आतंकियों का खात्मा कर शहीद हुए थे इंदौर के गौतम:माता-पिता ने बताई लाड़ले की कहानी; कहा- युवा फालतू शौक छोड़ राष्ट्रप्रेम का जज्बा दिखाएं
आतंकियों का खात्मा कर शहीद हुए थे इंदौर के गौतम:माता-पिता ने बताई लाड़ले की कहानी; कहा- युवा फालतू शौक छोड़ राष्ट्रप्रेम का जज्बा दिखाएं
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा दिया गया मुंहतोड़ जवाब न सिर्फ सैन्य ताकत का प्रतीक रहा, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत अब चुप बैठने वाला नहीं है। इस पूरे घटनाक्रम पर दैनिक भास्कर को प्रतिक्रिया देते हुए इंदौर निवासी शहीद लेफ्टिनेंट गौतम जैन के माता-पिता एसपी जैन और सुधा जैन ने कहा कि इस बार पूरा देश एक स्वर में आतंकवाद के खिलाफ खड़ा हुआ। चाहे वह किसी भी धर्म या राजनीतिक विचारधारा से क्यों न हो। उन्होंने बताया कि उनके बेटे गौतम जैन 2001 में देश के लिए शहीद हुए थे और तब से लेकर आज तक हर ऐसे क्षण में उनका गर्व और भी प्रबल होता है। देश के लिए शहादत सबसे बड़ा बलिदान है और हमें गर्व है कि हमारा बेटा 21 साल की उम्र में यह सौभाग्य लेकर गया। उन्होंने कहा कि हमारी युवाओं से अपील है कि वे फालतू शौक छोड़ देशभक्ति का जज्बा दिखाएं। देश के लिए अपना जीवन दें। उन्होंने सिविल डिफेंस पर जोर देते हुए कहा कि मॉकड्रिल में तो सभी को पहले से पता रहता है कब ब्लैकआउट करना है, लेकिन वास्तव में इमरजेंसी जैसी स्थिति के लिए सिविल डिफेंस का जज्बा जरूरी है। उन्होंने पहलगाम में हुई घटना और भारत द्वारा दिए गए मुंहतोड़ जवाब को लेकर कहा, राजनेता हमें आपस में दूर करते हैं लेकिन आतंकी ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर हमें जोड़ते हैं। जैसे पहलगाम की घटना में हर शख्स भारत के साथ है। यहां तक कि हर मुस्लिम और विपक्ष भी साथ है, यह बड़ी बात है। हमने 1965 में देखा था कि स्व. लालबहादुर शास्त्री की अगुआई में भारत ने पाकिस्तान से लड़ाई की। 1971 में इंदिरा गांधी के समय हुई थी। तब भी पूरा देश एकजुट हो गया था, नहीं तो सभी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में लगे रहते हैं। सिविल डिफेंस जरूरी
उन्होंने कहा कि अभी देश में भले ही इमरजेंसी घोषित नहीं हुई हो लेकिन बुधवार को जो मॉकड्रिल हुई इसे लेकर सिविल डिफेंस पर जोर देना होगा। जैसे योग दिवस पर कोई न कोई एक लीडर होता है, जो नेतृत्व करता है। इसी तरह सिविल डिफेंस में यह होना चाहिए कि किसी भी प्रकार की इमरजेंसी घोषित हुई तो संभालने के लिए हर शख्स अपने घर में सेफ्टी करेगा, लेकिन जहां 150-200 मकान हैं वहां एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो सिविल डिफेंस के बारे में जानता हो। उसमें इतना माद्दा होना चाहिए कि तब क्या करना चाहिए। भले ही वह आर्मी में नहीं हो लेकिन उस दौरान अगर हालात विपरीत बनते हैं तो उसे ब्लैकआउट का पालन कराने, घायलों को इलाज के लिए भेजने, पुलिस, एम्बुलेंस आदि को तुरंत कैसे कॉल कर मैनेज करना है, आदि का नेतृत्व करना आना चाहिए। हमें गर्व है हमारे बेटे पर जो देश के लिए शहीद हुआ
जैन के परिवार में दो बेटे और एक बेटी है। 1 नवंबर 2001 में शहीद हुए उनके छोटे बेटे गौतम जैन को 24 साल हो गए हैं। दंपती ने कहा कि देश के प्रति युवाओं का जज्बा होना बहुत जरूरी है। हमें गर्व है कि हमारे बेटे ने 21 साल की उम्र में देश के लिए बलिदान दिया। उन्होंने बताया कि गौतम भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट की 173 फील्ड रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट थे। उन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध में भाग लिया था। उनकी शहादत के लिए उन्हें सेना पदक से सम्मानित किया गया था। एयरफोर्स में नहीं हुआ सिलेक्शन तो आर्मी का रुख
उन्होंने बताया कि गौतम का शुरू से ही देशभक्ति के प्रति जज्बा था। उसका तब पीएमटी में भी सिलेक्शन हो गया था लेकिन इच्छा एयरफोर्स में जाने की थी। वहां उसका सिलेक्शन नहीं हो पाया। फिर 1995 में उसने एनडीए की परीक्षा दी थी। इसमें उसका सिलेक्शन हो गया। पहले तो मां तैयार नहीं हुई, लेकिन बेटे की जिद और जज्बे को देख वह राजी हो गई। वह 1996 की बैच का था। इसके साथ तीन साल की ट्रेनिंग हुई और 13 मई 2000 को वह लेफ्टिनेंट बना। उसके बाद नासिक के पास तीन माह की बोफोर्स गन की ट्रेनिंग हुई। फिर उसकी यूनिट की पोस्टिंग जम्मू कश्मीर में हुई। उसने वहां बहुत कुछ सीखा। वह जो भी बताता था हम समझने का प्रयास करते थे। कश्मीरियों जैसा बना लिया था हुलिया
गौतम ने कश्मीरियों के साथ रहना सीखा। यह जाना कि लोग वहां कैसी ड्रेस पहनते हैं। उसने वहां के लोगों जैसी दाढ़ी बढ़ा ली थी। दरअसल वह वहां के लोगों जैसा जीवन इसलिए जीता था कि उसे उनसे इन्फार्मेशन मिल सके। दरअसल उस दौरान इन्फेंट्री के लोग ही आतंकवादियों के खिलाफ जाते थे। इसके चलते हर आर्मी पर्सनल के लिए नियम बना दिया कि उन्हें एंटी टेरेरिस्ट एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट करना है। इस कारण गौतम उसी में था। उसका हुलिया भी बदल गया था। एक बार जब वह इंदौर आया था वॉचमेन भी उसे पहचान नहीं पाया था। तब जम्मू कश्मीर में कई बार उसकी और साथियों की आतंकवादियों से भिड़ंत होती थी। राजौरी सेक्टर में ऑपरेशन NIAJ नाम से दिया था अंजाम
शहीद गौतम के पिता बताते हैं कि अक्टूबर 2001 में गौतम की यूनिट को सूचना मिली कि काला कोट, राजौरी सेक्टर में कुछ आतंकवादी आए हैं। इस दौरान कमांडेंट ऑफिसर ने गौतम की यूनिट को आतंकवादियों को लोकेट करने को कहा। उनकी यूनिट दो दिन तक लगी रही लेकिन आतंकवादी नहीं मिले। फिर 1 नवंबर को फिर उन्हें सूचना दी गई कि आतंकवादी वहीं है, लोकेट करना है। इस पर गौतम अपनी टुकड़ी को लेकर वहां फिर सक्रिय हुए। इस ऑपरेशन को नाम दिया गया 'ऑपरेशन NIAJ।'। वह वहां जिस ग्रुप में था वह खुद NIAJ बताता था। गौतम की पोस्टिंग जहां थी वह जंगल, झाड़ियों, पहाड़ियों वाला क्षेत्र था। कुछ आगे जाकर उन्हें लगा कि आतंकवादी यहीं सक्रिय हैं। वहां इन सभी ने खुद को पोजिशन किया। इस दौरान उन्होंने देखा कि वहां झाड़ियों में तीन आतंकवादी थे। उधर आतंकवादियों को भी अहसास हो गया कि हम पकड़े जाएंगे। इसी दौरान गौतम के साथ भगवानसिंह को कुछ हलचल दिखी तो उसने गौतम को बताया। यह बात आतंकवादियों ने सुन ली और फायर किए। इसमें एक गोली भगवानसिंह की जांघ में लगी और खून बहने लगा। साथी को दे दी थी बुलेट प्रूफ जैकेट
इसके पूर्व गौतम ने अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट अपने जूनियर साथी को दी थी ताकि वह सुरक्षित रहे। दरअसल उ
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा दिया गया मुंहतोड़ जवाब न सिर्फ सैन्य ताकत का प्रतीक रहा, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत अब चुप बैठने वाला नहीं है। इस पूरे घटनाक्रम पर दैनिक भास्कर को प्रतिक्रिया देते हुए इंदौर निवासी शहीद लेफ्टिनेंट गौतम जैन के माता-पिता एसपी जैन और सुधा जैन ने कहा कि इस बार पूरा देश एक स्वर में आतंकवाद के खिलाफ खड़ा हुआ। चाहे वह किसी भी धर्म या राजनीतिक विचारधारा से क्यों न हो। उन्होंने बताया कि उनके बेटे गौतम जैन 2001 में देश के लिए शहीद हुए थे और तब से लेकर आज तक हर ऐसे क्षण में उनका गर्व और भी प्रबल होता है। देश के लिए शहादत सबसे बड़ा बलिदान है और हमें गर्व है कि हमारा बेटा 21 साल की उम्र में यह सौभाग्य लेकर गया। उन्होंने कहा कि हमारी युवाओं से अपील है कि वे फालतू शौक छोड़ देशभक्ति का जज्बा दिखाएं। देश के लिए अपना जीवन दें। उन्होंने सिविल डिफेंस पर जोर देते हुए कहा कि मॉकड्रिल में तो सभी को पहले से पता रहता है कब ब्लैकआउट करना है, लेकिन वास्तव में इमरजेंसी जैसी स्थिति के लिए सिविल डिफेंस का जज्बा जरूरी है। उन्होंने पहलगाम में हुई घटना और भारत द्वारा दिए गए मुंहतोड़ जवाब को लेकर कहा, राजनेता हमें आपस में दूर करते हैं लेकिन आतंकी ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर हमें जोड़ते हैं। जैसे पहलगाम की घटना में हर शख्स भारत के साथ है। यहां तक कि हर मुस्लिम और विपक्ष भी साथ है, यह बड़ी बात है। हमने 1965 में देखा था कि स्व. लालबहादुर शास्त्री की अगुआई में भारत ने पाकिस्तान से लड़ाई की। 1971 में इंदिरा गांधी के समय हुई थी। तब भी पूरा देश एकजुट हो गया था, नहीं तो सभी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में लगे रहते हैं। सिविल डिफेंस जरूरी
उन्होंने कहा कि अभी देश में भले ही इमरजेंसी घोषित नहीं हुई हो लेकिन बुधवार को जो मॉकड्रिल हुई इसे लेकर सिविल डिफेंस पर जोर देना होगा। जैसे योग दिवस पर कोई न कोई एक लीडर होता है, जो नेतृत्व करता है। इसी तरह सिविल डिफेंस में यह होना चाहिए कि किसी भी प्रकार की इमरजेंसी घोषित हुई तो संभालने के लिए हर शख्स अपने घर में सेफ्टी करेगा, लेकिन जहां 150-200 मकान हैं वहां एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो सिविल डिफेंस के बारे में जानता हो। उसमें इतना माद्दा होना चाहिए कि तब क्या करना चाहिए। भले ही वह आर्मी में नहीं हो लेकिन उस दौरान अगर हालात विपरीत बनते हैं तो उसे ब्लैकआउट का पालन कराने, घायलों को इलाज के लिए भेजने, पुलिस, एम्बुलेंस आदि को तुरंत कैसे कॉल कर मैनेज करना है, आदि का नेतृत्व करना आना चाहिए। हमें गर्व है हमारे बेटे पर जो देश के लिए शहीद हुआ
जैन के परिवार में दो बेटे और एक बेटी है। 1 नवंबर 2001 में शहीद हुए उनके छोटे बेटे गौतम जैन को 24 साल हो गए हैं। दंपती ने कहा कि देश के प्रति युवाओं का जज्बा होना बहुत जरूरी है। हमें गर्व है कि हमारे बेटे ने 21 साल की उम्र में देश के लिए बलिदान दिया। उन्होंने बताया कि गौतम भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट की 173 फील्ड रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट थे। उन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध में भाग लिया था। उनकी शहादत के लिए उन्हें सेना पदक से सम्मानित किया गया था। एयरफोर्स में नहीं हुआ सिलेक्शन तो आर्मी का रुख
उन्होंने बताया कि गौतम का शुरू से ही देशभक्ति के प्रति जज्बा था। उसका तब पीएमटी में भी सिलेक्शन हो गया था लेकिन इच्छा एयरफोर्स में जाने की थी। वहां उसका सिलेक्शन नहीं हो पाया। फिर 1995 में उसने एनडीए की परीक्षा दी थी। इसमें उसका सिलेक्शन हो गया। पहले तो मां तैयार नहीं हुई, लेकिन बेटे की जिद और जज्बे को देख वह राजी हो गई। वह 1996 की बैच का था। इसके साथ तीन साल की ट्रेनिंग हुई और 13 मई 2000 को वह लेफ्टिनेंट बना। उसके बाद नासिक के पास तीन माह की बोफोर्स गन की ट्रेनिंग हुई। फिर उसकी यूनिट की पोस्टिंग जम्मू कश्मीर में हुई। उसने वहां बहुत कुछ सीखा। वह जो भी बताता था हम समझने का प्रयास करते थे। कश्मीरियों जैसा बना लिया था हुलिया
गौतम ने कश्मीरियों के साथ रहना सीखा। यह जाना कि लोग वहां कैसी ड्रेस पहनते हैं। उसने वहां के लोगों जैसी दाढ़ी बढ़ा ली थी। दरअसल वह वहां के लोगों जैसा जीवन इसलिए जीता था कि उसे उनसे इन्फार्मेशन मिल सके। दरअसल उस दौरान इन्फेंट्री के लोग ही आतंकवादियों के खिलाफ जाते थे। इसके चलते हर आर्मी पर्सनल के लिए नियम बना दिया कि उन्हें एंटी टेरेरिस्ट एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट करना है। इस कारण गौतम उसी में था। उसका हुलिया भी बदल गया था। एक बार जब वह इंदौर आया था वॉचमेन भी उसे पहचान नहीं पाया था। तब जम्मू कश्मीर में कई बार उसकी और साथियों की आतंकवादियों से भिड़ंत होती थी। राजौरी सेक्टर में ऑपरेशन NIAJ नाम से दिया था अंजाम
शहीद गौतम के पिता बताते हैं कि अक्टूबर 2001 में गौतम की यूनिट को सूचना मिली कि काला कोट, राजौरी सेक्टर में कुछ आतंकवादी आए हैं। इस दौरान कमांडेंट ऑफिसर ने गौतम की यूनिट को आतंकवादियों को लोकेट करने को कहा। उनकी यूनिट दो दिन तक लगी रही लेकिन आतंकवादी नहीं मिले। फिर 1 नवंबर को फिर उन्हें सूचना दी गई कि आतंकवादी वहीं है, लोकेट करना है। इस पर गौतम अपनी टुकड़ी को लेकर वहां फिर सक्रिय हुए। इस ऑपरेशन को नाम दिया गया 'ऑपरेशन NIAJ।'। वह वहां जिस ग्रुप में था वह खुद NIAJ बताता था। गौतम की पोस्टिंग जहां थी वह जंगल, झाड़ियों, पहाड़ियों वाला क्षेत्र था। कुछ आगे जाकर उन्हें लगा कि आतंकवादी यहीं सक्रिय हैं। वहां इन सभी ने खुद को पोजिशन किया। इस दौरान उन्होंने देखा कि वहां झाड़ियों में तीन आतंकवादी थे। उधर आतंकवादियों को भी अहसास हो गया कि हम पकड़े जाएंगे। इसी दौरान गौतम के साथ भगवानसिंह को कुछ हलचल दिखी तो उसने गौतम को बताया। यह बात आतंकवादियों ने सुन ली और फायर किए। इसमें एक गोली भगवानसिंह की जांघ में लगी और खून बहने लगा। साथी को दे दी थी बुलेट प्रूफ जैकेट
इसके पूर्व गौतम ने अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट अपने जूनियर साथी को दी थी ताकि वह सुरक्षित रहे। दरअसल उस दौरान एक कारण यह भी था कि तब बुलेट प्रूफ जैकेट बहुत महंगी होती थी इस कारण यह लेफ्टिनेंट या सीनियर को प्रोवाइड होती थी। ऐसे में दूसरे आर्मी जवान की फिलिंग यह होती थी कि साहब को पूरी सुरक्षा और उन्हें नहीं। इस कारण गौतम ने यह फिलिंग दूर करने के लिए अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट साथी को पहनने को दी थी। इसी दौरान आतंकवादियों ने एक और गोली चलाई जो गौतम के सीने में लगी। हमें यह पूरा घटनाक्रम तब पता चला कि जब अगले दिन उसका पार्थिव शरीर इंदौर आया। उसी के साथियों ने हमें यह घटनाक्रम बताया था। दो आतंकियों को ढेर करके तोड़ा दम
माता-पिता ने यह भी बताया कि गोली लगते ही गौतम को महसूस हो गया था कि मैं नहीं बच पाउंगा। इस पर उसने भी गोलियां चलाना शुरू कर दीं। इस पर तीनों आतंकी भागे। इसमें दो आतंकवादी गौतम की गोली खाकर ढेर हो गए। तीसरे आतंकी को दूसरे आर्मी जवानों ने छलनी कर मार गिराया। इस बीच दूसरी ओर गौतम ने दम तोड़ दिया। उसके शहीद होने के जज्बे से वाकिफ थे माता-पिता मां बताती है कि घटना सुबह की थी। फिर शाम को हमें आर्मी के माध्यम से सूचना दी गई। फोन करने वाले साथी कह रहे थे कि गौतम गंभीर रूप से घायल हो गए थे लेकिन हम समझ गए कि हमारा बेटा शहीद हो गया। माता-पिता का कहना है कि गौतम हमेशा कहता था कि मौत तो यूं भी होनी ही है लेकिन वतन के लिए शहीद होने का मौका मिलना चाहिए। वह 21 साल की उम्र में (अविवाहित) वतन के लिए शहीद हो गया। अगले दिन उसका शव ससम्मान इंदौर लाया गया। फिर राष्ट्रीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ। आतंकवादियों से मुठभेड़ में घायल भगवानसिंह भी शहीद हो गए। घर सामान पहुंचा तो हाथ से लिखी कविता में दिखा जज्बा
माता-पिता ने बताया कि आर्मी ने जब उसका सामान घर भिजवाया तो उसमें एक कागज मिला। इस कागज में गौतम के हाथ की लिखी एक कविता थी। यह कविता उसने देशप्रेम, शहीद होने के जज्बे, परिवार को संबल देने से संबंधित (अंग्रेजी में) थी। उसकी कविता ने हमारा सीना और गर्व से चौड़ा कर दिया। फिर इसी कविता को आर्मी साथियों ने टाइप करवाकर एक बड़ी फ्रेम में तैयार कर उसे श्रद्धांजलि देते हुए हमें भेंट की। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में अब तक शहीद हुए जवानों और परिवार के सम्मान के प्रति ट्रॉफी भेजने की बात कही थी। हमें भी यह बेटे की शहादत के लिए दी गई। यह हमारा संबल बढ़ाती है। माता-पिता का कहना है कि आज युवा अपने खाने-कमाने, शौक करने में लगे हैं। उन्हें पहले राष्ट्र के प्रति प्रेम होना चाहिए। संत भी यही संदेश देते हैं कि धर्म तभी होगा जब देश होगा।