ज्वार खरीदी के 1116 में सिर्फ 25 पंजीयन असली:बैतूल में महाराष्ट्र से सस्ती ज्वार बेचने की साजिश, 60 करोड़ का नुकसान होने से बचा
बैतूल जिले में समर्थन मूल्य पर ज्वार खरीदी के नाम पर बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। जांच में पता चला है कि खरीदी माफिया ने बटाईदारी (सिकमी) के नाम पर फर्जी किसानों का पंजीयन कराकर सरकारी खरीदी में करोड़ों का नुकसान पहुंचाने की साजिश रची थी। प्रशासनिक जांच में खुलासा हुआ कि ज्वार बेचने के लिए कुल 1116 किसानों ने पंजीयन कराया था, लेकिन खेतों के सत्यापन के बाद केवल 25 पंजीयन ही वास्तविक पाए गए। बाकी 1091 पंजीयन फर्जी पाए जाने पर निरस्त कर दिए गए। अगर यह पंजीयन पास हो जाते तो सरकार को लगभग ₹60 करोड़ से अधिक का नुकसान होता। अधिकारियों का मानना है कि यदि ऐसी जांच पूरे प्रदेश में की जाए, तो करीब ₹2000 करोड़ से अधिक का फर्जीवाड़ा उजागर हो सकता है। महाराष्ट्र से सस्ती ज्वार लाकर बेचने की थी योजना
जांच में यह भी सामने आया कि जिले के कुछ व्यापारी और रसूखदार महाराष्ट्र से सस्ती ज्वार (₹1700-₹1800 प्रति क्विंटल) खरीदकर उसे बैतूल जिले में समर्थन मूल्य ₹3699 प्रति क्विंटल पर बेचने की तैयारी में थे। फर्जी पंजीयन इन्हीं लोगों ने बटाई या सिकमी किसानों के नाम पर कराए थे। कई असली किसानों को यह तक पता नहीं था कि उनके नाम से खरीदी के लिए पंजीयन करा दिया गया है। कृषि विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में ज्वार की वास्तविक खेती केवल 1500 हेक्टेयर में हुई, जबकि सहकारी समितियों में इसे 5234 हेक्टेयर बताया गया। इसी आधार पर 1169 किसानों के नाम पंजीयन किए गए, जबकि पिछले वर्ष केवल 210 किसानों ने ज्वार बेचने के लिए पंजीयन कराया था। ब्लॉकवार स्थिति दोबारा जांच में लगभग पंजीयन गलत निकले
बैतूल तहसीलदार जी.डी. पाटे ने बताया, “हमारे क्षेत्र में 290 किसानों के पंजीयन हुए थे, लेकिन जांच में केवल दो किसान ही वास्तविक पाए गए। बाकी रकबे में ज्वार की फसल थी ही नहीं। अभी सिर्फ रकबे की जांच हुई है, सिकमी या बटाई दारों की जांच बाकी है।” उन्होंने कहा कि “पहले चरण में लगभग 50% पंजीयन सही बताए गए थे, लेकिन कलेक्टर के आदेश पर पुनः जांच में लगभग सभी फर्जी निकले। यदि फूड विभाग से रिपोर्ट मिलती है तो एफआईआर कराई जाएगी, पर अब तक कोई पत्र नहीं मिला है।” खाद्य अधिकारी के.के. टेकाम ने बताया प्रक्रिया
जिला खाद्य अधिकारी के.के. टेकाम ने बताया कि खरीदी प्रक्रिया के तहत पहले गिरदावरी होती है, फिर डेटा ई-उपार्जन पोर्टल पर अपलोड होता है। इसके बाद किसान दस्तावेज लेकर पंजीयन कराते हैं और राजस्व विभाग द्वारा सत्यापन किया जाता है। इस मामले में सत्यापन के दौरान गड़बड़ी पकड़ में आई 25 किसानों को छोड़कर सभी फर्जी पाए गए। उन्होंने कहा कि गड़बड़ी गिरदावरी में हुई, वहीं से गलत डेटा पोर्टल पर गया। कैसे होता 60 करोड़ का नुकसान
जिले में 5234 हेक्टेयर के पंजीयन के आधार पर औसतन प्रति हेक्टेयर 18 क्विंटल ज्वार उत्पादन मानें, तो लगभग 3.6 लाख क्विंटल ज्वार खरीदी जाती। बाजार मूल्य (₹1800 प्रति क्विंटल) और सरकारी दर (₹3699 प्रति क्विंटल) के बीच के अंतर से सरकार को लगभग ₹64 करोड़ का नुकसान होता। घोटाले का केंद्र- भैंसदेही और घोड़ाडोंगरी
अधिकांश फर्जी पंजीयन भैंसदेही, घोड़ाडोंगरी और बैतूल क्षेत्र से जुड़े हैं। सूत्रों के अनुसार यहां के कुछ प्रभावशाली लोगों ने किसानों के नाम पर फर्जी बटाई नामे तैयार कर खरीदी का लाभ उठाने की कोशिश की। व्हिसलब्लोअर वामन पोटे ने मांग की है कि “इन बटाईदारों के बैंक खातों और एग्रीमेंट की जांच होनी चाहिए, ताकि असली किसानों और फर्जी एजेंटों की सच्चाई सामने आ सके।” सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक न तो फूड विभाग ने तहसीलदारों को कोई औपचारिक पत्र भेजा है, न ही किसी थाने में एफआईआर दर्ज हुई है। सूत्रों का कहना है कि विभागीय स्तर पर इस बड़े घोटाले को दबाने की कोशिश की जा रही है।
बैतूल जिले में समर्थन मूल्य पर ज्वार खरीदी के नाम पर बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। जांच में पता चला है कि खरीदी माफिया ने बटाईदारी (सिकमी) के नाम पर फर्जी किसानों का पंजीयन कराकर सरकारी खरीदी में करोड़ों का नुकसान पहुंचाने की साजिश रची थी। प्रशासनिक जांच में खुलासा हुआ कि ज्वार बेचने के लिए कुल 1116 किसानों ने पंजीयन कराया था, लेकिन खेतों के सत्यापन के बाद केवल 25 पंजीयन ही वास्तविक पाए गए। बाकी 1091 पंजीयन फर्जी पाए जाने पर निरस्त कर दिए गए। अगर यह पंजीयन पास हो जाते तो सरकार को लगभग ₹60 करोड़ से अधिक का नुकसान होता। अधिकारियों का मानना है कि यदि ऐसी जांच पूरे प्रदेश में की जाए, तो करीब ₹2000 करोड़ से अधिक का फर्जीवाड़ा उजागर हो सकता है। महाराष्ट्र से सस्ती ज्वार लाकर बेचने की थी योजना
जांच में यह भी सामने आया कि जिले के कुछ व्यापारी और रसूखदार महाराष्ट्र से सस्ती ज्वार (₹1700-₹1800 प्रति क्विंटल) खरीदकर उसे बैतूल जिले में समर्थन मूल्य ₹3699 प्रति क्विंटल पर बेचने की तैयारी में थे। फर्जी पंजीयन इन्हीं लोगों ने बटाई या सिकमी किसानों के नाम पर कराए थे। कई असली किसानों को यह तक पता नहीं था कि उनके नाम से खरीदी के लिए पंजीयन करा दिया गया है। कृषि विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में ज्वार की वास्तविक खेती केवल 1500 हेक्टेयर में हुई, जबकि सहकारी समितियों में इसे 5234 हेक्टेयर बताया गया। इसी आधार पर 1169 किसानों के नाम पंजीयन किए गए, जबकि पिछले वर्ष केवल 210 किसानों ने ज्वार बेचने के लिए पंजीयन कराया था। ब्लॉकवार स्थिति दोबारा जांच में लगभग पंजीयन गलत निकले
बैतूल तहसीलदार जी.डी. पाटे ने बताया, “हमारे क्षेत्र में 290 किसानों के पंजीयन हुए थे, लेकिन जांच में केवल दो किसान ही वास्तविक पाए गए। बाकी रकबे में ज्वार की फसल थी ही नहीं। अभी सिर्फ रकबे की जांच हुई है, सिकमी या बटाई दारों की जांच बाकी है।” उन्होंने कहा कि “पहले चरण में लगभग 50% पंजीयन सही बताए गए थे, लेकिन कलेक्टर के आदेश पर पुनः जांच में लगभग सभी फर्जी निकले। यदि फूड विभाग से रिपोर्ट मिलती है तो एफआईआर कराई जाएगी, पर अब तक कोई पत्र नहीं मिला है।” खाद्य अधिकारी के.के. टेकाम ने बताया प्रक्रिया
जिला खाद्य अधिकारी के.के. टेकाम ने बताया कि खरीदी प्रक्रिया के तहत पहले गिरदावरी होती है, फिर डेटा ई-उपार्जन पोर्टल पर अपलोड होता है। इसके बाद किसान दस्तावेज लेकर पंजीयन कराते हैं और राजस्व विभाग द्वारा सत्यापन किया जाता है। इस मामले में सत्यापन के दौरान गड़बड़ी पकड़ में आई 25 किसानों को छोड़कर सभी फर्जी पाए गए। उन्होंने कहा कि गड़बड़ी गिरदावरी में हुई, वहीं से गलत डेटा पोर्टल पर गया। कैसे होता 60 करोड़ का नुकसान
जिले में 5234 हेक्टेयर के पंजीयन के आधार पर औसतन प्रति हेक्टेयर 18 क्विंटल ज्वार उत्पादन मानें, तो लगभग 3.6 लाख क्विंटल ज्वार खरीदी जाती। बाजार मूल्य (₹1800 प्रति क्विंटल) और सरकारी दर (₹3699 प्रति क्विंटल) के बीच के अंतर से सरकार को लगभग ₹64 करोड़ का नुकसान होता। घोटाले का केंद्र- भैंसदेही और घोड़ाडोंगरी
अधिकांश फर्जी पंजीयन भैंसदेही, घोड़ाडोंगरी और बैतूल क्षेत्र से जुड़े हैं। सूत्रों के अनुसार यहां के कुछ प्रभावशाली लोगों ने किसानों के नाम पर फर्जी बटाई नामे तैयार कर खरीदी का लाभ उठाने की कोशिश की। व्हिसलब्लोअर वामन पोटे ने मांग की है कि “इन बटाईदारों के बैंक खातों और एग्रीमेंट की जांच होनी चाहिए, ताकि असली किसानों और फर्जी एजेंटों की सच्चाई सामने आ सके।” सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक न तो फूड विभाग ने तहसीलदारों को कोई औपचारिक पत्र भेजा है, न ही किसी थाने में एफआईआर दर्ज हुई है। सूत्रों का कहना है कि विभागीय स्तर पर इस बड़े घोटाले को दबाने की कोशिश की जा रही है।