अब तो ये हमारे घर के सदस्य जैसी हो गई है। इसे हम खुला भी छोड़ देते हैं तो कभी हमारे बेडरूम में तो कभी कमरे के किसी कोने में बैठी रहती है। वह हमारे घर की ‘बच्ची’ जैसी ही है इंदौर के रहने वाले जगन कोहली जिस ‘बच्ची’ की बात कर रहे हैं, वह इंसान नहीं बल्कि एक सफेद रंग की फीमेल पायथन यानी अजगर है। उनके पास एक नहीं बल्कि दो फीमेल पायथन है, जिन्हें वह यूके (UK) से लेकर आए हैं। कोहली जिस फीमेल पायथन को पाल रहे हैं, वह एग्जॉटिक एनिमल यानी विदेशी नस्ल के दुर्लभ प्रजाति की कैटेगरी में आते हैं। एग्जॉटिक एनिमल को घर में पालने वाले जगन कोहली अकेले नहीं है। मध्यप्रदेश के ऐसे 150 घरों में एग्जॉटिक एनिमल्स रह रहे हैं। इनमें दो से तीन फीट की विदेशी छिपकलियां इगुआना, 10 से 15 सेंटीमीटर की बड़ी मकड़ियां टोरंटयुला और खतरा भांपकर गेंद की तरह सिकुड़ जाने वाले बाल पायथन तक है। दरअसल, एग्जॉटिक एनिमल को पालना या रखना अब गैरकानूनी नहीं है। केंद्र सरकार ने इन्हें पालने की इजाजत दी है, मगर इनके बारे में सरकार को सूचना देना जरूरी है। इसके लिए बाकायदा एक पोर्टल बनाया गया है। मप्र में किस तरह से एग्जॉटिक एनिमल्स इनके मालिकों के घर का अहम हिस्सा बन चुके हैं। पढ़िए रिपोर्ट अब सिलसिलेवार जानिए किसके पास कौन से एग्जॉटिक एनिमल हैं तीन मंजिला मकान में रहते हैं 70 पक्षी
राजधानी भोपाल के कोलार में रहने वाले शेखर लिखार, एक्साइज ऑफिसर हैं। भास्कर की टीम जब उनके घर पहुंची तो घर में चारों तरफ पक्षियों की चहचहाट सुनाई दे रही थी। उनके पास 70 से ज्यादा विदेशी नस्ल के पक्षी हैं। शेखर ने अपने घर के पास ही 1500 स्क्वायर फीट जमीन पर पक्षियों के लिए तीन मंजिला मकान बनाया हुआ है। मकान के फर्स्ट फ्लोर पर बड़े पक्षियों के रहने के लिए जगह बनाई है। सेकेंड फ्लोर पर शेड डालकर छोटे बर्ड्स के लिए कमरे के आकार के पिंजरे बनाए हैं। पक्षियों के साथ शुरू हुई उनकी इस जर्नी को लेकर शेखर कहते हैं -’जब मैं छोटा था तब पिताजी बजरी पक्षी, जिसे सामान्य भाषा में लव बर्ड कहते हैं उसका जोड़ा लेकर आए थे। यहीं से पक्षियों को लेकर मेरा अट्रैक्शन बढ़ता गया। इसके बाद हमारे घर में अफ्रीकन लव बर्ड्स आए।’ वे बताते हैं कि साल 2007 में जब पिताजी रिटायर हुए और उन्होंने खुद का घर बनाया तो कॉकटेल पैरेट भी घर में आ गए। इसके बाद तो मेरा पक्षियों के प्रति प्रेम बढ़ता गया। उनसे पूछा कि इनकी देखभाल कौन करता है तो शेखर ने कहा- मां और मैं दोनों मिलकर इनकी देखभाल करते हैं। मेरी बेटी को भी दिलचस्पी है। मगर, मैं उस पर प्रेशर नहीं डालता। मैंने उससे कहा है कि वो चाहे तो आगे हॉबी के रूप में इसे डेवलप कर सकती है। नए बर्ड्स को क्वारैंटाइन करने का भी इंतजाम
शेखर बताते हैं कि पक्षियों की ब्रीडिंग के लिए उन्होंने ब्रीडर भी बना रखा है। जो बच्चे होते हैं उन्हें खाना देने के लिए उनके पास तकनीकी व्यवस्था भी है। साथ ही मकान की तीसरी मंजिल पक्षियों के लिए क्वारैंटाइन रूम है। जब कोई नया पक्षी आता है तो उसे 25 -30 दिन के लिए क्वारैंटाइन किया जाता है। शेखर कहते हैं कि अपनी ऐवरी या पक्षियों का घर होने का सबसे बड़ा सुख यह है कि मॉर्निंग में अलार्म जरूरत नहीं पड़ती। सूरज उगने से पहले ही इनकी एक्टिविटी बढ़ जाती है। इनकी चहचहाहट से ही मेरी नींद खुल जाती है। विदेश में पढ़ाई के दौरान पाला था सांप
इंदौर के रहने वाले जगन कोहली के पास एक इगुआना और दो फीमेल बाल पायथन मतलब अजगर हैं। जगन बताते हैं, मैं पढ़ने के लिए यूके गया था। वहां मैने कॉर्न स्नेक पाला था। कॉर्न स्नैक को मकई सांप या लाल चूहा सांप भी कहते हैं। यह उत्तरी अमेरिका में पाया जाने वाला रेट स्नैक की प्रजातियों में से एक है। कॉर्न स्नेक गैर विषैला सांप है, हालांकि ये काट सकता है। यह छोटे शिकार को संकुचित कर अपने वश में करता है। कॉर्न स्नेक फूड चेन का अहम हिस्सा है। यह जंगली कीड़ों की आबादी को कंट्रोल करने में मदद करता है। जगन कहते हैं कि जब साल 2010 में मैं यूके से वापस भारत लौट रहा था तो मैं अपने कॉर्न स्नैक को भी साथ लाना चाहता था। इसके लिए मैंने यूके( UK) के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से लेकर दूतावास के चक्कर काटे, लेकिन परमिशन नहीं मिली। भारत आने पर पता चला कि वाइल्ड लाइफ एक्ट के चलते भारत की मूल प्रजाति के जीव जंतुओं को नहीं पाल सकता। साल 2018 में भारत सरकार ने परिवेश पोर्टल शुरू किया तो विदेशी नस्ल के प्राणियों को पालने की इजाजत मिली। सबसे पहले मैंने ब्लू इगुआना पाला। परिवार को बड़ा अटपटा लगा, लेकिन जल्द ही बच्चे इगुआना से घुल मिल गए। इसके बाद छोटा रेपटाइल बाल पायथन पाला। जगनप्रीत बताते हैं, मैं हार्डकोर एनिमल लवर हूं, पशु-पक्षियों को पीड़ा में देखता हूं तो पिघल जाता हूं। स्पेशल ऐनक्लोजर में UV और बस्किंग लाइट का इंतजाम
जगन बताते हैं कि पायथन रेपटाइल होते हैं। इनका ठंडा खून होता है, ये खुद अपने तापमान को नियंत्रित नहीं कर पाते। इसके लिए इन्हें स्पेशल ऐनक्लोजर में विशेष तापमान में रखना होता है। जगन कोहली ने घर में ही इनके लिए स्पेशल ऐनक्लोजर बनाया है, जिसमें अल्ट्रा वायलट( UV) रेज के लिए स्पेशल लाइट लगाई है। वे बताते हैं कि सांपों का मेटोबोलिज्म या पाचन क्षमता बेहद धीमी होती है, इसलिए इन्हें फ्रोजन माउस खिलाने पड़ते हैं। एक बार खाने के बाद ये सुस्त हो जाते हैं। अगले सात दिन तक ये कुछ भी नहीं खाते। घर में हैं 20 से अधिक जीव-जंतु, 15 सेंटीमीटर की मकड़ी खास
इंदौर के नीलेश पारुलकर को जीव जंतुओं से प्यार है। विदेशी प्रजातियों के जीवों को पालने पर पाबंदी नहीं होने के चलते इन्होंने विदेशी प्रजाति के जीव पालने शुरू किए। धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ती गई। आज इनके पास 20 से अधिक विदेशी जीव हैं। इसमें चार बड़ी छिपकलियां, इगुआना और छोटे आकार का अजगर बाल पायथन शामिल है। सबसे खास है करीब 15 सेंटीमीटर की मकड़ी टारेंटयुला। नीलेश बताते हैं, कभी मैं इन्हें ले आया तो कभी नियति इन्हें मेरे पास ले आई। दो साल पहले एक परिवार दुबई शिफ्ट हो रहा था, वे अपने मकाऊ को साथ नहीं ले जा पा रहे थे, तो वे उसे मेरे पास छोड़ गए। ऐसे ही एक परिवार ने इगुआना को पाल तो लिया, लेकिन जब उसका आकार बढ़ने लगा तो वे घबरा गए और उसे लेकर मेरे पास आ गए। बालों वाली मकड़ी को पाला जा सकता है
नीलेश के पास एक बालों वाली मकड़ी है। मूलत: अमेरिका में पाई जाने वाली ये मकड़ी पालतू है। नीलेश कहते हैं कि इसके बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। मुझे भी नहीं पता था टारेंटयुला को पाला जा सकता है। जब मुझे इसके बारे में पता चला तो मैंने इसे पाला। नीलेश कहते हैं कि मैं वन्य जीवों से प्यार करता हूं और उनके प्रति लोगों को जागरूक करने का काम करता हूं। छोटे बच्चे जैसा दिमाग, खिलौनों से खेलते हैं अफ्रीकन ग्रे पैरेट
निजी कंपनी के कर्मचारी ललित बताते हैं, 2018 में मेरे दोस्त ने शौकिया तौर पर मुझे गिफ्ट में बर्ड दिए थे। उसके बाद तो ये मेरे परिवार का हिस्सा बनते चलते गए। मुझे अफ्रीकन ग्रे पैरेट पसंद थे, लेने का बहुत मन था लेकिन पैसे नहीं थे। दुकानदार मुझे 60 हजार में जोड़ा देने को तैयार हो गया, मगर उतने भी पैसे नहीं थे। ललति कहते हैं कि मैंने दुकानदार को 10 हजार रूपए दिए और पांच हजार रुपए महीने की किस्त बंधवाई और 10 महीने में रुपए चुकाए। ललित बताते हैं कि जब से इन्हें पाल रहा हूं इनके स्वभाव के बारे में बहुत कुछ जान गया। अफ्रीकन ग्रे पैरेट नकल उतारने में उस्ताद हैं। वे कहते हैं कि जब मेरा डॉग भौंकता है तो यह भी भौंकने की आवाज निकालते हैं। इनके पिंजरे में लकड़ी का बॉक्स डालो तो यह उसे खोलने की तरकीब सोचते हैं, छोटी सीढ़ी दे दो तो तीन-चार दिन में यह पता कर लेते हैं कि इस पर चढ़ना है। मेरे पास पाइनापल कान्योर बर्ड भी हैं, जो मुझे देखकर सीटी बजाते हैं। दिखने में सुंदर ये पक्षी गाते भी हैं। वन विहार में चार इगुआना, विशेष तापमान में रखे जा रहे
चार महीने पूर्व तस्करों से बरामद किए गए इगुआना को कोर्ट के आदेश पर भोपाल के वन विहार में रखा गया है। यहां डॉक्टर अतुल गुप्ता और डॉ. हमजा नदीम इनकी देखभाल करते हैं। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट आरके दीक्षित बताते हैं, दुनिया के अलग-अलग देशों के अनोखे जीव -जंतु पालना पूरी दुनिया के रईसों और कुछ अलग करने वालों का शगल है। हमारे देश में यह ट्रेंड नया है, लेकिन दुनिया के कई देशों में मकड़ी से मगरमच्छ, अजगर से लेकर बाघ तक पाले जाते हैं। हमारे देश में वाइल्ड लाइफ एक्ट में इनके लिए नियम नहीं होने के चलते इसकी वैधता स्पष्ट नहीं थी। अब केंद्र सरकार ने विदेशी प्रजातियों के जीव-जंतुओं को शेड्यूल फाइव में शामिल कर लिया है। इसके साथ लोगों इनको घोषित करने की सुविधा दी है। यह इनके संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अच्छा कदम है। 150 लोगों के पास विदेशी जीव-जंतु
एसटीएसएफ (स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स) के प्रभारी रितेश सिरोठिया बताते हैं, प्रदेश में 150 लोगों ने अपने पास विदेशी जीव होने की जानकारी देते हुए रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन दिया है। प्रत्येक आवेदन की जांच कराई जा रही है। हमारे बायोलॉजिस्ट मौके पर जाकर विदेशी प्रजातियों के जीव जंतुओं का सत्यापन करते हैं। फिर सर्टिफिकेट जारी करते हैं।
