छत्तीसगढ़ में जन्मी दुनिया की सबसे छोटी गाय पुंगनूर:आर्टिफिशियल-इनसेमिनेशन से जन्म; ₹2000/लीटर बिकता है दूध, PM मोदी के पास भी इसी नस्ल की गायें

छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में कृत्रिम गर्भाधान (AI) प्रक्रिया से पुंगनूर नस्ल की मादा बछिया का जन्म हुआ है। बछिया को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही है। इस नस्ल की गाय को दुनिया की सबसे छोटी गाय के रूप में जाना जाता है। यही नस्ल की गाय PM नरेंद्र मोदी के पास भी है। जानकारी के मुताबिक, गोढ़ीकला और ग्राम करमीटिकरा–करूमहुआ गांव में 1 नवंबर को एक बछिया का जन्म हुआ है। पशुपालक का नाम खगेश्वर यादव है। खगेश्वर का कहना है कि उन्होंने PM मोदी के पास इसी नस्ल की गाय देखी थी। इसके बाद उन्होंने अपनी देशी गाय में ब्रीडिंग कराई थी। पुंगनूर नस्ल की गाय 17 से 24 इंच (3 फीट) लंबी होती है। इन गायों की कीमत 2 से 10 लाख के करीब होती है। ये गाय 5 लीटर तक दूध देती हैं। इनके दूध की कीमत 1000 रुपए तक है, जबकि घी 50 हजार रुपए प्रति किलो तक बेचा जाता है। अब पुंगनूर नस्ल की गाय की ये 3 तस्वीरें देखिए... सबसे पहले जानिए कैसे जन्मी ये बछिया ? पशुपालक खगेश्वर यादव बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के यहां छोटी-छोटी नस्ल की गायों का वीडियो देखा था। इसके बाद उन्होंने इस नस्ल की गाय को अपने गांव में पालने का मन बनाया। उन्होंने इसके लिए पत्थलगांव पशु चिकित्सालय के पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी केके पटेल से मुलाकात की। खगेश्वर ने पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी से बताया कि वह पुंगनूर नस्ल की गाय पालना चाहता है। ऐसी गाय हमारे गांव में भी होनी चाहिए। वह पहले से गाय पाल रहे हैं। उनके बकरियां भी हैं, लेकिन पुंगनूर नस्ल की गाय भी पालना है। कृत्रिम गर्भाधान तरीका अपनाया गया जशपुर के पशु चिकित्सा अधिकारी केके पटेल ने बताया कि पशुपालक की मांग पर कोशिश की गई। इस दौरान पता चला कि यह नस्ल मुख्य रूप से तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है। इसे सीधे लाना महंगा पड़ता, इसलिए नई तकनीक आर्टिफिशियल-इनसेमिनेशन यानि कृत्रिम गर्भाधान का तरीका अपनाया गया। इसके लिए एक निजी संस्था से पुंगनूर नस्ल के सांड का सीमेन लिया गया। कृत्रिम गर्भाधान 29 जनवरी 2025 को कराया गया था। इसी सीमेन से कृत्रिम गर्भाधान से लगभग 284 दिनों बाद 11 नवंबर 2025 की सुबह गाय ने पुंगनूर नस्ल की बछिया को जन्म दिया। पशुपालक खगेश्वर यादव को मिला सम्मान वहीं पशु चिकित्सक डॉ. बीपी भगत ने सहायक पशु चिकित्सा अधिकारी केके पटेल और पशुपालक खगेश्वर यादव को शाल और श्रीफल देकर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि सिर्फ पत्थलगांव के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे जशपुर जिले के लिए गर्व की बात है। डॉ. बीपी भगत ने बताया कि पुंगनूर गाय का स्वभाव बहुत ही शांत और स्नेही होता है। इसे पालना आसान है। लोग इसे घर में साथी पशु के रूप में भी रखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पुंगनूर गाय को अपनाने के बाद इसकी लोकप्रियता और बढ़ गई है। पुंगनूर गाय से जुड़ी धार्मिक मान्यता धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अमृत प्राप्ति के लिए जब देव और दावनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था तो अमृत निकलने से पहले कई दुर्लभ चीजें भी उसमें से निकली थी। उसमें से एक सुरभि गाय भी निकली थी। इसे कामधेनु भी कहा जाता है। आंध्र के लोगों का मानना है कि पुंगनूर वही सुरभि गाय है। उस समय इसकी ऊंचाई दस फीट थी जो समय काल के प्रभाव से छोटी हो गई है। वैदिक काल में जब विश्वामित्र राजा थे तो उन्होंने ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु को हड़पने के लिए युद्ध किया था। युद्ध में ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु ने मदद की थी। इसके कारण राजा विश्वामित्र हार गए थे। इसी के दूध से तिरुपति बालाजी काे अभिषेक किया जाता है। इसे क्षीराभिषेकम कहा जाता है। अब जानिए किस राज्य में कौन-कौन से गायें होती हैं ? गओलाओ (महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश) गओलाओ नस्ल नागपुर, छिंदवाड़ा और वर्धा में पाई जाती है। इनका शरीर मध्यम आकार का और रंग सफेद से सलेटी होता है। इसका सिर लंबा, मध्यम आकार के कान और छोटे सींग होते हैं। इस गाय के दूध में 4.32 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है। खेरीगढ़ (उत्तर प्रदेश) इस प्रजाति के गोवंश उत्तर प्रदेश के खेरीगढ़ क्षेत्र में पाए जाते हैं। गायों के शरीर का रंग सफेद होता है। इनके सींग बड़े होते है। इस नस्ल के बैल फुर्तीले होते हैं। इस नस्ल की गायें कम दूध देती हैं। खिलारी (महाराष्ट्र और कर्नाटक) इस नस्ल का मूल स्थान महाराष्ट्र और कर्नाटक है। यह पश्चिमी महाराष्ट्र में भी पाई जाती हैं। इस प्रजाति के गोवंश का रंग खाकी, सिर बड़ा, सींग लम्बे और पूंछ छोटी होती है। खिल्लारी प्रजाति के बैल काफी शक्तिशाली होते हैं। इस नस्ल के नर का औसतन भार 450 किलो और गाय का औसतन भार 360 किलो होता है। इसके दूध में वसा लगभग 4.2 प्रतिशत होता है। कृष्णा वैली (कर्नाटक) कृष्णा वैली उत्तरी कर्नाटक की देसी नस्ल है। यह सफेद रंग की होती है। इस नस्ल के सींग छोटे, शरीर छोटा, टांगें छोटी और मोटी होती है। यह एक ब्यांत में औसतन 900 किलो दूध देती है। मालवी (मध्यप्रदेश) मालवी प्रजाति के बैलों का उपयोग खेती तथा सड़कों पर हल्की गाड़ी खींचने के लिए किया जाता है। इनका रंग लाल, खाकी तथा गर्दन काले रंग की होती है। इस नस्ल की गायें दूध कम देती हैं। मध्यप्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में यह नस्ल पाई जाती है। मेवाती (राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश) मेवाती प्रजाति की गाय सीधे-सीधे तथा कृषि कार्य हेतु उपयोगी होते हैं। इस नस्ल की गाय काफी दुधारू होती हैं। इनमें गिर जाति के लक्षण पाए जाते हैं तथा पैर कुछ ऊंचे होते हैं। यह नस्ल राजस्थान के भरतपुर और अलवर जिले, हरियाणा के फरीदाबाद और गुड़गांव जिले और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले तक फैली हुई है। इसका रंग मुख्य तौर पर सफेद होता है। यह नस्ल एक ब्यांत में औसतन 958 किलो दूध देती है। नागोरी (राजस्थान) इस नस्ल की गाय राजस्थान के नागौर जिले में पाई जाती है। इस नस्ल के बैल भारवाहक क्षमता के विशेष गुण के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध है। निमाड़ी (मध्यप्रदेश) निमाड़ी का मूल स्थान मध्यप्रदेश है। इसका रंग हल्का लाल, सफेद, लाल, हल्का

Nov 16, 2025 - 06:40
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छत्तीसगढ़ में जन्मी दुनिया की सबसे छोटी गाय पुंगनूर:आर्टिफिशियल-इनसेमिनेशन से जन्म; ₹2000/लीटर बिकता है दूध, PM मोदी के पास भी इसी नस्ल की गायें
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में कृत्रिम गर्भाधान (AI) प्रक्रिया से पुंगनूर नस्ल की मादा बछिया का जन्म हुआ है। बछिया को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही है। इस नस्ल की गाय को दुनिया की सबसे छोटी गाय के रूप में जाना जाता है। यही नस्ल की गाय PM नरेंद्र मोदी के पास भी है। जानकारी के मुताबिक, गोढ़ीकला और ग्राम करमीटिकरा–करूमहुआ गांव में 1 नवंबर को एक बछिया का जन्म हुआ है। पशुपालक का नाम खगेश्वर यादव है। खगेश्वर का कहना है कि उन्होंने PM मोदी के पास इसी नस्ल की गाय देखी थी। इसके बाद उन्होंने अपनी देशी गाय में ब्रीडिंग कराई थी। पुंगनूर नस्ल की गाय 17 से 24 इंच (3 फीट) लंबी होती है। इन गायों की कीमत 2 से 10 लाख के करीब होती है। ये गाय 5 लीटर तक दूध देती हैं। इनके दूध की कीमत 1000 रुपए तक है, जबकि घी 50 हजार रुपए प्रति किलो तक बेचा जाता है। अब पुंगनूर नस्ल की गाय की ये 3 तस्वीरें देखिए... सबसे पहले जानिए कैसे जन्मी ये बछिया ? पशुपालक खगेश्वर यादव बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के यहां छोटी-छोटी नस्ल की गायों का वीडियो देखा था। इसके बाद उन्होंने इस नस्ल की गाय को अपने गांव में पालने का मन बनाया। उन्होंने इसके लिए पत्थलगांव पशु चिकित्सालय के पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी केके पटेल से मुलाकात की। खगेश्वर ने पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी से बताया कि वह पुंगनूर नस्ल की गाय पालना चाहता है। ऐसी गाय हमारे गांव में भी होनी चाहिए। वह पहले से गाय पाल रहे हैं। उनके बकरियां भी हैं, लेकिन पुंगनूर नस्ल की गाय भी पालना है। कृत्रिम गर्भाधान तरीका अपनाया गया जशपुर के पशु चिकित्सा अधिकारी केके पटेल ने बताया कि पशुपालक की मांग पर कोशिश की गई। इस दौरान पता चला कि यह नस्ल मुख्य रूप से तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है। इसे सीधे लाना महंगा पड़ता, इसलिए नई तकनीक आर्टिफिशियल-इनसेमिनेशन यानि कृत्रिम गर्भाधान का तरीका अपनाया गया। इसके लिए एक निजी संस्था से पुंगनूर नस्ल के सांड का सीमेन लिया गया। कृत्रिम गर्भाधान 29 जनवरी 2025 को कराया गया था। इसी सीमेन से कृत्रिम गर्भाधान से लगभग 284 दिनों बाद 11 नवंबर 2025 की सुबह गाय ने पुंगनूर नस्ल की बछिया को जन्म दिया। पशुपालक खगेश्वर यादव को मिला सम्मान वहीं पशु चिकित्सक डॉ. बीपी भगत ने सहायक पशु चिकित्सा अधिकारी केके पटेल और पशुपालक खगेश्वर यादव को शाल और श्रीफल देकर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि सिर्फ पत्थलगांव के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे जशपुर जिले के लिए गर्व की बात है। डॉ. बीपी भगत ने बताया कि पुंगनूर गाय का स्वभाव बहुत ही शांत और स्नेही होता है। इसे पालना आसान है। लोग इसे घर में साथी पशु के रूप में भी रखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पुंगनूर गाय को अपनाने के बाद इसकी लोकप्रियता और बढ़ गई है। पुंगनूर गाय से जुड़ी धार्मिक मान्यता धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अमृत प्राप्ति के लिए जब देव और दावनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था तो अमृत निकलने से पहले कई दुर्लभ चीजें भी उसमें से निकली थी। उसमें से एक सुरभि गाय भी निकली थी। इसे कामधेनु भी कहा जाता है। आंध्र के लोगों का मानना है कि पुंगनूर वही सुरभि गाय है। उस समय इसकी ऊंचाई दस फीट थी जो समय काल के प्रभाव से छोटी हो गई है। वैदिक काल में जब विश्वामित्र राजा थे तो उन्होंने ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु को हड़पने के लिए युद्ध किया था। युद्ध में ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु ने मदद की थी। इसके कारण राजा विश्वामित्र हार गए थे। इसी के दूध से तिरुपति बालाजी काे अभिषेक किया जाता है। इसे क्षीराभिषेकम कहा जाता है। अब जानिए किस राज्य में कौन-कौन से गायें होती हैं ? गओलाओ (महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश) गओलाओ नस्ल नागपुर, छिंदवाड़ा और वर्धा में पाई जाती है। इनका शरीर मध्यम आकार का और रंग सफेद से सलेटी होता है। इसका सिर लंबा, मध्यम आकार के कान और छोटे सींग होते हैं। इस गाय के दूध में 4.32 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है। खेरीगढ़ (उत्तर प्रदेश) इस प्रजाति के गोवंश उत्तर प्रदेश के खेरीगढ़ क्षेत्र में पाए जाते हैं। गायों के शरीर का रंग सफेद होता है। इनके सींग बड़े होते है। इस नस्ल के बैल फुर्तीले होते हैं। इस नस्ल की गायें कम दूध देती हैं। खिलारी (महाराष्ट्र और कर्नाटक) इस नस्ल का मूल स्थान महाराष्ट्र और कर्नाटक है। यह पश्चिमी महाराष्ट्र में भी पाई जाती हैं। इस प्रजाति के गोवंश का रंग खाकी, सिर बड़ा, सींग लम्बे और पूंछ छोटी होती है। खिल्लारी प्रजाति के बैल काफी शक्तिशाली होते हैं। इस नस्ल के नर का औसतन भार 450 किलो और गाय का औसतन भार 360 किलो होता है। इसके दूध में वसा लगभग 4.2 प्रतिशत होता है। कृष्णा वैली (कर्नाटक) कृष्णा वैली उत्तरी कर्नाटक की देसी नस्ल है। यह सफेद रंग की होती है। इस नस्ल के सींग छोटे, शरीर छोटा, टांगें छोटी और मोटी होती है। यह एक ब्यांत में औसतन 900 किलो दूध देती है। मालवी (मध्यप्रदेश) मालवी प्रजाति के बैलों का उपयोग खेती तथा सड़कों पर हल्की गाड़ी खींचने के लिए किया जाता है। इनका रंग लाल, खाकी तथा गर्दन काले रंग की होती है। इस नस्ल की गायें दूध कम देती हैं। मध्यप्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में यह नस्ल पाई जाती है। मेवाती (राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश) मेवाती प्रजाति की गाय सीधे-सीधे तथा कृषि कार्य हेतु उपयोगी होते हैं। इस नस्ल की गाय काफी दुधारू होती हैं। इनमें गिर जाति के लक्षण पाए जाते हैं तथा पैर कुछ ऊंचे होते हैं। यह नस्ल राजस्थान के भरतपुर और अलवर जिले, हरियाणा के फरीदाबाद और गुड़गांव जिले और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले तक फैली हुई है। इसका रंग मुख्य तौर पर सफेद होता है। यह नस्ल एक ब्यांत में औसतन 958 किलो दूध देती है। नागोरी (राजस्थान) इस नस्ल की गाय राजस्थान के नागौर जिले में पाई जाती है। इस नस्ल के बैल भारवाहक क्षमता के विशेष गुण के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध है। निमाड़ी (मध्यप्रदेश) निमाड़ी का मूल स्थान मध्यप्रदेश है। इसका रंग हल्का लाल, सफेद, लाल, हल्का जामुनी होता है। इसकी चमड़ी हल्की और ढीली, माथा उभरा हुआ, शरीर भारा, सींग तीखे, कान चौड़े और सिर लंबा होता है। इस गाय के दूध में वसा 4.9 प्रतिशत होता है। अंगोल (आंध्रप्रदेश) अंगोल प्रजाति तमिलनाडु के अंगोल क्षेत्र में पाई जाती है। इस जाति के बैल भारी बदन के और ताकतवर होते हैं। इनका शरीर लम्बा, किन्तु गर्दन छोटी होती है। यह प्रजाति सूखा चारा खाकर भी जीवन निर्वाह कर सकती है। इस नस्ल के ऊपर ब्राजील में काम कर रही है। पोंवर (उत्तर प्रदेश) इस नस्ल के गोवंश उत्तर प्रदेश के रुहेलखण्ड में पाए जाते हैं। इनके सींगों की लम्बाई 12 से 18 इंच तक होती है। इनकी पूंछ लम्बी होती है। इनके शरीर का रंग काला और सफेद होता है। यह गाय कम दूध देती है। पुंगनूर (आंध्रप्रदेश) पुंगनूर का मूल स्थान आंध्रप्रदेश का चितूर जिला है। इस नस्ल के पशु छोटे आकार के होते हैं, इनका शरीर सफेद रंग और खाल हल्के भूरे रंग का होता है। इनके सींग छोटे और मुड़े हुए होते हैं। इस नस्ल की मादा का औसतन भार 115 किलो और नर का औसतन भार 225 किलो होता है। राठी (राजस्थान) भारतीय राठी गाय की नस्ल ज्यादा दूध देने के लिए जानी जाती है। राठी नस्ल का राठी नाम राठस जनजाति के नाम पर पड़ा। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में पाई जाती हैं। यह गाय प्रतिदन 6 -8 लीटर दूध देती है। रेड कंधारी (महाराष्ट्र) रेड कंधारी महाराष्ट्र के नांदेड़, परभनी, अहमदनगर, बीड और लातूर जिले में पाई जाती है। इनका रंग हल्का लाल या भूरा होता है। इसके सींग टेढ़े, माथा चौड़ा, कान लंबे, होते हैं। इस नस्ल के नर का औसतन कद 1138 से.मी. और मादा का औसतन कद 128 से.मी. होता है। लाल सिंधी प्रजाति: ( पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु) लाल रंग की इस गाय को अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। लाल रंग होने के कारण इनका नाम लाल सिंधी गाय पड़ गया। यह गाय पहले सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थी। लेकिन अब यह गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पाई जाती हैं। इनकी संख्या भारत में काफी कम है। साहिवाल गायों की तरह लाल सिंधी गाय भी सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं। साहीवाल (पंजाब और राजस्थान) साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। यह गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं, जिसकी वजह से दुग्ध व्यवसायी इन्हें काफी पसंद करते हैं। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं। सीरी (सिक्किम और भूटान) इस नस्ल के गोवंश दार्जिलिंग के पर्वतीय प्रदेश, सिक्किम एवं भूटान में पाए जाते हैं। इनका मूल स्थान भूटान है। ये प्राय: काले और सफेद अथवा लाल और सफेद रंग की होती हैं। सीरी जाति के पशु देखने में भारी होते हैं। गंगातीरी (उत्तर प्रदेश और बिहार) गंगातीरी नस्ल उत्तर प्रदेश और बिहार में पाई जाती है। यह मध्यम आकार की होती है। इसके दूध में 4.1-5.2 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है। थारपारकर (राजस्थान) यह गाय राजस्थान में जोधपुर और जैसलमेर में मुख्य रूप से पाई जाती है। थारपारकर गाय का उत्पत्ति स्थल 'मालाणी' (बाड़मेर) है। इस नस्ल की गाय भारत की सर्वश्रेष्ठ दुधारू गायों में गिनी जाती है। राजस्थान के स्थानीय भागों में इसे 'मालाणी नस्ल' के नाम से जाना जाता है। थारपारकर गोवंश के साथ प्राचीन भारतीय परम्परा के मिथक भी जुड़े हुए हैं। उम्ब्लाचेरी (तमिलनाडु) तमिलनाडु के थिरूवारूर और नागापटीनम जिले में यह नस्ल पाई जाती है। इनका माथा चौड़ा होता है। इस नस्ल के नर का औसतन कद 135 से.मी. और मादा का औसतन कद 105 से.मी. होता है। इस नस्ल की गाय के दूध में वसा 4.9 प्रतिशत तक होती है। वेचुर (केरल) वेचूर प्रजाति के गोवंश पर रोगों का कम से कम प्रभाव पड़ता है। इस जाति के गोवंश कद में छोटे होते हैं। इस नस्ल की गायों के दूध में सर्वाधिक औषधीय गुण होते हैं। इस जाति के गोवंश को बकरी से भी आधे खर्च में पाला जा सकता है। मोतू (ओडिशा,छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश) ओडिशा, छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश में यह नस्ल पाई जाती है। इनका रंग भूरा, सलेटी और सफेद होता है। इनके शरीर का आकार छोटा, सींग सीधे, पूंछ काली और खुर काले रंग के होते हैं। इस नस्ल की गाय के दूध में वसा 4.8-5.3 प्रतिशत होती है। घुमुसरी (ओडिशा) घुमुसरी का मूल स्थान ओडिशा है। इनका रंग सफेद या भूरे रंग का होता हैं। इनके सींग मध्यम आकार के होते हैं जो ऊपर और अंदर की तरफ को मुड़े होते हैं। इस गाय की पहली बार मां बनने की उम्र 42 महीने होनी चाहिए। इसके दूध में वसा 4.8- 4.9 प्रतिशत तक होता है। न्झार्पुरी (ओडिशा) यह नस्ल ओडिशा के भदरक और केंद्रापारा जिले में पाई जाती है। इनका रंग सफेद होता है, पर यह काले, भूरे या सलेटी रंग में भी मिल सकती है। इस नस्ल के सींग काले और मध्यम आकार के होते हैं, जो ऊपर की तरफ मुड़े होते हैं। इसके दूध में वसा 4.3-4.4 प्रतिशत होती है। खरिअर (ओडिशा) खरिअर ओडिशा के नुआपाड़ा जिले की नस्ल है। यह छोटे आकार की होती है। इसके सींग सीधे, कमर और चेहरे का कुछ हिस्सा गहरे काले रंग का होता है। इस नस्ल की गाय के दूध में वसा 4-5 प्रतिशत होती है। कोसली (छत्तीसगढ़) कोसली नस्ल की गायें भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में पाई जाती हैं। इसका प्रमुख निवास स्थान छत्तीसगढ़ राज्य के मैदानी जिले जैसे रायपुर, राजनांदगांव, दुर्ग और बिलासपुर हैं। इनका आकार छोटा होता हैं। एक मादा का वजन 160-200 किग्रा और नर का वजन 200-300 किग्रा तक होता है। कोसली नस्ल की गायों के सींग छोटे आकार के होते हैं। बद्री (उत्तराखंड) बद्री गाय केवल पहाड़ी जिलों में पाई जाती है और पहले इसे 'पहाड़ी' गाय के रूप में जाना जाता था। इनका रंग भूरा, लाल, सफ़ेद होता है। इनके कान छोटे से मध्यम आकार की लम्बाई के होते हैं और इनकी गर्दन छोटी एवं पतली होती है। बद्री गायों का प्रतिदिन औसत दुग्ध उत्पादन लगभग 1.12 किग्रा है, लेकिन कुछ गायें 6.9 किग्रा तक दूध का उत्पादन करती हैं। इनका दुग्धकाल 275 दिनों का होता है। इन सब के अलावा जम्मू और कश्मीर की लद्दाखी गाय, असम की लखीमी, महाराष्ट्र और गोवा की कोंकण कपिला, हरियाणा और चंडीगढ़ की बिलाही, कर्नाटक की मल्नाद गिद्दा, तमिलनाडु की पुल्लिकुलम भी रजिस्टर्ड है। ............................... ये भी खबर भी पढ़ें कोरबा में मिली चार आंखों वाली मछली:असामान्य रूप से बड़ा है मछली का मुंह; ग्रामीणों ने तालाब में छोड़ा छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में 4 आंखों वाली मछली देखने को मिली है। हरदी बाजार स्थित सराई सिंगार गांव में इस मछली के मिलने से हलचल मच गई। 30 जून को राधा सागर तालाब में स्थानीय निवासी भंगू निर्मलकर को नहाते समय यह विचित्र मछली मिली। इस मछली का मुंह असामान्य रूप से बड़ा है। पढ़ें पूरी खबर...