कंधों पर सवार होकर विसर्जन पर निकली कांधे वाली काली:चल माई, चल माई के जयकारों से गूंजा शहर, तीनबत्ती पर उमड़ा भक्तों का जनसैलाब
कंधों पर सवार होकर विसर्जन पर निकली कांधे वाली काली:चल माई, चल माई के जयकारों से गूंजा शहर, तीनबत्ती पर उमड़ा भक्तों का जनसैलाब
सागर में शहर के पंडालों में विराजमान मां भगवती की प्रतिमाओं का विसर्जन ढोल-नगाड़ों के बीच भक्तों ने किया। अलग-अलग स्थानों से दुर्गा विसर्जन चल समारोह निकाले गए। तीन बत्ती से राधा टॉकीज तक का इलाका लोगों से खचाखच भरा रहा। मां दुर्गा की झांकियां निकल रही थी। आकर्षक साज-सज्जा, आस्था का सैलाब उमड़ा हुआ था। सड़क के दोनों ओर किनारों पर हजारों की संख्या में लोग बैठे हुए थे। भक्तों ने कंधों पर बैठाकर मां को विदा किया
शहर की सबसे प्रसिद्ध पुरव्याऊ की कांधे वाली काली का चल समारोह शुरू हुआ। पुरव्याऊ से माता को कंधों पर बैठाकर भक्त विसर्जन के लिए लेकर निकले। इसके बाद हर ओर चल माई-चल माई के जयघोष ही सुनाई दिए। लोगों ने पुष्पवर्षा कर मां को विदाई दी। आगे मशाल चल रही थी। सैकड़ों की संख्या में युवा सड़क पर दौड़ लगा रहे थे। वहीं पीछे श्रद्धालुओं के कंधों पर सवार मां दुर्गा की प्रतिमा चल रही थी। इस दृश्य को निहारने के लिए चल समारोह मार्ग पर हजारों लोग पहुंचे। माता का दिव्य और अलौकिक दृश्य हर कोई अपने मोबाइल में कैद कर रहा था। चकराघाट पर हुआ विसर्जन
देर रात करीब 2.30 बजे तक चले चल समारोह के बाद चकराघाट पर माता का विसर्जन किया गया। पुरव्याऊ की माता का चल समारोह देर रात तीनबत्ती तिराहे पर पहुंचा। जलती हुई मशाल और सड़क पर लोगों को दौड़ते देख हर तरफ चल माई, चल माई के जयकारे लगने लगे। जैसे ही माता तिराहे पर पहुंची तो भक्तों ने फूलों की बरसात की। वहीं जमकर आतिशबाजी हुई। इस दौरान कटरा बाजार मार्ग पर स्वागत टेंट लगाए गए। जहां पर डीजे की धुन पर युवा जमकर झूमे। कांधे वाली काली वर्ष 1905 से सागर में स्थापित की जा रही हैं। कोरोना काल में भी यह परंपरा नहीं टूटी। माता का वैभव और एक झलक पाने के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ा।
सागर में शहर के पंडालों में विराजमान मां भगवती की प्रतिमाओं का विसर्जन ढोल-नगाड़ों के बीच भक्तों ने किया। अलग-अलग स्थानों से दुर्गा विसर्जन चल समारोह निकाले गए। तीन बत्ती से राधा टॉकीज तक का इलाका लोगों से खचाखच भरा रहा। मां दुर्गा की झांकियां निकल रही थी। आकर्षक साज-सज्जा, आस्था का सैलाब उमड़ा हुआ था। सड़क के दोनों ओर किनारों पर हजारों की संख्या में लोग बैठे हुए थे। भक्तों ने कंधों पर बैठाकर मां को विदा किया
शहर की सबसे प्रसिद्ध पुरव्याऊ की कांधे वाली काली का चल समारोह शुरू हुआ। पुरव्याऊ से माता को कंधों पर बैठाकर भक्त विसर्जन के लिए लेकर निकले। इसके बाद हर ओर चल माई-चल माई के जयघोष ही सुनाई दिए। लोगों ने पुष्पवर्षा कर मां को विदाई दी। आगे मशाल चल रही थी। सैकड़ों की संख्या में युवा सड़क पर दौड़ लगा रहे थे। वहीं पीछे श्रद्धालुओं के कंधों पर सवार मां दुर्गा की प्रतिमा चल रही थी। इस दृश्य को निहारने के लिए चल समारोह मार्ग पर हजारों लोग पहुंचे। माता का दिव्य और अलौकिक दृश्य हर कोई अपने मोबाइल में कैद कर रहा था। चकराघाट पर हुआ विसर्जन
देर रात करीब 2.30 बजे तक चले चल समारोह के बाद चकराघाट पर माता का विसर्जन किया गया। पुरव्याऊ की माता का चल समारोह देर रात तीनबत्ती तिराहे पर पहुंचा। जलती हुई मशाल और सड़क पर लोगों को दौड़ते देख हर तरफ चल माई, चल माई के जयकारे लगने लगे। जैसे ही माता तिराहे पर पहुंची तो भक्तों ने फूलों की बरसात की। वहीं जमकर आतिशबाजी हुई। इस दौरान कटरा बाजार मार्ग पर स्वागत टेंट लगाए गए। जहां पर डीजे की धुन पर युवा जमकर झूमे। कांधे वाली काली वर्ष 1905 से सागर में स्थापित की जा रही हैं। कोरोना काल में भी यह परंपरा नहीं टूटी। माता का वैभव और एक झलक पाने के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ा।