बड़वानी के केले की मांग इराक-ईरान तक:इंजीनियरिंग के बाद कर रहा आधुनिक खेती, सालाना कमाई 16 लाख रुपए
मध्यप्रदेश का बड़वानी आधुनिक खेती के लिए देश-विदेश में अलग पहचान बना रहा है। यहां के केलों मांग मिडिल ईस्ट के देशों तक है। 12 टन से अधिक केला ईरान और इराक भेजा गया है। दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में सेगांव के रहने वाले इंजीनियर लोकेश कुमावत से मिलवाते हैं। लोकेश 12 एकड़ में केले की G 9 (ग्रैंड नैने) प्रजाति की खेती कर रहे हैं। इस प्रजाति के केले की लंबाई 13 इंच तक होती है। इससे सालाना 16 लाख रुपए तक मुनाफा कमा रहे हैं। इंजीनियरिंग के बाद नौकरी नहीं, खेती को चुना लोकेश कुमावत ने बताया, ‘मैंने 2010 में बीई (बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग) की। इसके बाद नौकरी नहीं की। क्योंकि मुझे खेती करनी थी। परिवार में 30 एकड़ पुश्तैनी जमीन है। इसमें पहले पारंपरिक फसल गेहूं, चना और गन्ने लगाते थे, लेकिन में इन फसलों में लागत अधिक और मुनाफा कम होता था। कई बार तो घाटा भी हुआ है। इसके बाद बड़े किसानों से मिलकर सलाह ली। साल 2012 में केले की खेती शुरू की। पहले 1 से 2 एकड़ में फसल लगाई। इसके बाद धीरे-धीरे जगह बढ़ाई। वर्तमान में 12 एकड़ में जी 9 प्रजाति के केले की खेती कर रहा हूं, जिसमें करीब 20 हजार पौधे लगाए हैं। इसमें 14 लाख से अधिक खर्च आया है। एक एकड़ में करीब सवा लाख खर्च आया। इस साल अप्रैल तक 22 लाख का माल महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली समेत इराक-ईरान भेजा है। वर्तमान में 5 हजार पौधों में केला बचा है। इनसे 8 लाख का माल और बेचूंगा। यानी 30 लाख का माल बेचा। खर्च निकालकर 16 लाख रुपए का प्रॉफिट होता है। इस बार 51 टन केले का उत्पादन हुआ है। पिछले 13 साल के अनुभव पता चला कि फसल को किस खाद की कब, कैसी और कितनी जरूरत है? नतीजा, फसल बहुत अच्छी क्वालिटी की हुई। मेरे बाद गांव के कई किसानों ने केले की खेती शुरू कर दी। व्यापारियों की पसंद बना जी-9 केला केला व्यापारी विनोद गिरासे ने बताया कि बड़वानी के किले में मीठे होने और साइज 10 से 13 इंच तक होने की वजह से डिमांड में हैं। जिले में करीब 4 हजार हेक्टेयर जमीन में केला लगाया गया है। सभी किसान टपक सिंचाई विधि अपनाकर पर्याप्त पानी देते हैं। इससे जहां पानी की बचत होती हैं, वहीं पौधे को भी पर्याप्त मात्रा में पानी मिल रहा है। G 9 प्रजाति के केले की खासियत इसे ग्रैंड नैने के नाम से भी जाना जाता है। यह इजराइल से भारत लाया गया है। कैवेंडिश केले की एक किस्म है, जो अन्य किस्मों की तुलना में अधिक उपज देती है। इससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है। कम जगह में उगता है और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है। कैसे करें जी-9 केले की खेती केले के पेड़ में आमतौर पर जीवनकाल में सिर्फ एक बार फल आते हैं, फिर वह मर जाता है। केले की बोवनी फरवरी से मई के बीच की जाती है, जो कि गर्मी और बारिश के मौसम से पहले होती है। यह उष्णकटिबंधीय फसल है, इसलिए गर्म और नमी वाली जलवायु इसे पसंद आती है। केले की फसल 13-14 महीने में तैयार हो जाती है। केले की खेती के लिए सबसे पहले खेत को तैयार करना होगा। इसके बाद केले के पौधे लगाने के लिए गड्ढे खोदने होंगे। फिर पौधे लगाकर खाद और पानी देना होगा। अंत में समय-समय पर सिंचाई, निराई-गुड़ाई और कीट नियंत्रण करना होगा।
मध्यप्रदेश का बड़वानी आधुनिक खेती के लिए देश-विदेश में अलग पहचान बना रहा है। यहां के केलों मांग मिडिल ईस्ट के देशों तक है। 12 टन से अधिक केला ईरान और इराक भेजा गया है। दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में सेगांव के रहने वाले इंजीनियर लोकेश कुमावत से मिलवाते हैं। लोकेश 12 एकड़ में केले की G 9 (ग्रैंड नैने) प्रजाति की खेती कर रहे हैं। इस प्रजाति के केले की लंबाई 13 इंच तक होती है। इससे सालाना 16 लाख रुपए तक मुनाफा कमा रहे हैं। इंजीनियरिंग के बाद नौकरी नहीं, खेती को चुना लोकेश कुमावत ने बताया, ‘मैंने 2010 में बीई (बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग) की। इसके बाद नौकरी नहीं की। क्योंकि मुझे खेती करनी थी। परिवार में 30 एकड़ पुश्तैनी जमीन है। इसमें पहले पारंपरिक फसल गेहूं, चना और गन्ने लगाते थे, लेकिन में इन फसलों में लागत अधिक और मुनाफा कम होता था। कई बार तो घाटा भी हुआ है। इसके बाद बड़े किसानों से मिलकर सलाह ली। साल 2012 में केले की खेती शुरू की। पहले 1 से 2 एकड़ में फसल लगाई। इसके बाद धीरे-धीरे जगह बढ़ाई। वर्तमान में 12 एकड़ में जी 9 प्रजाति के केले की खेती कर रहा हूं, जिसमें करीब 20 हजार पौधे लगाए हैं। इसमें 14 लाख से अधिक खर्च आया है। एक एकड़ में करीब सवा लाख खर्च आया। इस साल अप्रैल तक 22 लाख का माल महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली समेत इराक-ईरान भेजा है। वर्तमान में 5 हजार पौधों में केला बचा है। इनसे 8 लाख का माल और बेचूंगा। यानी 30 लाख का माल बेचा। खर्च निकालकर 16 लाख रुपए का प्रॉफिट होता है। इस बार 51 टन केले का उत्पादन हुआ है। पिछले 13 साल के अनुभव पता चला कि फसल को किस खाद की कब, कैसी और कितनी जरूरत है? नतीजा, फसल बहुत अच्छी क्वालिटी की हुई। मेरे बाद गांव के कई किसानों ने केले की खेती शुरू कर दी। व्यापारियों की पसंद बना जी-9 केला केला व्यापारी विनोद गिरासे ने बताया कि बड़वानी के किले में मीठे होने और साइज 10 से 13 इंच तक होने की वजह से डिमांड में हैं। जिले में करीब 4 हजार हेक्टेयर जमीन में केला लगाया गया है। सभी किसान टपक सिंचाई विधि अपनाकर पर्याप्त पानी देते हैं। इससे जहां पानी की बचत होती हैं, वहीं पौधे को भी पर्याप्त मात्रा में पानी मिल रहा है। G 9 प्रजाति के केले की खासियत इसे ग्रैंड नैने के नाम से भी जाना जाता है। यह इजराइल से भारत लाया गया है। कैवेंडिश केले की एक किस्म है, जो अन्य किस्मों की तुलना में अधिक उपज देती है। इससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है। कम जगह में उगता है और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है। कैसे करें जी-9 केले की खेती केले के पेड़ में आमतौर पर जीवनकाल में सिर्फ एक बार फल आते हैं, फिर वह मर जाता है। केले की बोवनी फरवरी से मई के बीच की जाती है, जो कि गर्मी और बारिश के मौसम से पहले होती है। यह उष्णकटिबंधीय फसल है, इसलिए गर्म और नमी वाली जलवायु इसे पसंद आती है। केले की फसल 13-14 महीने में तैयार हो जाती है। केले की खेती के लिए सबसे पहले खेत को तैयार करना होगा। इसके बाद केले के पौधे लगाने के लिए गड्ढे खोदने होंगे। फिर पौधे लगाकर खाद और पानी देना होगा। अंत में समय-समय पर सिंचाई, निराई-गुड़ाई और कीट नियंत्रण करना होगा।