राम राजा दरबार में 20000 मौनियों का डांस:5 हजार साल पुरानी परंपरा, भगवान कृष्ण ने ग्वालों संग किया था नृत्य; विदेशी भी थिरक रहे

दीपावली के अगले दिन ओरछा के राम राजा मंदिर में 20 हजार लोगों ने पारंपरिक मौनिया नृत्य किया। मौनिया यानी मौन व्रत धारण कर श्री कृष्ण की आराधना में नृत्य करने वाले लोग। मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के सामने ग्वालों ने नृत्य कर उन्हें प्रसन्न किया था। तब से हर साल बुंदेलखंड में दीपावली के अगले दिन इस तरह का उत्सव मनाया जाता है। ये भाईदूज तक चलता है। इस बार भी इसमें हजारों की तादात में मौनिया इकट्‌ठा हुए और नृत्य शुरू किया। इसमें बड़ी संख्या में विदेशी श्रद्धालु भी शामिल हुए। द्वापर तक क्यों जाती है मौनिया नृत्य की कहानी, बुंदेलखंड में इसकी इतनी अधिक मान्यता क्यों है, नृत्य की विशेषता क्या है? पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट… मौनियों की टोलियों का ओरछा आना जारी राम राजा मंदिर में मौनियों की टोलियों का आना जारी है। इस बार बुंदेलखंड के सैकड़ों गांवोंं से करीब 1 हजार टोलियां रामराजा मंदिर ओरछा के लिए निकली हैं। एक टोली में 40 से 50 लोग होते हैं। इस तरह गोवर्धन पूजा से लेकर भाई दूज तक यहां करीब 35 से 40 हजार मौनिया पहुंचते हैं। मौनियों का मानना है कि 12 साल तक यह तपस्या करने से श्री कृष्ण उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। मौनियों की अलग अलग टोलियों ने रंग-बिरंगे कपड़े पहन रखे हैं। साथ ही उनके हाथ में मोर पंख और 2 डंडे हैं। वे अपनी धुन में मगन होकर झूम रहे हैं। राम राजा मंदिर में मौनियों की धुन ने विदेशी महिला श्रृद्धालुओं को भी थिरकने पर मजबूर कर दिया है। पिता के बाद बेटे, फिर पोते रखते हैं मौन व्रत जीवन सिंह बताते हैं कि हर टोली का अपना पहनावा होता है। हमारी टोली के सभी मौनिए चुस्त परिधान जांघिया, कुर्ता और बनियान पहनते हैं। कमर में घुंघरुओं की माला पहनते हैं। मोरपंख को कमर से बांधकर रखते हैं। हाथ में डंडे लिए होते हैं। ये परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। पहले पिता मौन व्रत धारण कर मौनिया नृत्य करता है। फिर उसका बेटा और इसके बाद उसका पोता। इस तरह एक से दूसरी पीढ़ी में विरासत की तरह ये परंपरा आगे बढ़ती रहती है। प्रायश्चित के लिए एक-दो साल अतिरिक्त व्रत मौनिया टोली में पहुंचे हरिशचंद्र कुशवाहा का कहना है कि 12 साल बाद मेरी मौनिया पूजा संपन्न हो गई है। ये पूजा 12 साल में पूरी होती है। ये मानिए कि एक-दो साल ब्याज के भी मौन रखते हैं। असल में 12 साल के दौरान यदि गलती से कहीं मुंह खुल जाए तो उसके लिए प्रायश्चित के तौर पर एक-दो साल और मौन व्रत धारण करते हैं। इसके लिए सात गांव की दहलीज लांघकर नाचते-गाते मंदिर पहुंचते हैं, तब पूजा होती है। लाठी और डंडों से किया जाता है मौनिया नृत्य ओरछा के रहने वाले अभिषेक दुबे ने बताया कि मौनिया नृत्य बुंदेलखंड में खासतौर से सागर, झांसी, निवाड़ी, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना जिले में किया जाता है। इसका स्वरूप सांस्कृतिक के साथ युद्ध कौशल से भी जुड़ा है। इसमें मात्र पुरुष ही हिस्सा लेते हैं। इसका केंद्रीय रस वीर प्रधान होता है। इसमें ग्रामीण दिवाली को मनौती के रूप में मानते हैं। इसी वजह से इसे मौनिया नृत्य कहते हैं। इसमें 12 से ज्यादा कलाकार गोला बनाते हैं। बीच में एक नर्तक होता है। सभी के हाथ में लाठियां होती हैं। वे साथ में गीत गाते हैं और ढोल नगड़िया(नगाड़े का छोटा प्रारूप) की थाप पर लाठियों से वार करते हैं। कलाकार दो डंडे हाथ में लेकर नाच-नाचकर खेलते हैं। इसमें ढोलक, मजीरा, रमतूला, झीका, नगाड़िया आदि प्रमुख वाद्य यंत्र हैं। मौनियों की टोली में गाने वालों के अलावा सब मौन रहते हैं। गोवर्धन पूजा तक चलता है कार्यक्रम उत्तर प्रदेश में झांसी जिले के चिरगांव के रहने वाले गोपाल बताते हैं कि बुंदेलखंड में दीपावली पर मौनिया नृत्य की प्रस्तुति के लिए एक महीने पहले से कलाकार तैयारी करते हैं। दीपावली की सुबह तीर्थ स्थानों पर पहुंचकर नृत्य करते हैं। लक्ष्मी पूजन के बाद घर से निकल जाते हैं। यह उत्सव गोवर्धन पूजा तक चलता है। यहां छतरपुर, पन्ना, दमोह, टीकमगढ़, निवाड़ी उत्तर प्रदेश के झांसी, महोबा, हमीरपुर, बांदा, दतिया से लोग आते हैं। 12 धार्मिक स्थलों पर नृत्य की परंपरा बुंदेलखंड के ग्रामीण खरीफ की अच्छी फसल होने की खुशी और रबी की अच्छी फसल की कामना करते हैं। इसके लिए दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के बाद मौनिया बुंदेलखंड के 12 देव स्थानों के दर्शन के लिए निकल पड़ते हैं। 12 धार्मिक स्थलों पर जाकर नृत्य करते हैं। इनमें ओरछा के राजा राम सबसे प्रमुख हैं। टोली के सभी ग्रामीण मौन व्रत रखते हैं। इसके बाद घर पहुंचकर मौन व्रत खोलते हैं। ओरछा के राजा राम दरबार में खुशहाली के लिए नृत्य की यह अनूठी परंपरा सैकड़ों वर्षों से जीवंत है। इसे सैरा नृत्य भी कहते हैं। शादी, संतान की मनोकामना पूर्ति के लिए व्रत इस खास व्रत और नृत्य की शुरुआत यादव समाज के साथ हुई थी, लेकिन अब इसे हर समाज अपना चुका है। इसके पीछे की वजह मौन व्रत और नृत्य करने से मनोकामनाओं की पूर्ति की मान्यता है। लोग अपनी खेती-किसानी, धन-धान्य, शादी और संतान प्राप्ति जैसी तमाम मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए ये मौन व्रत और नृत्य करते हैं। मौनियों की टोली के साथ पहुंचे राहुल वर्मा ने कहा कि यहां हमारे गांव के कई लोगों की मनोकामनाएं पूरी हुई हैं। बहुत से लोगों की शादी नहीं हो रही थी, उनकी शादी हो गई। कई लोगों के बच्चे नहीं हो रहे थे, उनके बच्चे हो गए। कई मामलों में मौनिया बनने के संकल्प से ही मनोकामना पूरी हो जाती है। इसके बाद 12 साल तक लोग मौनिया बनते हैं। राधाकृष्ण नाम सुमिरते ही बोर से निकला पानी मऊरानीपुर के धवाकर गांव से आए संतोष यादव ने कहा हमारे गांव के एक वर्मा जी के यहां बोर से पानी नहीं निकल रहा था। उन्होंने अलग-अलग जगह अपने खेत में 5 बोर कराए, लेकिन एक में भी पानी नहीं निकला। इसके बाद राधाकृष्ण का नाम सुमिरते ही पूरे गांव के सामने कहा था कि मैं एक बोर और कराऊंगा। उसमें भर कर पानी आएगा तो मैं 12 साल मौनिया बनकर व्रत करूंगा, नृत्य करूंगा। इसके बाद उन्होंने बोर कराया, उसमें खूब

राम राजा दरबार में 20000 मौनियों का डांस:5 हजार साल पुरानी परंपरा, भगवान कृष्ण ने ग्वालों संग किया था नृत्य; विदेशी भी थिरक रहे
दीपावली के अगले दिन ओरछा के राम राजा मंदिर में 20 हजार लोगों ने पारंपरिक मौनिया नृत्य किया। मौनिया यानी मौन व्रत धारण कर श्री कृष्ण की आराधना में नृत्य करने वाले लोग। मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के सामने ग्वालों ने नृत्य कर उन्हें प्रसन्न किया था। तब से हर साल बुंदेलखंड में दीपावली के अगले दिन इस तरह का उत्सव मनाया जाता है। ये भाईदूज तक चलता है। इस बार भी इसमें हजारों की तादात में मौनिया इकट्‌ठा हुए और नृत्य शुरू किया। इसमें बड़ी संख्या में विदेशी श्रद्धालु भी शामिल हुए। द्वापर तक क्यों जाती है मौनिया नृत्य की कहानी, बुंदेलखंड में इसकी इतनी अधिक मान्यता क्यों है, नृत्य की विशेषता क्या है? पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट… मौनियों की टोलियों का ओरछा आना जारी राम राजा मंदिर में मौनियों की टोलियों का आना जारी है। इस बार बुंदेलखंड के सैकड़ों गांवोंं से करीब 1 हजार टोलियां रामराजा मंदिर ओरछा के लिए निकली हैं। एक टोली में 40 से 50 लोग होते हैं। इस तरह गोवर्धन पूजा से लेकर भाई दूज तक यहां करीब 35 से 40 हजार मौनिया पहुंचते हैं। मौनियों का मानना है कि 12 साल तक यह तपस्या करने से श्री कृष्ण उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। मौनियों की अलग अलग टोलियों ने रंग-बिरंगे कपड़े पहन रखे हैं। साथ ही उनके हाथ में मोर पंख और 2 डंडे हैं। वे अपनी धुन में मगन होकर झूम रहे हैं। राम राजा मंदिर में मौनियों की धुन ने विदेशी महिला श्रृद्धालुओं को भी थिरकने पर मजबूर कर दिया है। पिता के बाद बेटे, फिर पोते रखते हैं मौन व्रत जीवन सिंह बताते हैं कि हर टोली का अपना पहनावा होता है। हमारी टोली के सभी मौनिए चुस्त परिधान जांघिया, कुर्ता और बनियान पहनते हैं। कमर में घुंघरुओं की माला पहनते हैं। मोरपंख को कमर से बांधकर रखते हैं। हाथ में डंडे लिए होते हैं। ये परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। पहले पिता मौन व्रत धारण कर मौनिया नृत्य करता है। फिर उसका बेटा और इसके बाद उसका पोता। इस तरह एक से दूसरी पीढ़ी में विरासत की तरह ये परंपरा आगे बढ़ती रहती है। प्रायश्चित के लिए एक-दो साल अतिरिक्त व्रत मौनिया टोली में पहुंचे हरिशचंद्र कुशवाहा का कहना है कि 12 साल बाद मेरी मौनिया पूजा संपन्न हो गई है। ये पूजा 12 साल में पूरी होती है। ये मानिए कि एक-दो साल ब्याज के भी मौन रखते हैं। असल में 12 साल के दौरान यदि गलती से कहीं मुंह खुल जाए तो उसके लिए प्रायश्चित के तौर पर एक-दो साल और मौन व्रत धारण करते हैं। इसके लिए सात गांव की दहलीज लांघकर नाचते-गाते मंदिर पहुंचते हैं, तब पूजा होती है। लाठी और डंडों से किया जाता है मौनिया नृत्य ओरछा के रहने वाले अभिषेक दुबे ने बताया कि मौनिया नृत्य बुंदेलखंड में खासतौर से सागर, झांसी, निवाड़ी, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना जिले में किया जाता है। इसका स्वरूप सांस्कृतिक के साथ युद्ध कौशल से भी जुड़ा है। इसमें मात्र पुरुष ही हिस्सा लेते हैं। इसका केंद्रीय रस वीर प्रधान होता है। इसमें ग्रामीण दिवाली को मनौती के रूप में मानते हैं। इसी वजह से इसे मौनिया नृत्य कहते हैं। इसमें 12 से ज्यादा कलाकार गोला बनाते हैं। बीच में एक नर्तक होता है। सभी के हाथ में लाठियां होती हैं। वे साथ में गीत गाते हैं और ढोल नगड़िया(नगाड़े का छोटा प्रारूप) की थाप पर लाठियों से वार करते हैं। कलाकार दो डंडे हाथ में लेकर नाच-नाचकर खेलते हैं। इसमें ढोलक, मजीरा, रमतूला, झीका, नगाड़िया आदि प्रमुख वाद्य यंत्र हैं। मौनियों की टोली में गाने वालों के अलावा सब मौन रहते हैं। गोवर्धन पूजा तक चलता है कार्यक्रम उत्तर प्रदेश में झांसी जिले के चिरगांव के रहने वाले गोपाल बताते हैं कि बुंदेलखंड में दीपावली पर मौनिया नृत्य की प्रस्तुति के लिए एक महीने पहले से कलाकार तैयारी करते हैं। दीपावली की सुबह तीर्थ स्थानों पर पहुंचकर नृत्य करते हैं। लक्ष्मी पूजन के बाद घर से निकल जाते हैं। यह उत्सव गोवर्धन पूजा तक चलता है। यहां छतरपुर, पन्ना, दमोह, टीकमगढ़, निवाड़ी उत्तर प्रदेश के झांसी, महोबा, हमीरपुर, बांदा, दतिया से लोग आते हैं। 12 धार्मिक स्थलों पर नृत्य की परंपरा बुंदेलखंड के ग्रामीण खरीफ की अच्छी फसल होने की खुशी और रबी की अच्छी फसल की कामना करते हैं। इसके लिए दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के बाद मौनिया बुंदेलखंड के 12 देव स्थानों के दर्शन के लिए निकल पड़ते हैं। 12 धार्मिक स्थलों पर जाकर नृत्य करते हैं। इनमें ओरछा के राजा राम सबसे प्रमुख हैं। टोली के सभी ग्रामीण मौन व्रत रखते हैं। इसके बाद घर पहुंचकर मौन व्रत खोलते हैं। ओरछा के राजा राम दरबार में खुशहाली के लिए नृत्य की यह अनूठी परंपरा सैकड़ों वर्षों से जीवंत है। इसे सैरा नृत्य भी कहते हैं। शादी, संतान की मनोकामना पूर्ति के लिए व्रत इस खास व्रत और नृत्य की शुरुआत यादव समाज के साथ हुई थी, लेकिन अब इसे हर समाज अपना चुका है। इसके पीछे की वजह मौन व्रत और नृत्य करने से मनोकामनाओं की पूर्ति की मान्यता है। लोग अपनी खेती-किसानी, धन-धान्य, शादी और संतान प्राप्ति जैसी तमाम मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए ये मौन व्रत और नृत्य करते हैं। मौनियों की टोली के साथ पहुंचे राहुल वर्मा ने कहा कि यहां हमारे गांव के कई लोगों की मनोकामनाएं पूरी हुई हैं। बहुत से लोगों की शादी नहीं हो रही थी, उनकी शादी हो गई। कई लोगों के बच्चे नहीं हो रहे थे, उनके बच्चे हो गए। कई मामलों में मौनिया बनने के संकल्प से ही मनोकामना पूरी हो जाती है। इसके बाद 12 साल तक लोग मौनिया बनते हैं। राधाकृष्ण नाम सुमिरते ही बोर से निकला पानी मऊरानीपुर के धवाकर गांव से आए संतोष यादव ने कहा हमारे गांव के एक वर्मा जी के यहां बोर से पानी नहीं निकल रहा था। उन्होंने अलग-अलग जगह अपने खेत में 5 बोर कराए, लेकिन एक में भी पानी नहीं निकला। इसके बाद राधाकृष्ण का नाम सुमिरते ही पूरे गांव के सामने कहा था कि मैं एक बोर और कराऊंगा। उसमें भर कर पानी आएगा तो मैं 12 साल मौनिया बनकर व्रत करूंगा, नृत्य करूंगा। इसके बाद उन्होंने बोर कराया, उसमें खूब पानी निकला। ये देखकर पूरे गांव की श्रद्धा भगवान के प्रति और बढ़ गई। हर मौनिया पर इसी तरह की कृपा होती रहती है।