा?
बागेश्वर धाम आश्रम से जुड़े लोगों का कहना है कि संन्यासी बाबा अविवाहित थे। उन्होंने 300-350 साल पहले हनुमान जी की साधना की। एक बार में एक पैर पर खड़े होकर सवा करोड़ हनुमान चालीसा के पाठ किए। इस तपस्या के बाद बालाजी प्रकट हुए। इसके बाद संन्यासी बाबा ने बागेश्वर धाम बालाजी मंदिर की स्थापना की। वे धीरेंद्र शास्त्री के परदादा के चचेरे भाई थे। धीरेंद्र शास्त्री उस परिवार के पांचवीं पीढ़ी के सदस्य हैं। धीरेंद्र शास्त्री के दादाजी इसी मंदिर में पूजा-पाठ करते थे। वे धीरेंद्र शास्त्री की तरह दिव्य दरबार लगाते थे। कैसे बदली धीरेंद्र शास्त्री की किस्मत
धीरेंद्र शास्त्री अपने प्रवचनों और दरबार के दौरान इन्हीं संन्यासी बाबा को अपनी शक्ति का स्रोत बताते हैं। धीरेंद्र शास्त्री प्रवचन के दौरान कई बार कह चुके हैं कि वे बेहद गरीब परिवार से रहे हैं। आश्रम से जुड़े लोगों का कहना है कि जब परिवार चलाने का जिम्मा धीरेंद्र शास्त्री के जिम्मे आया तो वो खुद को असहाय महसूस करने लगे। एक बार जब हालत बहुत ही खराब हो गए तो वे अपने दादाजी भगवान दास गर्ग के पास बैठकर रोने लगे, तब वे उन्हें संन्यासी बाबा की समाधि पर ले गए। उन्होंने धीरेंद्र शास्त्री को समाधि के पास बैठाकर प्रार्थना की कि इसकी किस्मत बदल दो। कहा जाता है कि इसके बाद भी धीरेंद्र शास्त्री के जीवन की दिशा बदल गई। दादाजी भी मन की बात बताते थे
धीरेंद्र शास्त्री भगवान सत्यनारायण कथा के साथ रामकथा भी सुनाने लगे। गांव में हनुमानजी का मंदिर है। इसी बालाजी मंदिर में उनके दादाजी भगवानदास गर्ग की समाधि है। कहते हैं कि उनके दादाजी सिद्ध पुरुष थे। वे हर मंगलवार और शनिवार को मंदिर में दिव्य दरबार लगाते थे और लोगों की मन की बात जान लेते थे। उस समय भी लोग इसी तरह से अर्जी लगाते थे। खुद धीरेंद्र शास्त्री भी 9 वर्ष की उम्र में दादाजी के साथ इस मंदिर में जाया करते थे। उनसे ही रामकथा सीखी। वे अपने दादाजी को अपना गुरु मानते हैं। दावा करते हैं कि बालाजी ने उन्हें साक्षात दर्शन दिया है। दादाजी की तरह वे भी हर मंगलवार व शनिवार को दिव्य दरबार लगाने लगे। इस दिव्य दरबार में लोग अर्जी लगाने लगे। लोगों की मन की बात को 3 सवाल और उनका हल एक पन्ने पर लिखने लगे। उनके इस दिव्य दरबार का प्रसारण सोशल मीडिया के हर प्लेटफॉर्म पर होने लगा। इससे उनके दरबार में आने वालों की भीड़ कई गुना हो गई। गलती करने पर संन्यासी बाबा की फटकार
धीरेंद्र शास्त्री को नवरात्र की साधना के दौरान संन्यासी बाबा से डांट भी पड़ी थी। इस बात की जानकारी उन्होंने दिव्य दरबार दौरान दी थी। उन्होंने कहा था कि 'साधना के दौरान हमारे गुरु संन्यासी बाबा ने फटकार लगाते हुए कहा कि VIP और VVIP के कारण गरीब, असहाय और दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु परेशान हो रहे हैं। संभल जाओ।’ इसके बाद धीरेंद्र शास्त्री ने बागेश्वर धाम में ये व्यवस्था खत्म कर दी। क्या है पहली पुस्तक में
इस पुस्तक में सनातन धर्म जानी-अनजानी बातों को नए स्वरूप में लिखा है। यह किताब जून 2023 में उनके एकांतवास के दौरान करीब 72 घंटों में लिखी गई थी। इसका उद्देश्य 5वीं से 12वीं के छात्रों को सनातन धर्म के बारे में जागरूक करना है। इसका विमोचन दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में फरवरी 2024 में किया गया। समारोह में भाजपा के राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी, मनोज तिवारी, परमार्थ निकेतन से चिन्मयानंद सरस्वती मौजूद थे। अब दूसरी पुस्तक के बारे में
यह पुस्तक इन्विसिबल पब्लिशर्स की ओर से प्रकाशित की गई, जो हनुमान जी के बहु-आयामी गुणों, शक्ति, विनम्रता और बुद्धि को सरल भाषा में प्रस्तुत करती है। इसमें हनुमान जी को प्रथम विदेशी यात्री, समुद्र पार करने वाले और प्रतीकात्मक एंडोस्कोपी करने वाले के रूप में चित्रित किया गया है। पुस्तक में हनुमान जी की साधना विधि, शाबर मंत्र, पूजन तरीके, कलयुग में उनके दर्शन की कहानियां, सपनों में उपस्थिति और आठ मिष्टान्न भोजन शामिल हैं। किताब में 201 से 300 पेज हैं। पुस्तक उद्देश्य हनुमान जी की साधना से जोड़कर उनके चरित्र से प्रेरणा लेना और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना है।
