आनंद अग्रवाल ने लगवाई थी छत्तीसगढ़-महतारी की पहली प्रतिमा:दिल्ली में लंगर के सहारे डटे रहे; मूर्ति पर आंदोलनकारियों ने लगाया था खून का टीका
छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के प्रमुख अमित बघेल ने सिंधी और अग्रवाल समाज को लेकर विवादित टिप्पणी की। इस पर देशभर में बवाल मचा। इस बीच एक दिलचस्प तथ्य ये सामने आया है कि छत्तीसगढ़ महतारी की पहली मूर्ति स्थापित करने वाले कोई और नहीं, बल्कि अग्रवाल समाज के एक शख्स थे। दुर्ग के वर्तमान SP विजय अग्रवाल के पिता आनंद अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ महतारी की पहली मूर्ति घड़ी चौक के पास स्थापित की थी, जो आज मंदिर के रूप में बदल गया है। वर्तमान में इस मंदिर की देखरेख छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के कार्यकर्ता कर रहे हैं। यानी आज जिस संगठन का प्रमुख एक पूरे समाज के खिलाफ बयान देकर विवाद में है, उसी संगठन के कार्यकर्ता एक ऐसे मंदिर की सेवा कर रहे हैं, जिसकी नींव अग्रवाल समाज के दाऊ आनंद अग्रवाल ने राज्य आंदोलन के दिनों में रखी थी। इस रिपोर्ट में विस्तार से पढ़िए कैसे स्थापित हुई थी छत्तीसगढ़ महतारी की पहली प्रतिमा, घड़ी चौक क्यों बना आंदोलन का केंद्र, दाऊ आनंद अग्रवाल की भूमिका क्या थी, क्यों स्थापित करनी पड़ी थी छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा ? अब जानिए छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा स्थापित करने की कहानी ? छत्तीसगढ़ राज्य की मांग भले ही 1918 में उठी हो, लेकिन 1998 के दौर में आंदोलन चरम पर था। यही वो समय था जब राज्य निर्माण का जनआंदोलन पूरे प्रदेश में तेजी से फैला। रायपुर में कलेक्टोरेट, घड़ी चौक और शहर के अन्य बड़े पॉइंट रोज़ाना धरना-प्रदर्शन से भरे रहते थे। आंदोलन की आवाज जितनी सड़कों पर गूंज रही थी, उतनी ही तेजी से लोगों का जुड़ाव भी बढ़ रहा था। इसी दौर में रायपुर के घड़ी चौक धरना-स्थल पर एक ऐसा काम हुआ, जिसने आंदोलन को एक प्रतीक, एक चेहरा दे दिया। दाऊ आनंद कुमार अग्रवाल, जो उस समय अखंड धरना पर बैठे थे। दाऊ आनंद कुमार अग्रवाल ने घड़ी चौक पर छत्तीसगढ़ महतारी की पहली प्रतिमा स्थापित करवाई थी। इसका मकसद सिर्फ एक मूर्ति लगाना नहीं था, बल्कि लोगों को भावनात्मक रूप से आंदोलन से जोड़ना था। छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा आंदोलनकारियों के लिए पहचान, ऊर्जा और एकजुटता का प्रतीक बन गई। घड़ी चौक पर आंदोलन में बैठे रहते थे दाऊ आनंद अग्रवाल इतिहासकार रामेन्द्रनाथ मिश्र बताते हैं कि “छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन के समय घड़ी चौक, आंदोलनकारियों को जोड़ने वाला सबसे बड़ा अड्डा था, क्योंकि वहीं अखंड धरना चलता था। इस आंदोलन में हर व्यक्ति की अपनी भूमिका थी। दाऊ आनंद अग्रवाल भी उनमें से एक थे, जो लगातार धरने पर बैठे रहते थे। मूर्ति से पहले बनी थी छत्तीसगढ़ महतारी की पेंटिंग इतिहासकार मिश्र बताते हैं छत्तीसगढ़ महतारी की पहली तस्वीर साल 1992 में रायपुर के ललित मिश्रा ने बनाई थी। उस समय वे अलग राज्य की मांग के आंदोलन में बतौर छात्र नेता सक्रिय थे। आंदोलन को संगठित करने के लिए उन्होंने ‘आजाद छत्तीसगढ़ फौज’ का गठन भी किया था। मिश्र बताते हैं कि जब वे राज्य निर्माण के समर्थन में लोगों के बीच पहुंचे तो महसूस हुआ कि आंदोलन को भावनात्मक आधार देने के लिए छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक सशक्त दृश्य रूप होना चाहिए। इसी सोच ने उन्हें छत्तीसगढ़ महतारी की पेंटिंग बनाने की प्रेरणा दी। इसके बाद वे रायपुर के गोलबाजार से माता लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती की तस्वीरें लेकर घर आए। उन्हीं तस्वीरों को देखकर करीब पाँच दिन छत्तीसगढ़ महतारी का पहला चित्र तैयार किया। प्रतिमा की स्थापना किसी साधारण तरीके से नहीं हुई थी। इसे विधिवत पूजा-अर्चना के बाद स्थापित किया गया। 'लंगर के सहारे चलता राज्य बनाने का आंदोलन' हेडलाइन का असर वहीं वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी उस दौर को याद करते हुए बताते हैं कि जब वे दिल्ली में दैनिक भास्कर में रिपोर्टिंग कर रहे थे, तभी उन्होंने दाऊ आनंद अग्रवाल के जंतर-मंतर वाले धरने पर एक विशेष रिपोर्ट लिखी थी। खबर की हेडलाइन थी.. “लंगर के सहारे चलता राज्य बनाने का आंदोलन”... चतुर्वेदी बताते हैं जनवरी 2000 में जब ये खबर प्रकाशित हुई, तो इसका असर तुरंत दिखा। छत्तीसगढ़ के कई लोगों ने दिल्ली फोन कर दाऊ को मदद भेजनी शुरू कर दी। मदद न सिर्फ आंदोलन की ताकत बनी, बल्कि इस बात का प्रमाण भी कि राज्य निर्माण की मांग सिर्फ नेताओं की नहीं, बल्कि आम लोगों की भावनाओं से जुड़ी थी। 4 भुजाओं वाली थी छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा- महंत रामसुंदर दास महंत रामसुंदर दास बताते हैं कि घड़ी चौक में स्थापित प्रतिमा चार भुजाओं वाली थी। लंबे समय तक दाऊ आनंद अग्रवाल ने राज्य निर्माण के लिए धरना प्रदर्शन किया। पहली छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा में छत्तीसगढ़ महतारी को पहली भुजा से आशीर्वाद देते हुए, दूसरी भुजा में हंसिया और धान की बालियां दिखाई गई थीं। राज्य बनने के बाद प्रतिमा उपेक्षित हुई, फिर युवाओं ने संभाला काम छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना से जुड़े मनोज कुमार साहू बताते हैं कि 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना, लेकिन घड़ी चौक में लगी पहली महतारी प्रतिमा धीरे-धीरे उपेक्षित हो गई थी, फिर 2021 में कुछ युवाओं की महतारी सेवा रायपुर टीम ने इसकी देखरेख की जिम्मेदारी उठाई। वर्तमान में इस्तेमाल हो रही तस्वीर 2018 में फोटोशॉप पर बनी कवि ईश्वर साहू ‘बंधी’ बताते हैं कि आज सरकार और सोशल मीडिया पर छत्तीसगढ़ महतारी की जो तस्वीर इस्तेमाल हो रही है, वह 2018 में फोटोशॉप के माध्यम से मैंने डिजाइन किया था। वे लंबे समय से छत्तीसगढ़ी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए काम कर रहे हैं। 2022 में कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर सभी शासकीय कार्यालयों और कार्यक्रमों में इस्तेमाल करने की घोषणा की। भूपेश सरकार ने प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर को प्रमुख स्थान देने के लिए फैसला लिया था। आज सभी सरकारी दफ्तरों में छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर दिखाई देती है। छत्तीसगढ राज्य निर्माण आंदोलन में इनकी भी रही भूमिका छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी के संगठन सचिव जागेश्वर प्रसाद बताते हैं कि राज्य निर्माण में सर्व समाज का यो
छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के प्रमुख अमित बघेल ने सिंधी और अग्रवाल समाज को लेकर विवादित टिप्पणी की। इस पर देशभर में बवाल मचा। इस बीच एक दिलचस्प तथ्य ये सामने आया है कि छत्तीसगढ़ महतारी की पहली मूर्ति स्थापित करने वाले कोई और नहीं, बल्कि अग्रवाल समाज के एक शख्स थे। दुर्ग के वर्तमान SP विजय अग्रवाल के पिता आनंद अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ महतारी की पहली मूर्ति घड़ी चौक के पास स्थापित की थी, जो आज मंदिर के रूप में बदल गया है। वर्तमान में इस मंदिर की देखरेख छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के कार्यकर्ता कर रहे हैं। यानी आज जिस संगठन का प्रमुख एक पूरे समाज के खिलाफ बयान देकर विवाद में है, उसी संगठन के कार्यकर्ता एक ऐसे मंदिर की सेवा कर रहे हैं, जिसकी नींव अग्रवाल समाज के दाऊ आनंद अग्रवाल ने राज्य आंदोलन के दिनों में रखी थी। इस रिपोर्ट में विस्तार से पढ़िए कैसे स्थापित हुई थी छत्तीसगढ़ महतारी की पहली प्रतिमा, घड़ी चौक क्यों बना आंदोलन का केंद्र, दाऊ आनंद अग्रवाल की भूमिका क्या थी, क्यों स्थापित करनी पड़ी थी छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा ? अब जानिए छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा स्थापित करने की कहानी ? छत्तीसगढ़ राज्य की मांग भले ही 1918 में उठी हो, लेकिन 1998 के दौर में आंदोलन चरम पर था। यही वो समय था जब राज्य निर्माण का जनआंदोलन पूरे प्रदेश में तेजी से फैला। रायपुर में कलेक्टोरेट, घड़ी चौक और शहर के अन्य बड़े पॉइंट रोज़ाना धरना-प्रदर्शन से भरे रहते थे। आंदोलन की आवाज जितनी सड़कों पर गूंज रही थी, उतनी ही तेजी से लोगों का जुड़ाव भी बढ़ रहा था। इसी दौर में रायपुर के घड़ी चौक धरना-स्थल पर एक ऐसा काम हुआ, जिसने आंदोलन को एक प्रतीक, एक चेहरा दे दिया। दाऊ आनंद कुमार अग्रवाल, जो उस समय अखंड धरना पर बैठे थे। दाऊ आनंद कुमार अग्रवाल ने घड़ी चौक पर छत्तीसगढ़ महतारी की पहली प्रतिमा स्थापित करवाई थी। इसका मकसद सिर्फ एक मूर्ति लगाना नहीं था, बल्कि लोगों को भावनात्मक रूप से आंदोलन से जोड़ना था। छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा आंदोलनकारियों के लिए पहचान, ऊर्जा और एकजुटता का प्रतीक बन गई। घड़ी चौक पर आंदोलन में बैठे रहते थे दाऊ आनंद अग्रवाल इतिहासकार रामेन्द्रनाथ मिश्र बताते हैं कि “छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन के समय घड़ी चौक, आंदोलनकारियों को जोड़ने वाला सबसे बड़ा अड्डा था, क्योंकि वहीं अखंड धरना चलता था। इस आंदोलन में हर व्यक्ति की अपनी भूमिका थी। दाऊ आनंद अग्रवाल भी उनमें से एक थे, जो लगातार धरने पर बैठे रहते थे। मूर्ति से पहले बनी थी छत्तीसगढ़ महतारी की पेंटिंग इतिहासकार मिश्र बताते हैं छत्तीसगढ़ महतारी की पहली तस्वीर साल 1992 में रायपुर के ललित मिश्रा ने बनाई थी। उस समय वे अलग राज्य की मांग के आंदोलन में बतौर छात्र नेता सक्रिय थे। आंदोलन को संगठित करने के लिए उन्होंने ‘आजाद छत्तीसगढ़ फौज’ का गठन भी किया था। मिश्र बताते हैं कि जब वे राज्य निर्माण के समर्थन में लोगों के बीच पहुंचे तो महसूस हुआ कि आंदोलन को भावनात्मक आधार देने के लिए छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक सशक्त दृश्य रूप होना चाहिए। इसी सोच ने उन्हें छत्तीसगढ़ महतारी की पेंटिंग बनाने की प्रेरणा दी। इसके बाद वे रायपुर के गोलबाजार से माता लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती की तस्वीरें लेकर घर आए। उन्हीं तस्वीरों को देखकर करीब पाँच दिन छत्तीसगढ़ महतारी का पहला चित्र तैयार किया। प्रतिमा की स्थापना किसी साधारण तरीके से नहीं हुई थी। इसे विधिवत पूजा-अर्चना के बाद स्थापित किया गया। 'लंगर के सहारे चलता राज्य बनाने का आंदोलन' हेडलाइन का असर वहीं वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी उस दौर को याद करते हुए बताते हैं कि जब वे दिल्ली में दैनिक भास्कर में रिपोर्टिंग कर रहे थे, तभी उन्होंने दाऊ आनंद अग्रवाल के जंतर-मंतर वाले धरने पर एक विशेष रिपोर्ट लिखी थी। खबर की हेडलाइन थी.. “लंगर के सहारे चलता राज्य बनाने का आंदोलन”... चतुर्वेदी बताते हैं जनवरी 2000 में जब ये खबर प्रकाशित हुई, तो इसका असर तुरंत दिखा। छत्तीसगढ़ के कई लोगों ने दिल्ली फोन कर दाऊ को मदद भेजनी शुरू कर दी। मदद न सिर्फ आंदोलन की ताकत बनी, बल्कि इस बात का प्रमाण भी कि राज्य निर्माण की मांग सिर्फ नेताओं की नहीं, बल्कि आम लोगों की भावनाओं से जुड़ी थी। 4 भुजाओं वाली थी छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा- महंत रामसुंदर दास महंत रामसुंदर दास बताते हैं कि घड़ी चौक में स्थापित प्रतिमा चार भुजाओं वाली थी। लंबे समय तक दाऊ आनंद अग्रवाल ने राज्य निर्माण के लिए धरना प्रदर्शन किया। पहली छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा में छत्तीसगढ़ महतारी को पहली भुजा से आशीर्वाद देते हुए, दूसरी भुजा में हंसिया और धान की बालियां दिखाई गई थीं। राज्य बनने के बाद प्रतिमा उपेक्षित हुई, फिर युवाओं ने संभाला काम छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना से जुड़े मनोज कुमार साहू बताते हैं कि 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना, लेकिन घड़ी चौक में लगी पहली महतारी प्रतिमा धीरे-धीरे उपेक्षित हो गई थी, फिर 2021 में कुछ युवाओं की महतारी सेवा रायपुर टीम ने इसकी देखरेख की जिम्मेदारी उठाई। वर्तमान में इस्तेमाल हो रही तस्वीर 2018 में फोटोशॉप पर बनी कवि ईश्वर साहू ‘बंधी’ बताते हैं कि आज सरकार और सोशल मीडिया पर छत्तीसगढ़ महतारी की जो तस्वीर इस्तेमाल हो रही है, वह 2018 में फोटोशॉप के माध्यम से मैंने डिजाइन किया था। वे लंबे समय से छत्तीसगढ़ी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए काम कर रहे हैं। 2022 में कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर सभी शासकीय कार्यालयों और कार्यक्रमों में इस्तेमाल करने की घोषणा की। भूपेश सरकार ने प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर को प्रमुख स्थान देने के लिए फैसला लिया था। आज सभी सरकारी दफ्तरों में छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर दिखाई देती है। छत्तीसगढ राज्य निर्माण आंदोलन में इनकी भी रही भूमिका छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी के संगठन सचिव जागेश्वर प्रसाद बताते हैं कि राज्य निर्माण में सर्व समाज का योगदान रहा है। राज्य निर्माण का आंदोलन करने वालों में छत्तीसगढ़ी समाज का नाम प्रमुख है। इन्होंने 16 मई 1965 को छत्तीसगढ़ राज्य बनाने की नींव रखी। 1965 रायपुर के आरडी तिवारी स्कूल में प्रथम छत्तीसगढ़ी अधिवेशन आयोजित हुआ था। इसमें छत्तीसगढ़ को अलग आंदोलन बनाने के लिए राज्य आंदोलन की औपचारिक शुरुआत हुई। इसके बाद 1967 में रायपुर के ईदगाह भाटा में बड़ा सम्मेलन हुआ। राज्य की मांग के समर्थन में 5000 लोगों के हस्ताक्षर जुटाए गए थे जागेश्वर प्रसाद बताते हैं कि इसमें आचार्य नरेंद्र दुबे और रामानंद शुक्ल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ राज्य की मांग के समर्थन में 5000 लोगों के हस्ताक्षर जुटाए गए थे। 1970 के बाद छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन जनक्रांति बन गया। हर गांव और मुख्यालयों में धरने, रैलियां का सिलसिला निरंतर चलता रहा। जागेश्वर प्रसाद बताते हैं कि 1978 में रायपुर जयस्तंभ चौक पर रैली में 10–15 हजार लोग शामिल हुए थे। 1979 छत्तीसगढ़ी वाहिनी’ का गठन किया गया। भोपाल विधानसभा से लेकर दिल्ली में संसद का घेराव किया गया था। अब पढ़िए छत्तीसगढ़ महतारी की मूर्ति से जुड़े विवाद दरअसल, रायपुर के VIP चौक पर छत्तीसगढ़ महतारी की मूर्ति से तोड़फोड़ की गई। 26 अक्टूबर को छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना मौके पर पहुंची और जमकर हंगामा किया। इस दौरान क्रांति सेना और पुलिसकर्मियों के बीच झड़प भी देखने को मिली। इस हंगामे के बाद, 27 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ महतारी की मूर्ति दोबारा स्थापित कर दी गई। पुलिस ने इसी दिन सुबह राम मंदिर के पास से आरोपी को भी गिरफ्तार कर लिया। जांच में पता चला कि आरोपी मानसिक रूप से बीमार था और उसने नशे में मूर्ति तोड़ी थी। अब जानिए क्रांति सेना प्रमुख के बयान पर क्यों मचा बवाल ? छत्तीसगढ़ महतारी की मूर्ति तोड़ने पर छत्तीसगढ़ क्रांति सेना और जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी के प्रमुख ने कहा था कि कौन है अग्रसेन महाराज, चोर है या झूठा है। पाकिस्तानी सिंधी क्या जानते हैं। मछली वाले भगवान के बारे में। उन्होंने हमारी छत्तीसगढ़ी महतारी के गर्दन को काटकर अपमान किया है। इससे पहले भी जैन संतों के खिलाफ विवादित बयान देने वाले छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना के प्रदेश अध्यक्ष अमित बघेल की गिरफ्तारी हुई थी। अमित बघेल हसदेव फारेस्ट मामले में सरगुजा दौरे पर थे। इसी दौरान बालोद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया गया था। रायपुर समेत देशभर में सिंधी-अग्रवाल समाज ने किया था प्रदर्शन अग्रवाल समाज ने धर्म गुरुओं के खिलाफ दिए गए आपत्तिजनक बयान के खिलाफ रायपुर के अग्रसेन चौक पर चक्काजाम किया। वहीं, कटोरा तालाब स्थित झूलेलाल धाम में बड़ी संख्या में सिंधी समाज के लोग इकट्ठे हुए। क्रांति सेना की गिरफ्तारी की मांग की थी। देशभर में बवाल मचा। अमित बघेल के खिलाफ रायपुर के अलावा छत्तीसगढ़ और देश के अलग-अलग थानों में FIR दर्ज है। इनमें रायपुर, दुर्ग, धमतरी, इंदौर, ग्वालियर, नोएडा, महाराष्ट्र और प्रयागराज शामिल है। अग्रवाल समाज और सिंधी समाज ने रायपुर के अलग-अलग थानों में FIR दर्ज कराई है। पुलिस ने 5OOO का इनाम भी रखा है। अब छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा और मंदिर से जुड़ी कुछ तस्वीरें देखिए