बड़वानी में पड़वा पर पाड़ों का दंगल:धनगर समाज ने निभाई वर्षों पुरानी परंपरा, दशहरा मैदान में जुटे लोग
बड़वानी में पड़वा पर पाड़ों का दंगल:धनगर समाज ने निभाई वर्षों पुरानी परंपरा, दशहरा मैदान में जुटे लोग
बड़वानी शहर के दशहरा मैदान पर दीपावली की पड़वा के अवसर पर पाड़ों के दंगल का आयोजन किया गया। धनगर समाज के लोगों ने इस वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। यह आयोजन बुधवार को किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में समाजजन एकत्रित हुए। दंगल से पहले, धनगर समाज के लोग अपने पशुधन को सजा-धजाकर मुख्य बाजार से दशहरा मैदान तक लेकर गुजरे। इस दौरान शहर के भारुड मोहल्ले में पालतू पशुओं की विशेष पूजा-अर्चना भी की गई। शोभायात्रा के दौरान जमकर आतिशबाजी भी की गई, जिससे माहौल उत्सवपूर्ण हो गया। धनगर समाज में पाड़ों के दंगल की यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इसमें दो पाड़ों का आमने-सामने मुकाबला होता है, जिसे देखने के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं। समाजजनों का मानना है कि यह आयोजन उन्हें आपस में मिलने और एकजुट होने का अवसर प्रदान करता है। दंगल के लिए पाड़ों को विशेष रूप से सजाया जाता है, जिससे लोगों में खासा उत्साह देखा जाता है। पड़वा के दिन गोवर्धन पूजा भी परंपरागत रूप से की गई। सुबह पशुधन को श्रृंगारित कर उनका पूजन किया गया। वहीं, महिलाओं ने घरों के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाकर विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। यह पर्व द्वापर युग की उस घटना से जुड़ा है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाया था।
बड़वानी शहर के दशहरा मैदान पर दीपावली की पड़वा के अवसर पर पाड़ों के दंगल का आयोजन किया गया। धनगर समाज के लोगों ने इस वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। यह आयोजन बुधवार को किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में समाजजन एकत्रित हुए। दंगल से पहले, धनगर समाज के लोग अपने पशुधन को सजा-धजाकर मुख्य बाजार से दशहरा मैदान तक लेकर गुजरे। इस दौरान शहर के भारुड मोहल्ले में पालतू पशुओं की विशेष पूजा-अर्चना भी की गई। शोभायात्रा के दौरान जमकर आतिशबाजी भी की गई, जिससे माहौल उत्सवपूर्ण हो गया। धनगर समाज में पाड़ों के दंगल की यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इसमें दो पाड़ों का आमने-सामने मुकाबला होता है, जिसे देखने के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं। समाजजनों का मानना है कि यह आयोजन उन्हें आपस में मिलने और एकजुट होने का अवसर प्रदान करता है। दंगल के लिए पाड़ों को विशेष रूप से सजाया जाता है, जिससे लोगों में खासा उत्साह देखा जाता है। पड़वा के दिन गोवर्धन पूजा भी परंपरागत रूप से की गई। सुबह पशुधन को श्रृंगारित कर उनका पूजन किया गया। वहीं, महिलाओं ने घरों के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाकर विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। यह पर्व द्वापर युग की उस घटना से जुड़ा है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाया था।