देवाधिदेव का त्रिपुरारी रूप में श्रृंगार:इंदौर के न्याय नगर में देव प्रबोधिनी एकादशी पर शालिग्राम-तुलसी विवाह भी किया
देवाधिदेव का त्रिपुरारी रूप में श्रृंगार:इंदौर के न्याय नगर में देव प्रबोधिनी एकादशी पर शालिग्राम-तुलसी विवाह भी किया
देव दिवाली के पावन अवसर पर न्याय नगर उद्यान स्थित महादेव मंदिर में भगवान शिव का त्रिपुरारी रूप में विशेष श्रृंगार कर 56 भोग लगाया गया। इसके साथ ही विधि-विधान द्वारा शालिग्राम-तुलसी विवाह का आयोजन किया गया। यह है पौराणिक कहानी माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं। इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था। मान्यता है कि तीनों लोकों में त्रिपुरासुर राक्षस का राज चलता था। देवतागणों ने भगवान शिव के समक्ष त्रिपुरासुर राक्षस से उद्धार की विनती की। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारी कहलाए। इससे प्रसन्न देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था, तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली मनाई जाने लगी। काशी में देव दिवाली उत्सव मनाए जाने के सम्बन्ध में मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया था, कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदल कर भगवान शिव ने काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान कर ध्यान किया। यह बात जब राजा दिवोदास को पता चला तो उन्होंने देवताओं के प्रवेश प्रतिबंध को समाप्त कर दिया। इस दिन सभी देवताओं ने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। आज का विशेष श्रृंगार जितेंद्र शर्मा, सतीश सेन, प्रियंका विश्वकर्मा द्वारा किया गया। तुलसी विवाह में रहवासी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
देव दिवाली के पावन अवसर पर न्याय नगर उद्यान स्थित महादेव मंदिर में भगवान शिव का त्रिपुरारी रूप में विशेष श्रृंगार कर 56 भोग लगाया गया। इसके साथ ही विधि-विधान द्वारा शालिग्राम-तुलसी विवाह का आयोजन किया गया। यह है पौराणिक कहानी माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं। इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था। मान्यता है कि तीनों लोकों में त्रिपुरासुर राक्षस का राज चलता था। देवतागणों ने भगवान शिव के समक्ष त्रिपुरासुर राक्षस से उद्धार की विनती की। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारी कहलाए। इससे प्रसन्न देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था, तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली मनाई जाने लगी। काशी में देव दिवाली उत्सव मनाए जाने के सम्बन्ध में मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया था, कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदल कर भगवान शिव ने काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान कर ध्यान किया। यह बात जब राजा दिवोदास को पता चला तो उन्होंने देवताओं के प्रवेश प्रतिबंध को समाप्त कर दिया। इस दिन सभी देवताओं ने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। आज का विशेष श्रृंगार जितेंद्र शर्मा, सतीश सेन, प्रियंका विश्वकर्मा द्वारा किया गया। तुलसी विवाह में रहवासी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।