सागर में है मराठाकालीन 300 साल पुराना गोवर्धन धाम मंदिर:उंगली पर गोवर्धन पर्वत लिए बाल स्वरूप में विराजे हैं भगवान श्रीकृष्ण, दीपावली के दूसरे दिन लगता ह...
सागर में है मराठाकालीन 300 साल पुराना गोवर्धन धाम मंदिर:उंगली पर गोवर्धन पर्वत लिए बाल स्वरूप में विराजे हैं भगवान श्रीकृष्ण, दीपावली के दूसरे दिन लगता है मेला
दीपावली त्योहार पर सागर के प्रसिद्ध श्री देव गोवर्धन धाम मंदिर परिसर में दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में मौनिया पहुंचते हैं जो मौनिया नृत्य की प्रस्तुति देते हैं। साथ ही सैकड़ों की संख्या में जिले के लोग मेले में शामिल होने पहुंचते हैं। सागर के तिली क्षेत्र में गवर्नमेंट जिला आयुर्वेदिक हॉस्पिटल के पास स्थित गोवर्धन मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। मंदिर के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाने वाले परिवार के मोहन यादव बताते हैं कि श्रीदेव गोवर्धन धाम मंदिर 300 साल से अधिक पुराना मराठाकालीन है। अंग्रेज शासनकाल और वन विभाग के रिकॉर्ड में मंदिर के संबंध में लिखा हुआ है। पहले घने जंगल के बीच मढ़िया थी। लेकिन बाद में वर्ष 1993 में यहां भव्य मंदिर का निर्माण शुरू कराया गया। साल 1994 में मंदिर बनकर तैयार हुआ और मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित की गई। इस मंदिर में दीपावली के दूसरे दिन से दो दिवसीय मेला लगता है। यह मेला भी करीब 100 साल पुराना है। मेले की खासियत यह है कि यहां मौनिया पहुंचते हैं, मंदिर उनका मुख्य पूजा स्थल माना जाता है। यहां वे भगवान के दर्शन कर पूजा करते हैं और मौनिया नृत्य की प्रस्तुति देते हैं। वहीं लोग दीवारी गाते हैं। गोवर्धन पर्वत अंगुली पर लिए विराजे हैं भगवान श्रीकृष्ण
गोवर्धन धाम मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की बाल स्वरूप प्रतिमा स्थापित है। भगवान अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाए हुए हैं। उनका यह आकर्षक रूप निहारने के लिए जिलेभर के भक्त दीपावली के दूसरे दिन और गोवर्धन पूजन के दिन पहुंचते हैं। मौन व्रत रखकर 12 गांवों की परिक्रमा करते हैं मौनिया
मौनिया नृत्य बुंदेलखंड का एक लोक नृत्य है। लोगों के मौन होकर इस नृत्य को करने से इसका नाम मौनिया नृत्य पड़ा है। जानकार मोहन यादव बताते हैं कि मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे बैठे थे। तभी उनकी गायें कहीं चली गईं। गायों को जाने पर वह दुखी होकर मौन हो गए। जिसके बाद भगवान कृष्ण के सभी ग्वाल दोस्त परेशान होने लगे। ग्वालों ने सभी गायों को तलाश लिया और उन्हें लेकर आए, तब जाकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपना मौन तोड़ा था। तभी से परंपरा मौनिया बनने और मौनिया नृत्य की परंपरा शुरू हुई। इस परंपरा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के भक्त और गाय चराने वाले मौन व्रत रख कर दीपावली के एक दिन बाद मौन परमा के दिन इस नृत्य को करते हुए 12 गांवों की परिक्रमा लगाते हैं। इस दौरान वह गांवों के मंदिरों में पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करते हैं। साथ ही गोवर्धन धाम मंदिर आते हैं। क्या होता है मौनिया नृत्य
बुंदेलखंड के लोक नृत्यों में से एक है मौनिया नृत्य। मौनिया नृत्य बुंदेलखंड में यादव (अहीर) जाति द्वारा किया जाता है। विशेष रूप से यह नृत्य दीपावली के दूसरे दिन किया जाता है। इस नृत्य में पुरुष अपनी पारंपरिक पोशाक पहनकर मोर के पंखों को लेकर एक घेरा बनाकर करते हैं। बुंदेलखंड का सबसे प्राचीन नृत्य मौनिया है। यह बुंदेलखंड के गांव-गांव में किया जाता है। गोवर्धन धाम में मेले की तैयारियां पूरी
गोवर्धन धाम में दीपावली के दूसरे दिन से लगने वाले दो दिवसीय मेले की तैयारियां लगभग पूरी हो गई है। मंदिर के नीचे खाली पड़े परिसर में मेला लगाया जा रहा है। यहां झूला और अन्य दुकानें लगना शुरू हो गई हैं। 1 और 2 नवंबर को सैकड़ों की संख्या में भगवान श्रीकृष्ण के भक्त मेले में पहुंचेंगे। जहां भगवान के दर्शन करेंगे।
दीपावली त्योहार पर सागर के प्रसिद्ध श्री देव गोवर्धन धाम मंदिर परिसर में दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में मौनिया पहुंचते हैं जो मौनिया नृत्य की प्रस्तुति देते हैं। साथ ही सैकड़ों की संख्या में जिले के लोग मेले में शामिल होने पहुंचते हैं। सागर के तिली क्षेत्र में गवर्नमेंट जिला आयुर्वेदिक हॉस्पिटल के पास स्थित गोवर्धन मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। मंदिर के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाने वाले परिवार के मोहन यादव बताते हैं कि श्रीदेव गोवर्धन धाम मंदिर 300 साल से अधिक पुराना मराठाकालीन है। अंग्रेज शासनकाल और वन विभाग के रिकॉर्ड में मंदिर के संबंध में लिखा हुआ है। पहले घने जंगल के बीच मढ़िया थी। लेकिन बाद में वर्ष 1993 में यहां भव्य मंदिर का निर्माण शुरू कराया गया। साल 1994 में मंदिर बनकर तैयार हुआ और मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित की गई। इस मंदिर में दीपावली के दूसरे दिन से दो दिवसीय मेला लगता है। यह मेला भी करीब 100 साल पुराना है। मेले की खासियत यह है कि यहां मौनिया पहुंचते हैं, मंदिर उनका मुख्य पूजा स्थल माना जाता है। यहां वे भगवान के दर्शन कर पूजा करते हैं और मौनिया नृत्य की प्रस्तुति देते हैं। वहीं लोग दीवारी गाते हैं। गोवर्धन पर्वत अंगुली पर लिए विराजे हैं भगवान श्रीकृष्ण
गोवर्धन धाम मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की बाल स्वरूप प्रतिमा स्थापित है। भगवान अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाए हुए हैं। उनका यह आकर्षक रूप निहारने के लिए जिलेभर के भक्त दीपावली के दूसरे दिन और गोवर्धन पूजन के दिन पहुंचते हैं। मौन व्रत रखकर 12 गांवों की परिक्रमा करते हैं मौनिया
मौनिया नृत्य बुंदेलखंड का एक लोक नृत्य है। लोगों के मौन होकर इस नृत्य को करने से इसका नाम मौनिया नृत्य पड़ा है। जानकार मोहन यादव बताते हैं कि मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे बैठे थे। तभी उनकी गायें कहीं चली गईं। गायों को जाने पर वह दुखी होकर मौन हो गए। जिसके बाद भगवान कृष्ण के सभी ग्वाल दोस्त परेशान होने लगे। ग्वालों ने सभी गायों को तलाश लिया और उन्हें लेकर आए, तब जाकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपना मौन तोड़ा था। तभी से परंपरा मौनिया बनने और मौनिया नृत्य की परंपरा शुरू हुई। इस परंपरा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के भक्त और गाय चराने वाले मौन व्रत रख कर दीपावली के एक दिन बाद मौन परमा के दिन इस नृत्य को करते हुए 12 गांवों की परिक्रमा लगाते हैं। इस दौरान वह गांवों के मंदिरों में पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करते हैं। साथ ही गोवर्धन धाम मंदिर आते हैं। क्या होता है मौनिया नृत्य
बुंदेलखंड के लोक नृत्यों में से एक है मौनिया नृत्य। मौनिया नृत्य बुंदेलखंड में यादव (अहीर) जाति द्वारा किया जाता है। विशेष रूप से यह नृत्य दीपावली के दूसरे दिन किया जाता है। इस नृत्य में पुरुष अपनी पारंपरिक पोशाक पहनकर मोर के पंखों को लेकर एक घेरा बनाकर करते हैं। बुंदेलखंड का सबसे प्राचीन नृत्य मौनिया है। यह बुंदेलखंड के गांव-गांव में किया जाता है। गोवर्धन धाम में मेले की तैयारियां पूरी
गोवर्धन धाम में दीपावली के दूसरे दिन से लगने वाले दो दिवसीय मेले की तैयारियां लगभग पूरी हो गई है। मंदिर के नीचे खाली पड़े परिसर में मेला लगाया जा रहा है। यहां झूला और अन्य दुकानें लगना शुरू हो गई हैं। 1 और 2 नवंबर को सैकड़ों की संख्या में भगवान श्रीकृष्ण के भक्त मेले में पहुंचेंगे। जहां भगवान के दर्शन करेंगे।