मेडिकल-डिवाइस के दुष्प्रभावों की मॉनिटरिंग AIIMS की जिम्मेदारी:कोरोनरी स्टेंट वाले मरीजों में जकड़न और पेसमेकर में तेज धड़कन जैसे लक्षण सामान्य नहीं

दिल की धड़कन संभालने वाले पेसमेकर हों या शरीर में लगाए जाने वाले स्टेंट या इंप्लांट, इनसे जुड़ी छोटी समस्या भी बड़ी परेशानी का रूप ले सकती है। अब इस पर नजर रखने की जिम्मेदारी AIIMS भोपाल को दी गई है। इसके लिए संस्थान को मेडिकल डिवाइस एडवर्स इवेंट रिपोर्टिंग मॉनिटरिंग सेंटर (MDMC) और रीजनल ट्रेनिंग सेंटर (RTC-M) का दर्जा मिला है। इसके तहत AIIMS भोपाल ने काम भी शुरू कर दिया है। एम्स प्रबंधन का कहना है कि अक्सर मेडिकल डिवाइस से जुड़े लक्षण मरीज और उनके परिजन सामान्य मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। इसी लापरवाही को रोकने और लोगों को सतर्क करने जागरूकता अभियान शुरू किया गया है, जिसकी शुरुआत ग्रामीण इलाकों से की जा रही है। इस कड़ी में AIIMS के फार्माकोलॉजी विभाग ने सामुदायिक और परिवार चिकित्सा विभाग के साथ मिलकर ओबैदुल्लागंज ब्लॉक के नंदोरा और टेकरी गांव में यह कार्यक्रम आयोजित किया। यह पहल मैटेरियोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया (MvPI) के तहत की जा रही है। समय पर रिपोर्टिंग जरूरी एम्स ने इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कई पोस्टर बनाए हैं। इनमें बताया गया कि मेडिकल उपकरणों जैसे स्टेंट, पेसमेकर और इंप्लांट लगाने के बाद अगर कोई असामान्य समस्या या परेशानी होती है, तो तुरंत डॉक्टर को सूचित करना बेहद जरूरी है। मरीज और उनके परिजनों को सरल भाषा में समझाया गया कि समय पर रिपोर्टिंग करने से न सिर्फ उनकी जान बच सकती है बल्कि भविष्य में अन्य मरीजों के इलाज में भी मदद मिलती है। मेडिकल डिवाइस और उनसे जुड़े खतरे कोरोनरी स्टेंट: अचानक सीने में दर्द, जकड़न, सांस फूलना, अत्यधिक थकान, पसीना और चक्कर आना गड़बड़ी के संकेत हैं। जब लक्षण पहले से ज्यादा हों या नए हों और आराम करने में भी दर्द हो, ऐसे में तुरंत नजदीकी अस्पताल जाएं। पेसमेकर: धड़कन बहुत तेज या बहुत धीमी महसूस होना, बेहोशी या लगातार चक्कर, सीने व कंधे के पास डिवाइस साइट पर सूजन जैसे लक्षण नजरअंदाज न करें। पेसमेकर में गड़बड़ी होने पर मरीज को बार-बार शॉक लगने जैसा महसूस होता है। इस स्थिति में तुरंत कार्डियोलॉजी विशेषज्ञ के पास पहुंचें। ऑर्थोपेडिक इंप्लांट (कूल्हा/घुटना/हड्डी में प्लेट-स्क्रू): जोड़ में लगातार बढ़ता दर्द, सूजन, लालिमा, चलने में अचानक दिक्कत, क्लिक की आवाज और बुखार जैसे लक्षणों की सूचना विशेषज्ञ को देना जरूरी है। वे एक्स-रे या खून की जांच कर स्थिति का सही अंदाजा लगा सकते हैं। इंसुलिन पंप: बार-बार हाई या लो शुगर होना, साइट पर लालिमा या दर्द भी गड़बड़ी के संकेत हैं। ऐसे में बैकअप इंसुलिन पेन रखें। ग्लूकोमीटर: रीडिंग्स का बार-बार असामान्य होना और एरर कोड्स आना स्ट्रिप्स की गड़बड़ी के संकेत हो सकते हैं। ऐसे में कंट्रोल सॉल्यूशन से क्रॉस-चेक करें। नई स्ट्रिप्स या बैटरी लगाकर देखें। फिर भी समस्या हो तो डिवाइस बदलें। ब्लड-प्रेशर मॉनिटर: बार-बार बेहद अलग-अलग रीडिंग आना, कफ का लीक होना या एरर मैसेज आना संकेत हैं कि मशीन खराब है। संदेह होने पर क्लिनिक माप से मिलान करें। हियरिंग एड: अचानक आवाज बहुत कम होना, सीटी बजना, कान में खुजली या दर्द होना, डिवाइस का गरम होना, बैटरी लीकेज या कान में इन्फेक्शन जैसे लक्षणों पर गौर करना जरूरी है। नेबुलाइजर: प्रेशर या डिलीवरी में कमी, मास्क से हवा का रिसाव, त्वचा पर रैश, मशीन का गरम होना यह सभी गंभीर लक्षण हैं। यदि नेबुलाइजर लेने के बाद सांस फूलना बढ़े और सिरदर्द हो तो तत्काल पल्मोनोलोजिस्ट से मिलें। हर गांव से हो दुष्प्रभावों की रिपोर्टिंग इस कार्यक्रम में विशेषज्ञ डॉक्टरों और रिसर्च एसोसिएट्स ने मेडिकल डिवाइस से जुड़े दुष्प्रभावों की रिपोर्टिंग की पूरी प्रक्रिया भी समझाई। एम्स भोपाल के डॉक्टरों ने कहा कि मरीजों की सुरक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लोगों को जागरूक करना उतना ही जरूरी है, जितना इलाज। यह पहल दिखाती है कि कैसे स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता को सीधे गांव-गांव तक पहुंचाना चाहिए। एम्स भोपाल का गांव-गांव अभियान एम्स भोपाल ने नंदोरा और टेकरी गांव (जिला रायसेन) में मेडिकल डिवाइस से जुड़ी दिक्कतों (Adverse Events) पर जागरूकता कार्यक्रम चलाया। यह पहल “मैटेरियोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया (MvPI)” के तहत हुई, जिसमें लोगों को समझाया गया कि स्टेंट, पेसमेकर, जोड़ों के इंप्लांट, इंसुलिन पंप, ग्लूकोमीटर जैसे उपकरण बेहद उपयोगी हैं, लेकिन इनकी गड़बड़ी की तुरंत पहचान व रिपोर्टिंग जान बचा सकती है। इन बातों का हमेशा ध्यान रखें :

Aug 17, 2025 - 13:53
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मेडिकल-डिवाइस के दुष्प्रभावों की मॉनिटरिंग AIIMS की जिम्मेदारी:कोरोनरी स्टेंट वाले मरीजों में जकड़न और पेसमेकर में तेज धड़कन जैसे लक्षण सामान्य नहीं
दिल की धड़कन संभालने वाले पेसमेकर हों या शरीर में लगाए जाने वाले स्टेंट या इंप्लांट, इनसे जुड़ी छोटी समस्या भी बड़ी परेशानी का रूप ले सकती है। अब इस पर नजर रखने की जिम्मेदारी AIIMS भोपाल को दी गई है। इसके लिए संस्थान को मेडिकल डिवाइस एडवर्स इवेंट रिपोर्टिंग मॉनिटरिंग सेंटर (MDMC) और रीजनल ट्रेनिंग सेंटर (RTC-M) का दर्जा मिला है। इसके तहत AIIMS भोपाल ने काम भी शुरू कर दिया है। एम्स प्रबंधन का कहना है कि अक्सर मेडिकल डिवाइस से जुड़े लक्षण मरीज और उनके परिजन सामान्य मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। इसी लापरवाही को रोकने और लोगों को सतर्क करने जागरूकता अभियान शुरू किया गया है, जिसकी शुरुआत ग्रामीण इलाकों से की जा रही है। इस कड़ी में AIIMS के फार्माकोलॉजी विभाग ने सामुदायिक और परिवार चिकित्सा विभाग के साथ मिलकर ओबैदुल्लागंज ब्लॉक के नंदोरा और टेकरी गांव में यह कार्यक्रम आयोजित किया। यह पहल मैटेरियोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया (MvPI) के तहत की जा रही है। समय पर रिपोर्टिंग जरूरी एम्स ने इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कई पोस्टर बनाए हैं। इनमें बताया गया कि मेडिकल उपकरणों जैसे स्टेंट, पेसमेकर और इंप्लांट लगाने के बाद अगर कोई असामान्य समस्या या परेशानी होती है, तो तुरंत डॉक्टर को सूचित करना बेहद जरूरी है। मरीज और उनके परिजनों को सरल भाषा में समझाया गया कि समय पर रिपोर्टिंग करने से न सिर्फ उनकी जान बच सकती है बल्कि भविष्य में अन्य मरीजों के इलाज में भी मदद मिलती है। मेडिकल डिवाइस और उनसे जुड़े खतरे कोरोनरी स्टेंट: अचानक सीने में दर्द, जकड़न, सांस फूलना, अत्यधिक थकान, पसीना और चक्कर आना गड़बड़ी के संकेत हैं। जब लक्षण पहले से ज्यादा हों या नए हों और आराम करने में भी दर्द हो, ऐसे में तुरंत नजदीकी अस्पताल जाएं। पेसमेकर: धड़कन बहुत तेज या बहुत धीमी महसूस होना, बेहोशी या लगातार चक्कर, सीने व कंधे के पास डिवाइस साइट पर सूजन जैसे लक्षण नजरअंदाज न करें। पेसमेकर में गड़बड़ी होने पर मरीज को बार-बार शॉक लगने जैसा महसूस होता है। इस स्थिति में तुरंत कार्डियोलॉजी विशेषज्ञ के पास पहुंचें। ऑर्थोपेडिक इंप्लांट (कूल्हा/घुटना/हड्डी में प्लेट-स्क्रू): जोड़ में लगातार बढ़ता दर्द, सूजन, लालिमा, चलने में अचानक दिक्कत, क्लिक की आवाज और बुखार जैसे लक्षणों की सूचना विशेषज्ञ को देना जरूरी है। वे एक्स-रे या खून की जांच कर स्थिति का सही अंदाजा लगा सकते हैं। इंसुलिन पंप: बार-बार हाई या लो शुगर होना, साइट पर लालिमा या दर्द भी गड़बड़ी के संकेत हैं। ऐसे में बैकअप इंसुलिन पेन रखें। ग्लूकोमीटर: रीडिंग्स का बार-बार असामान्य होना और एरर कोड्स आना स्ट्रिप्स की गड़बड़ी के संकेत हो सकते हैं। ऐसे में कंट्रोल सॉल्यूशन से क्रॉस-चेक करें। नई स्ट्रिप्स या बैटरी लगाकर देखें। फिर भी समस्या हो तो डिवाइस बदलें। ब्लड-प्रेशर मॉनिटर: बार-बार बेहद अलग-अलग रीडिंग आना, कफ का लीक होना या एरर मैसेज आना संकेत हैं कि मशीन खराब है। संदेह होने पर क्लिनिक माप से मिलान करें। हियरिंग एड: अचानक आवाज बहुत कम होना, सीटी बजना, कान में खुजली या दर्द होना, डिवाइस का गरम होना, बैटरी लीकेज या कान में इन्फेक्शन जैसे लक्षणों पर गौर करना जरूरी है। नेबुलाइजर: प्रेशर या डिलीवरी में कमी, मास्क से हवा का रिसाव, त्वचा पर रैश, मशीन का गरम होना यह सभी गंभीर लक्षण हैं। यदि नेबुलाइजर लेने के बाद सांस फूलना बढ़े और सिरदर्द हो तो तत्काल पल्मोनोलोजिस्ट से मिलें। हर गांव से हो दुष्प्रभावों की रिपोर्टिंग इस कार्यक्रम में विशेषज्ञ डॉक्टरों और रिसर्च एसोसिएट्स ने मेडिकल डिवाइस से जुड़े दुष्प्रभावों की रिपोर्टिंग की पूरी प्रक्रिया भी समझाई। एम्स भोपाल के डॉक्टरों ने कहा कि मरीजों की सुरक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लोगों को जागरूक करना उतना ही जरूरी है, जितना इलाज। यह पहल दिखाती है कि कैसे स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता को सीधे गांव-गांव तक पहुंचाना चाहिए। एम्स भोपाल का गांव-गांव अभियान एम्स भोपाल ने नंदोरा और टेकरी गांव (जिला रायसेन) में मेडिकल डिवाइस से जुड़ी दिक्कतों (Adverse Events) पर जागरूकता कार्यक्रम चलाया। यह पहल “मैटेरियोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया (MvPI)” के तहत हुई, जिसमें लोगों को समझाया गया कि स्टेंट, पेसमेकर, जोड़ों के इंप्लांट, इंसुलिन पंप, ग्लूकोमीटर जैसे उपकरण बेहद उपयोगी हैं, लेकिन इनकी गड़बड़ी की तुरंत पहचान व रिपोर्टिंग जान बचा सकती है। इन बातों का हमेशा ध्यान रखें :