दिवाली से पहले दीये के दामों को लेकर परेशान कुम्हार:बोले- खर्चा बढ़ा लेकिन दाम कम मिल रहे, लोग आर्टिफिशियल दीये पसंद कर रहे
दिवाली से पहले दीये के दामों को लेकर परेशान कुम्हार:बोले- खर्चा बढ़ा लेकिन दाम कम मिल रहे, लोग आर्टिफिशियल दीये पसंद कर रहे
दतिया में कारीगर दिवाली से पहले दीये बनाने में जुट गए हैं। बढ़ती मंहगाई में भी दीयों के सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं। कारीगरों का कहना है कि, पहले की तरह ही उन्हें 20 रुपए में 20 या 18 दीये बेचने पड़ेंगे, नहीं तो लोग लेते नहीं है। ऐसे में मेहनताना भी निकलना मुश्किल है। लोग आर्टिफिशियल दीये पसंद करने लगे हैं। कारीगर नीरज प्रजापति ने बताया कि, दतिया और आसपास के क्षेत्र में मिट्टी नहीं मिलने से हम लोगों को बाहर से मिट्टी लानी पड़ती है। पहले दतिया में ही मिट्टी उपलब्ध हो जाती थी। लेकिन अब नहीं मिल पाती। जिससे मेहनत तो बढ़ गई। मुनाफा बढ़कर नहीं मिल रहा है। अभी फिलहाल में एक हजार दीये तैयार कर लिए हैं। जिन्हें बाजार में जाकर बेचा जाएगा। पहले हाथों से चाक घुमाकर बनाते थे। लेकिन अब बिजली का उपयोग करके मोटर पर बनी चाक से दीये बनाते हैं। वही मुकेश प्रजापति का कहना है कि, जिस हिसाब से अन्य सामग्री पर मंहगाई बढ़ी है, वैसे ही मिट्टी की सामग्री के दामों में बढ़ोत्तरी हुई है। हम लोगों को आज भी पहले की तरह दाम मिल रहे हैं। ग्वालियर और झांसी से आ रहे आर्टिफिशियल दिये
कारीगर रामबाबू प्रजापति का कहना है कि, बाजार में सामग्री बेचने वाले दुकानदार ग्वालियर और झांसी जैसे महानगरों से आर्टिफिशियल दीये मंगवाते हैं। जो 5 रुपए से लेकर 10 रुपए तक का बिकता है। यह दिये स्थानीय दीयों से मंहगे बिकते हैं। लेकिन लोग आर्टिफिशियल दीयों को ही ज्यादा पसंद करने लगे है।
दतिया में कारीगर दिवाली से पहले दीये बनाने में जुट गए हैं। बढ़ती मंहगाई में भी दीयों के सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं। कारीगरों का कहना है कि, पहले की तरह ही उन्हें 20 रुपए में 20 या 18 दीये बेचने पड़ेंगे, नहीं तो लोग लेते नहीं है। ऐसे में मेहनताना भी निकलना मुश्किल है। लोग आर्टिफिशियल दीये पसंद करने लगे हैं। कारीगर नीरज प्रजापति ने बताया कि, दतिया और आसपास के क्षेत्र में मिट्टी नहीं मिलने से हम लोगों को बाहर से मिट्टी लानी पड़ती है। पहले दतिया में ही मिट्टी उपलब्ध हो जाती थी। लेकिन अब नहीं मिल पाती। जिससे मेहनत तो बढ़ गई। मुनाफा बढ़कर नहीं मिल रहा है। अभी फिलहाल में एक हजार दीये तैयार कर लिए हैं। जिन्हें बाजार में जाकर बेचा जाएगा। पहले हाथों से चाक घुमाकर बनाते थे। लेकिन अब बिजली का उपयोग करके मोटर पर बनी चाक से दीये बनाते हैं। वही मुकेश प्रजापति का कहना है कि, जिस हिसाब से अन्य सामग्री पर मंहगाई बढ़ी है, वैसे ही मिट्टी की सामग्री के दामों में बढ़ोत्तरी हुई है। हम लोगों को आज भी पहले की तरह दाम मिल रहे हैं। ग्वालियर और झांसी से आ रहे आर्टिफिशियल दिये
कारीगर रामबाबू प्रजापति का कहना है कि, बाजार में सामग्री बेचने वाले दुकानदार ग्वालियर और झांसी जैसे महानगरों से आर्टिफिशियल दीये मंगवाते हैं। जो 5 रुपए से लेकर 10 रुपए तक का बिकता है। यह दिये स्थानीय दीयों से मंहगे बिकते हैं। लेकिन लोग आर्टिफिशियल दीयों को ही ज्यादा पसंद करने लगे है।