श्रद्धालुओं के शरीर में आए भेरूजी व माताजी के 'अंश':झाबुआ के बोरडी गांव में नवरात्र पर दिखा अनूठा नजारा

झाबुआ जिले के बोरडी गांव में नवरात्र पर्व के दौरान आस्था और विश्वास से जुड़ी सदियों पुरानी परंपरा देखने को मिली। इस खास परंपरा के निर्वहन के लिए हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग यहां इकट्ठा हुए। गांव के प्राचीन भेरूजी मंदिर, जिसे स्थानीय भाषा में 'बोयडी बाबाजी' के नाम से जाना जाता है, वहां से इस अनूठे धार्मिक आयोजन की शुरुआत हुई। बोरडी गांव में हर साल नवरात्र के दौरान आस्था का ऐसा मेला लगता है जो अपने आप में एक मिसाल है। परंपरा के तहत श्रद्धालु जवारे यानी देवी के प्रतीक स्वरूप को अपने सिर पर धारण कर चलते हैं। इस दौरान सैकड़ों की तादाद में लोगों के शरीर में भेरूजी व माताजी के 'अंश' आते हैं। 'अंश' आने पर ये श्रद्धालु धूनी रमाने लगते हैं। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं सभी इस परंपरा में शामिल होते हैं। यह जुलूस पूरे गांव से होता हुआ नदी तक पहुंचता है, जहां ज्वारों का विसर्जन किया जाता है। सरपंच छतर सिंह, रितेश डामोर और रूपसिंग गरवाल ने बताया कि आदिवासी समाज इस परंपरा को सदियों से पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ निभा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि इस आयोजन में केवल झाबुआ ही नहीं, बल्कि राजस्थान और आसपास के इलाकों से भी बड़ी संख्या में लोग भाग लेने और इस अनूठे दृश्य को देखने के लिए पहुंचते हैं।

Oct 1, 2025 - 16:28
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श्रद्धालुओं के शरीर में आए भेरूजी व माताजी के 'अंश':झाबुआ के बोरडी गांव में नवरात्र पर दिखा अनूठा नजारा
झाबुआ जिले के बोरडी गांव में नवरात्र पर्व के दौरान आस्था और विश्वास से जुड़ी सदियों पुरानी परंपरा देखने को मिली। इस खास परंपरा के निर्वहन के लिए हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग यहां इकट्ठा हुए। गांव के प्राचीन भेरूजी मंदिर, जिसे स्थानीय भाषा में 'बोयडी बाबाजी' के नाम से जाना जाता है, वहां से इस अनूठे धार्मिक आयोजन की शुरुआत हुई। बोरडी गांव में हर साल नवरात्र के दौरान आस्था का ऐसा मेला लगता है जो अपने आप में एक मिसाल है। परंपरा के तहत श्रद्धालु जवारे यानी देवी के प्रतीक स्वरूप को अपने सिर पर धारण कर चलते हैं। इस दौरान सैकड़ों की तादाद में लोगों के शरीर में भेरूजी व माताजी के 'अंश' आते हैं। 'अंश' आने पर ये श्रद्धालु धूनी रमाने लगते हैं। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं सभी इस परंपरा में शामिल होते हैं। यह जुलूस पूरे गांव से होता हुआ नदी तक पहुंचता है, जहां ज्वारों का विसर्जन किया जाता है। सरपंच छतर सिंह, रितेश डामोर और रूपसिंग गरवाल ने बताया कि आदिवासी समाज इस परंपरा को सदियों से पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ निभा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि इस आयोजन में केवल झाबुआ ही नहीं, बल्कि राजस्थान और आसपास के इलाकों से भी बड़ी संख्या में लोग भाग लेने और इस अनूठे दृश्य को देखने के लिए पहुंचते हैं।