नरसिंहगढ़ मुक्तिधाम में गूंजे भजन, रोशनी से जगमगाया परिसर:लगातार 12वें साल हुई भजन संध्या और पितृ तर्पण कार्यक्रम; भंडारे में उमड़े श्रद्धालु

राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ में छप्पन रोड स्थित मुक्तिधाम में बुधवार रात एक अनोखा आयोजन हुआ। मुक्तेश्वर महादेव सेवा समिति द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में भजन संध्या, पितृ तर्पण और भंडारे का आयोजन किया गया। संस्था के सदस्यों ने बताया कि यह परंपरा पिछले 12 वर्षों से निभाई जा रही है, जिसका उद्देश्य लोगों को यह संदेश देना है कि श्मशान सिर्फ विदाई का नहीं, बल्कि सेवा और समाज को जोड़ने का स्थान भी हो सकता है। पितरों की शांति और समाज के कल्याण की प्रार्थना इस आयोजन की शुरुआत पितृ पाठ और पितृ तर्पण से हुई, जिसमें नगरवासियों ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा के साथ भाग लिया। इसके बाद देर रात तक चली भजन संध्या में स्थानीय भजन मंडलियों और कलाकारों ने भगवान शिव और श्रीराम के भजनों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया। श्रद्धालुओं ने बताया कि यह आयोजन उन्हें आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा देता है। “श्मशान में इतनी शांति और भक्ति एक साथ पहली बार अनुभव की है,” एक श्रद्धालु ने कहा। झांकियों और रोशनी से सजा मुक्तिधाम कार्यक्रम के लिए पूरे मुक्तिधाम परिसर को रंगीन लाइटों और झांकियों से सजाया गया था। भगवान राम और भोलेनाथ की सुंदर झांकियां, बड़े पोस्टर और सजावट ने श्रद्धालुओं का ध्यान खींचा। पूरी रात माहौल भक्तिरस से सराबोर रहा। भंडारे में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब कार्यक्रम के अंत में विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। सेवा समिति के प्रमुख पंकज गिरी गोस्वामी बाबा और अन्य सेवकों ने बताया कि यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नगर की एकता और सहयोग की मिसाल है। "श्मशान से भी निकल सकती है सेवा की रोशनी" सेवा समिति के सदस्यों ने बताया कि श्मशान सिर्फ मृत्यु का स्थान नहीं है, बल्कि वहां से जीवन, सेवा और एकता का नया संदेश दिया जा सकता है। यह आयोजन लोगों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि जीवन में सहयोग, श्रद्धा और सामाजिक जिम्मेदारी का कितना महत्व है। एक नई परंपरा की मिसाल बना नरसिंहगढ़ का मुक्तिधाम सेवा समिति के सदस्यों ने बताया कि नरसिंहगढ़ में पिछले 12 वर्षों से चल रही यह परंपरा अब केवल भजन-कीर्तन तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह समाज को जोड़ने और सेवा की भावना को मजबूत करने का एक मजबूत जरिया बन चुकी है।

Sep 18, 2025 - 10:59
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नरसिंहगढ़ मुक्तिधाम में गूंजे भजन, रोशनी से जगमगाया परिसर:लगातार 12वें साल हुई भजन संध्या और पितृ तर्पण कार्यक्रम; भंडारे में उमड़े श्रद्धालु
राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ में छप्पन रोड स्थित मुक्तिधाम में बुधवार रात एक अनोखा आयोजन हुआ। मुक्तेश्वर महादेव सेवा समिति द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में भजन संध्या, पितृ तर्पण और भंडारे का आयोजन किया गया। संस्था के सदस्यों ने बताया कि यह परंपरा पिछले 12 वर्षों से निभाई जा रही है, जिसका उद्देश्य लोगों को यह संदेश देना है कि श्मशान सिर्फ विदाई का नहीं, बल्कि सेवा और समाज को जोड़ने का स्थान भी हो सकता है। पितरों की शांति और समाज के कल्याण की प्रार्थना इस आयोजन की शुरुआत पितृ पाठ और पितृ तर्पण से हुई, जिसमें नगरवासियों ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा के साथ भाग लिया। इसके बाद देर रात तक चली भजन संध्या में स्थानीय भजन मंडलियों और कलाकारों ने भगवान शिव और श्रीराम के भजनों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया। श्रद्धालुओं ने बताया कि यह आयोजन उन्हें आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा देता है। “श्मशान में इतनी शांति और भक्ति एक साथ पहली बार अनुभव की है,” एक श्रद्धालु ने कहा। झांकियों और रोशनी से सजा मुक्तिधाम कार्यक्रम के लिए पूरे मुक्तिधाम परिसर को रंगीन लाइटों और झांकियों से सजाया गया था। भगवान राम और भोलेनाथ की सुंदर झांकियां, बड़े पोस्टर और सजावट ने श्रद्धालुओं का ध्यान खींचा। पूरी रात माहौल भक्तिरस से सराबोर रहा। भंडारे में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब कार्यक्रम के अंत में विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। सेवा समिति के प्रमुख पंकज गिरी गोस्वामी बाबा और अन्य सेवकों ने बताया कि यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नगर की एकता और सहयोग की मिसाल है। "श्मशान से भी निकल सकती है सेवा की रोशनी" सेवा समिति के सदस्यों ने बताया कि श्मशान सिर्फ मृत्यु का स्थान नहीं है, बल्कि वहां से जीवन, सेवा और एकता का नया संदेश दिया जा सकता है। यह आयोजन लोगों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि जीवन में सहयोग, श्रद्धा और सामाजिक जिम्मेदारी का कितना महत्व है। एक नई परंपरा की मिसाल बना नरसिंहगढ़ का मुक्तिधाम सेवा समिति के सदस्यों ने बताया कि नरसिंहगढ़ में पिछले 12 वर्षों से चल रही यह परंपरा अब केवल भजन-कीर्तन तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह समाज को जोड़ने और सेवा की भावना को मजबूत करने का एक मजबूत जरिया बन चुकी है।